02 March 2022

सिंहासन बत्तीसी की पहली कहानी - रत्नमंजरी पुतली की कथा - Story of Ratnamanjari Pupil

The first story of the throne Battisi

सिंहासन के साफ होने के बाद राजा भोज पहले दिन ही सिंहासन पर बैठने के लिए उत्सुक थे। जब पहले दिन राजा भोज ने सिंहासन पर बैठने की कोशिश की तभी सिंहासन से पहली पुतली रत्नमंजरी प्रकट हुई। पहली पुतली रत्नमंजरी ने राजा को अपना परिचय दिया और कहा कि यह सिंहासन विक्रमादित्य का है और उनके जैसा गुणवान और बुद्धिमान ही इस पर बैठने योग्य है। अगर यकीन नहीं होता, तो राजा विक्रमादित्य की यह कहानी सुनकर फैसला करना कि तुम में ऐसे गुण हैं या नहीं। इतना कहने के बाद पहली पुतली रत्नमंजरी ने राजा भोज को कहानी सुनाना शुरू किया।

एक बार की बात है, अम्बावती नाम का एक राज्य था। वहां के राजा धर्मसेन ने चार वर्णों की स्त्रियों से चार शादियां की थीं। पहली स्त्री ब्राह्मण थी, दूसरी क्षत्रिय, तीसरी वैश्य और चौथी शूद्र थी। ब्राह्मण स्त्री से हुए पुत्र का नाम ब्राह्मणीत था। क्षत्राणी से उन्हें तीन पुत्र थे, जिनके नाम थे  शंख, विक्रमादित्‍य और भर्तृहरि। वैश्‍य पत्नी से हुए पुत्र का नाम चंद्र था और शूद्राणी के बेटे का नाम धन्‍वतारि था। जब सभी लड़के बड़े हुए, तो ब्राह्मणी के बेटे को राजा ने दीवान बनाया। लेकिन, वह अपनी जिम्मेदारी ठीक तरह से संभाल न सका और वो राज्य छोड़कर चला गया। कुछ वक्त तक वो कई जगहों में भटका और फिर वह धारानगरी नाम के राज्य में पहुंचा और वहां उसे एक अच्छा ओहदा मिला। लेकिन, एक दिन उसने वहां के राजा को मार दिया और खुद राजा बन गया।

कुछ वक्त बाद उसने उज्जैन आने का फैसला किया, लेकिन उज्जैन पहुंचते ही उसकी मौत हो गई। उसके बाद क्षत्राणी के बड़े बेटे शंख को लगा कि उसके पिता विक्रम को राज्य का राजा बना सकते हैं। ऐसे में उसने अपने सोते हुए पिता पर हमला कर उसे मार डाला और खुद को राजा घोषित कर दिया। सभी भाइयों को शंख के षड्यंत्र का पता चल गया और सब इधर-उधर निकल पड़ें। शंख ने ज्योतिषियों का सहारा लिया और उन्हें अपने भाइयों के बारे में ज्योतिष विद्या के सहारे से पता लगाने को कहा।

ज्योतिषियों ने बताया कि विक्रम को छोड़कर उनके सभी भाई जंगली जानवरों का शिकार बन गए थे। विक्रम अब बहुत ज्ञानी हो चुका है और आगे चलकर बहुत बड़ा सम्राट बनेगा। यह सुनकर शंख को बहुत चिंता होने लगी और उसने विक्रम को मारने की योजना बनाई। शंख के मंत्रियों ने विक्रम को ढूंढ निकाला और शंख को इसकी जानकारी दी। शंख ने एक तांत्रिक के साथ विक्रम को मारने की योजना बनाई। उसने तांत्रिक से कहा कि वो विक्रम को काली की आराधना की बात बताए और उसे सिर झुकाकर काली की पूजा करने को कहे। जैसे ही विक्रम गर्दन झुकाएगा, तो वो उसकी गर्दन काट देगा। तांत्रिक विक्रम के पास गया और उसने शंख के कहे अनुसार विक्रम को काली की अराधना के लिए सिर झुकाने को कहा। शंख भी वहीं छिपा बैठा था। विक्रम ने खतरा महसूस कर लिया था। उसने तांत्रिक को सिर झुकाने की विधि बताने को कहा और तांत्रिक जैसे ही झुका शंख ने उसे विक्रम समझ कर उसकी गर्दन काट दी। इतने में विक्रमादित्य ने शंख के हाथ से तलवार लेकर उसकी भी गर्दन काट दी और अपने पिता की हत्या का बदला ले लिया।

फिर विक्रमादित्य राजा बने और अपने राज्य और प्रजा का पूरा ध्यान रखने लगे। हर तरफ उनकी जय-जयकार होने लगी। एक दिन राजा विक्रमादित्य शिकार करने जंगल गए। उस जंगल में जाने के बाद राजा विक्रमादित्य को बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। इतने में उनकी नजर एक खूबसूरत महल पर पड़ी। वो अपने घोड़े पर सवार होकर उस महल में पहुंचे। वो महल राजा बाहुबल का था। राजा विक्रम जैसे ही वहां पहुंचे, तो वहां के दीवान ने राजा विक्रमादित्य को कहा कि वो बहुत मशहूर राजा बनेंगे। लेकिन, उसके लिए राजा बाहुबल को उनका राजतिलक करना होगा। साथ ही उसने यह भी कहा कि राजा बाहुबल बहुत दानी है और जैसे ही विक्रमादित्य को मौका मिले वो राजा से स्वर्ण जड़ित सिंहासन मांग लें। यह स्वर्ण जड़ित सिंहासन भगवान शंकर ने राजा को भेंट दिया था। वह सिंहासन राजा विक्रमादित्य को सम्राट बना सकता है।

राजा बाहुबल ने विक्रमादित्य का अतिथि सत्कार और राज तिलक किया। इस दौरान विक्रमादित्य ने सिंहासन की मांग की और राजा बाहुबल ने विक्रमादित्य को उसका सही हकदार समझते हुए बिना संकोच सिंहासन दे दिया। कुछ दिनों तक बाहुबल के महल में रहने के बाद राजा विक्रमादित्य सिंहासन लेकर अपने राज्य वापस आ गए। सिंहासन की बात दूर-दूर तक फैल गई। हर कोई राजा विक्रमादित्य को बधाई दे रहा था।

इतना सुनाते ही पुतली रत्नमंजरी ने कहा कि राजा भोज अगर ऐसा कोई काम आपने भी किया है, तो आप इस सिंहासन पर बैठ सकते हैं। यह कहने के बाद पहली पुतली रत्नमंजरी उड़ गई। यह सुनकर राजा भोज ने उस दिन सिंहासन पर बैठने का फैसला टाल दिया और सोचा कि अगले दिन आऊंगा और सिंहासन पर बैठूंगा।

कहानी से सीख – इस कहानी से यही सीख मिलती है कि कभी लालच नहीं करना चाहिए और दूसरों का बुरा नहीं सोचना चाहिए। जो दूसरों का बुरा चाहते हैं, उनके साथ कभी अच्छा नहीं होता है

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