02 March 2022

सिंहासन बत्तीसी की ग्यारहवीं कहानी - त्रिलोचनी पुतली की कथा - The story of Trilochni Putli

Singhasan Battisi Eleventh Putli Trilochani Story In Hindi

हर बार की तरह इस बार भी राजा भोज सिंहासन पर बैठने के लिए राज दरबार पहुंचते हैं। इस बार सिंहासन की ग्यारहवीं पुतली त्रिलोचना उन्हें रोक देती है। फिर वह राजा विक्रमादित्य के गुणों के बारे में बताने के लिए महायज्ञ का एक किस्सा सुनाने लगती है।

एक बार राजा विक्रमादित्य ने राज्य की खुशहाली के लिए महायज्ञ करने की घोषणा की। इसमें उन्होंने सभी राजा-महाराजा, पंडित-ब्राह्मण, देवी-देवताओं और ऋषी-मुनियों को आमंत्रित करने का फैसला लिया। सभी को आमंत्रण भेजने के बाद राजा विक्रमादित्य ने पवन देव को खुद जाकर निमंत्रण देने की ठानी और समुद्र देव को आमंत्रित करने के लिए एक ब्राह्मण का चयन किया।

राजा का आदेश मिलते ही ब्राह्मण देव निमंत्रण पत्र लेकर समुद्र देवता के पास जाने के लिए निकल पड़े। साथ ही राजा विक्रमादित्य भी पवन देव की खोज के लिए एक जंगल पहुंचे। यहां उन्होंने कुछ दिनों तक ध्यान लगाया, ताकि उन्हें पवन देव के बारे में कुछ जानकारी मिल सके। मां काली ने उनके ध्यान से खुश होकर राजा विक्रमादित्य को बताया कि पवन देव सुमेरू पर्वत पर रहते हैं।

पवन देव के बारे में पता चलते ही राजा ने बेताल को बुलाया। बेताल कुछ ही देर में उन्हें लेकर सुमेरू पर्वत पर पहुंचा दिया। पर्वत पर तेज हवाएं चल रही थीं, लेकिन पवन देव कहीं नहीं दिखे। फिर राजा विक्रमादित्य ने पवन देव का ध्यान लगाया। उनकी साधना से खुश होकर पवन देव वहां प्रकट हुए और कहा, “हे राजन! बताओ, मुझे क्यों याद किया।” जवाब देते हुए महाराज ने कहा, “हे देव, मेरी इच्छा है कि आप मेरे राज्य में होने वाले महायज्ञ में आएं। यज्ञ का निमंत्रण देने के लिए ही मैंने आपका ध्यान किया था।”

राजा विक्रमादित्य की बातें सुनने के बाद पवन देव ने मुस्कुराते हुए कहा कि वह यज्ञ में नहीं आ सकते। राज्य में उनके आने से भयंकर तूफान आएगा, जिससे सब कुछ तबाह हो सकता है। पवन देव ने विक्रमादित्य को समझाते हुए कहा कि वो संसार के हर कोने में मौजूद हैं। उनके यज्ञ में भी वो उपस्थित रहेंगे, लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से।

पवन देव ने इतना कहने के बाद राजा विक्रमादित्य को आशीर्वाद दिया कि उनके राज्य में कभी सूखा और अकाल नहीं पड़ेगा। साथ ही इच्छाओं को पूरा करने वाली एक कामधेनु गाय भी उन्हें दी और वहां से चले गए। उसके बाद राजा भी बेताल की मदद से राज्य वापस आ गए।

इधर, राजा पवन देव से मिलकर लौट आए। उधर, समुद्र देवता से मिलने के लिए ब्राह्मण कई मुसीबतों का सामना कर रहे थे। जैसे-तैसे वह सागर के पास पहुंचे और समुद्र देवता को कई बार बुलाया, लेकिन समुद्र देवता प्रकट नहीं हुए। ब्राह्मण देव भी थकने वालों में से नहीं थे, वो बार-बार समुद्र देवता को बुलाते रहे। उनकी पुकार से खुश होकर समुद्र देवता प्रकट हुए और ब्राह्मण ने विक्रमादित्य के महायज्ञ के बारे में उन्हें बताया।

निमंत्रण मिलने के बाद समुद्र देव ने कहा कि उन्हें पवन देव से इस महायज्ञ के बारे में पता चल गया था, लेकिन वो यज्ञ में नहीं आ सकते। उन्होंने बताया कि अगर वो प्रत्यक्ष रूप से वहां आएंगे, तो पूरा राज्य बह जाएगा। इसी वजह से वो यज्ञ के दौरान जल की हर बूंद में अप्रत्यक्ष रूप से मौजूद रहेंगे।

इतना कहकर समुद्र देवता ने ब्राह्मण को पांच रत्न और एक घोड़ा देते हुए कहा कि ये सब उपहार महाराज विक्रमादित्य को दे देना। इतना कहने के बाद समुद्र देवता अदृश्य हो गए। अब ब्राह्मण तेजी से सारे उपहार लेकर राज्य की ओर चलने लगे। ब्राह्मण को पैदल चलता देखकर समुद्र देवता से मिले घोड़े ने ब्राह्मण से पूछा कि आप पैदल जाने की जगह मुझे अपनी सवारी क्यों नहीं बना लेते? ब्राह्मण चलते रहे, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। इस पर घोड़े ने उन्हें समझाया कि वह राजा के दूत हैं, इसलिए उपहार का इस्तेमाल कर सकते हैं। यह सुनकर ब्राह्मण घोड़े पर बैठे और कुछ ही देर में राजमहल पहुंच गए।

राज दरबार पहुंचते ही ब्राह्मण ने सारी बातें महाराज विक्रमादित्य को बताई। साथ ही समुद्र देवता द्वारा दिए गए उपहार भी उनको दे दिए। राजा ने खुश होकर कहा कि आपने अपना काम बहुत अच्छे से किया है, इसलिए इन सभी भेंट को आप रख लें। ब्राह्मण घोड़ा और रत्न लेकर खुशी-खुशी अपने घर को लौट गए।

इस कहानी को सुनाने के बाद ग्यारहवीं पुतली सिंहासन से उड़ गई।

कहानी से सीख:

कोशिश करने से हर काम पूरा हो जाता है। राजा विक्रमादित्य ने भी अंतिम समय तक कोशिश नहीं छोड़ी और आखिरकार पवन देव को उनके सामने आना ही पड़ा। इसलिए, बच्चों आपको भी जब तक सफलता न मिले, प्रयास करते रहना चाहिए।

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