02 March 2022

सिंहासन बत्तीसी की छठी कहानी - रविभामा पुतली की कथा -Story of Ravibhama Putli

Sixth Story of Throne Battisi

पांचवीं पुतली से महाराज विक्रमादित्य की कहानी सुनकर जैसे ही राजा भोज सिंहासन पर बैठने लगे, तभी उन्हें छठवीं पुतली रविभामा ने रोक लिया। उसने राजा से पूछा कि क्या सच में वो इस सिंहासन पर बैठने योग्य हैं। रविभामा ने पूछा, क्या आप में महाराज विक्रमादित्य का वो गुण है, जो उन्हें सिंहासन पर बैठने योग्य बनाता था। जब राजा भोज ने निवेदन किया कि आप मुझे महाराज विक्रमादित्य के उस गुण के बारे में विस्तार से बताएं। तब राजा के निवेदन करने पर पुतली ने राजा विक्रमादित्य के छठवें गुण की कहानी शुरू की, जो कुछ इस प्रकार है।

बहुत समय पहले जब महाराज विक्रमादित्य का राज्य था और चारों ओर खुशहाली ही खुशहाली थी, तब एक दिन महाराज वन विहार के लिए अपने रथ पर सवार होकर निकले। वह नदी के किनारे-किनारे अपने रथ पर सवार होकर जा रहे थे कि उन्हें कुछ दूरी पर एक परिवार नदी के किनारे खड़ा दिखाई दिया।

उस परिवार में एक पुरुष एक स्त्री और साथ में उनका एक पुत्र था। उनके कपड़े देखने भर से उनकी गरीबी साफ पता चल रही थी। उन सभी के चेहरे चिंता और परेशानी से भरे दिखाई दे रहे थे। विक्रमादित्य उन सभी को देख ही रहे थे कि अचानक तीनों ने नदी में छलांग लगा दी।

राजा ने जैसे ही उन सभी को नदी में डूबते देखा, वह फौरन उन्हें बचाने के लिए खुद नदी में कूद पड़े। वह अकेले उन तीनों को नहीं बचा सकते थे, इसलिए उन्होंने मदद के लिए वरदान में मिले दो बेतालों को बुलाया। राजा विक्रमादित्य ने परिवार में शामिल पुरुष को बचाया। वहीं बेतालों ने स्त्री और पुत्र की जान बचाई।

सभी को सुरक्षित नदी से बाहर निकालने के बाद राजा ने उस पुरुष से पूछा कि आप कौन हो और क्यों ऐसे अपने पूरे परिवार के साथ नदी में कूद गए? तब पुरुष ने रोते हुए कहा कि मैं एक गरीब ब्राह्मण हूं और आपके ही राज्य में रहता हूं। आपके राज्य में सभी आत्मनिर्भर हैं, इसलिए कोई भी मुझे काम देने के लिए तैयार नहीं है।

इस हालात में न तो मेरे पास रहने के लिए घर है और न ही खाने के लिए भोजन। इस कारण मेरा पूरा परिवार कई दिनों से भूखा है। मैं अपने परिवार को इस तरह भूख से बिलखते नहीं देख सकता। यही वजह है कि प्राण त्यागने का विचार बनाकर मैं और मेरा परिवार नदी में कूद गए थे।

राजा ने उनकी बात सुनी और निवेदन किया कि हे ब्राह्मण देव! आपको प्राण त्यागने की जरूरत नहीं है। कृप्या करके आप मेरे अतिथि भवन में चलकर रहिए। वहां आप जब तक चाहे सुख पूर्वक रह सकते हैं। राजा की बात सुनकर ब्राह्मण ने कहा कि अगर कुछ समय के बाद हमसे कुछ गलती हो और हमें अपमानित करके निकाल दिया गया, तो हम कहां जाएंगे।

राजा ने उसकी यह बात सुनकर वचन दिया कि उन्हें किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होगा और वह जब तक चाहें तब तक सपरिवार उनके अतिथि भवन में आराम से रह सकते हैं। ब्राह्मण ने राजा के वचन को स्वीकार किया और राजा के साथ अपने परिवार को लेकर अतिथि भवन में रहने चले गए। वहां वे सुख और आराम से रहने लगे। उनकी सेवा में कभी कोई कमी नहीं की जाती थी।

ब्राह्मण परिवार अच्छे से रहने लगा, लेकिन उनकी एक आदत बहुत खराब थी। वह यह थी कि वे जहां रहते और खाते-पीते थे, वहीं गंदगी कर देते थे। पहने हुए कपड़े कई दिनों तक नहीं बदलते थे। इस वजह से धीरे-धीरे पूरा अतिथि भवन गंदा हो गया और वहां चारों ओर उस गंदगी की वजह से बदबू भी फैल गई। इस वजह से ब्राह्मण परिवार की सेवा में लगाए गए सभी नौकर वहां से भाग गए।

राजा को जब इस बात का पता चला तो उसने दूसरे नौकरों को वहां भेजा, लेकिन वो भी उस गंदगी और बदबू को अधिक दिन सहन नहीं कर पाए। इस वजह से परेशान होकर वो नौकर भी वहां से भाग खड़े हुए। तब राजा ने खुद ब्राह्मण परिवार की सेवा करने की जिम्मेदारी ली।

राजा विक्रमादित्य ने खूब मन लगाकर उस ब्राह्मण परिवार की सेवा की और समय पड़ने पर वह ब्राह्मण के पैर दबाने से भी पीछे नहीं हिचकते थे। ब्राह्मण ने राजा के वचन का फायदा उठाते हुए एक दिन उनसे कहा कि मेरे शरीर पर लगा हुआ मल साफ करके मुझे अच्छी तरह से स्नान करा दो और साफ वस्त्र पहना दो।

राजा ने खुशी से उनकी यह बात भी स्वीकार की और जैसे ही वे मल साफ करने के लिए आगे बड़े अचानक वह ब्राह्मण देव देवता के रूप में सामने आ गए। अतिथि गृह में फैली सारी गंदगी अपने आप साफ हो गई। इतना ही नहीं वह स्थान स्वर्ग के जैसा हो गया और चारों ओर सुगंधित हवा भी बहने लगी।

तब देवता ने अपना परिचय देते हुए कहा कि मैं वरुण देव हूं और आपके नगर में आपकी परीक्षा लेने के लिए आया था। हमने आपके आतिथ्य की बहुत प्रसंशा सुनी थी, जिस कारण मैं पूरे परिवार के साथ यहां आया था। मैं आपकी इस सेवा से बहुत प्रसन्न हूं और वरदान देता हूं कि आपके नगर में कभी सूखा नहीं पड़ेगा। आपके नगर के हर खेत से तीन प्रकार की फसलें उगेंगी। राजा ने हाथ जोड़कर वरुण देव को नमस्कार किया और इसके बाद वरुण देव परिवार के साथ वहां से स्वर्ग की ओर चल दिए।

महाराज विक्रमादित्य की यह कहानी सुनाते ही रविभामा वहां से उड़ गई।

कहानी से सीख: हमें भी अपने घर आए अतिथि की अच्छे से सेवा करना चाहिए और उन्हें पूरा सम्मान देना चाहिए। हमारे देश में अतिथि को देवता का स्थान दिया गया है, इसीलिए कहा जाता है “अतिथि देवो भव:”।


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