जब राजा भोज फिर से सिंहासन की ओर बढ़ने लगे, तो पंद्रहवीं पुतली सुंदरवती ने उन्हें रोक दिया। उसने पूछा कि क्या आपके अंदर भी महाराज विक्रमादित्य जैसे ही प्रजा प्रेमी हैं? इतना कहकर पंद्रहवीं पुतली ने एक किस्सा सुनाना शुरू किया।
राजा विक्रमादित्य के शासन से उज्जैन की पूरी प्रजा खुश थी। सभी को राजा की दानवीरता और दयालुता पर गर्व था। उसी राज्य में महाराज विक्रमादित्य जैसा ही एक दयालु व्यापारी पन्नालाल भी रहता था। वो बिना किसी लालच के लोगों की हर दम मदद करता था। पन्नालाल का एक बेटा भी उसी के जैसा गुणवान था। दोनों बाप-बेटे की अच्छाई के बारे में पूरा उज्जैन जानता था।
कुछ समय बाद व्यापारी अपने बेटे की शादी के लिए लड़की ढूंढने लगे। तभी एक पंडित ने उन्हें बताया कि समुद्र के दूसरी ओर धनी राम नाम का एक व्यापारी रहता है, जो अपनी सुंदर और गुणवान बेटी के लिए लड़का ढूंढ रहा है। यदि आप कहें, तो उनसे विवाह की बात कर सकता हूं।
यह सुनते ही पन्नालाल ने पंडित को खर्च के लिए मुद्राएं देकर उसे धनी राम व्यापारी के पास भेज दिया। धनी राम को पंडित का प्रस्ताव अच्छा लगा और उन्होंने शादी के लिए हां कर दी। दोनों परिवार की सहमति के बाद शादी का शुभ मुहूर्त भी तय हो गया।
विवाह होने के कुछ दिन पहले उज्जैन में बहुत तेज बारिश होने लगी। तब पन्नालाल सेठ ने सोचा कि अगर इसी तरह बारिश होती रही, तो दूसरे राज्य जाकर बेटे की शादी कैसे कराएंगे? अगर वहां नहीं पहुंच पाए, तो बदनामी भी होगी। वह ऐसा सोच ही रहे थे कि पंडित ने पन्नालाल के चेहरे को देखकर उनकी चिंता समझ ली। पंडित से कहा, “सेठ जी, चिंता मत कीजिए। बस आप अपनी सारी समस्या महाराज विक्रमादित्य को जाकर बता दीजिए। उनके पास हवा से भी तेज चलने वाले रथ और घोड़े हैं। वो जरूर आपकी मदद करेंगे।”
सेठ सीधे महाराज विक्रमादित्य के दरबार पहुंचा और अपने मन की बात हिचकिचाते हुए कही। व्यापारी की परेशानी सुनकर महाराज ने कहा कि हर राजा की असली संपत्ति उसकी प्रजा ही होती है। आप राजमहल से रथ और घोड़े ले जा सकते हैं। व्यापारी के जाते ही विक्रमादित्य ने बेतालों को बुलाया और कहा कि बारिश बहुत तेज है, जाओ जाकर व्यापारी और उसके परिवार की रक्षा करो।
तभी व्यापारी अपने बेटे की शादी के लिए पूरे परिवार और रिश्तेदारों के साथ रथ लेकर दूसरे राज्य के लिए निकल गए। चलते-चलते वो समुद्र के किनारे पहुंच गए। गहरा पानी देखते ही व्यापारी के मन में हुआ कि अब रथ से समुद्र कैसे पार हो पाएगा। पन्नालाल यह सोच ही रहा था कि देखते ही देखते रथ पानी पर दौड़ने लगा। व्यापारी समय रहते ही पूरे परिवार के साथ विवाह स्थल पर पहुंच गए और धूमधाम से बेटे की शादी करके अपने नगर वापस आ गए।
नगर पहुंचते ही सबसे पहले पन्नालाल अपने बेटे और बहू को लेकर राज महल पहुंचे और राजा से मुलाकात की। राजा ने उन दोनों को आशीर्वाद देते हुए पन्नालाल को कहा कि आप रथ और घोड़े बच्चों को दे देना। ये सब मेरी तरफ से उनके लिए शादी का तोहफा है।
इतनी कहानी सुनाकर पंद्रहवीं पुतली भी उड़ गई और राजा भोज महाराज विक्रमादित्य का प्रजा प्रेम का किस्सा सुनकर खुश हो गए।
कहानी से सीख:
जरूरत पड़ने पर हमेशा दूसरों की मदद करनी चाहिए।
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