13 March 2022

स्वामी विवेकानंद की प्रेरक कहानी - घमंड कभी न करने का ज्ञान - Inspirational story of Swami Vivekananda - Knowledge of never boasting

Swami Vivekananda kabhi ghamand na kare Story

तो बात उस समय की है, जब स्वामी विवेकानंद अपने लोकप्रिय शिकागो धर्म सम्मेलन के भाषण के बाद भारत वापस आ गये थे। अब उनकी चर्चा विश्व के हर देश में हो रही थी। सब लोग उन्हें जानने लगे थे।

स्वामी जी भारत वापस आकर अपने स्वभाव अनुरूप भ्रमण कर रहे थे। इस समय वे हिमालय और इसके आसपास के क्षेत्रों में थे। एक दिन वो घूमते घूमते एक नदी के किनारे आ गये।  वहां उन्होंने देखा कि एक नाव है पर वह किनारा छोड़ चुकी है। तब वे नाव के वापस आने के इंतजार में वहीं किनारे पर बैठ गए।

एक साधु वहां से गुजर रहा था। साधु ने स्वामी जी को वहां अकेला बैठा देखा तो वह स्वामी जी के पास गया और उनसे पूछा, तुम यहां क्यों बैठे हुए हो?

स्वामी जी ने जवाब दिया, मैं यहां नाव का इंतजार कर रहा हूं।

साधु ने फिर पूछा, तुम्हारा नाम क्या है?

स्वामी जी ने कहा, मैं विवेकानंद हूं।

साधु ने स्वामी जी का मजाक उड़ाते हुए उनसे कहा, अच्छा! तो तुम वो विख्यात विवेकानंद हो जिसको लगता है कि विदेश में जा कर भाषण दे देने से तुम बहुत बड़े महात्मा साधु बन सकते हो।

स्वामी जी ने साधु को कोई जवाब नहीं दिया।

फिर साधु ने बहुत ही घमंड के साथ, नदी के पानी के ऊपर चल कर अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया।

कुछ दूर तक चलने के बाद साधु ने स्वामी जी कहा, क्या तुम मेरी तरह पानी पर पैदल चल कर इस नदी को पार कर सकते हो?

स्वामी जी ने बहुत ही आदर और विनम्रता के साथ साधु से कहा, इस बात में कोई शक नहीं कि आपके पास बहुत ही अद्भुत शक्ति है। लेकिन क्या आप मुझे यह बता सकते हो, कि आपको यह असाधारण शक्ति प्राप्त करने में कितना समय लगा। बहुत ही अभिमान के साथ साधु ने जवाब दिया, यह बहुत ही कठिन कार्य था। मैंने बीस सालों की कठिन तपस्या  और साधना के बाद यह महान शक्ति प्राप्त की है।

साधु का यह बताने का अंदाज बहुत ही अहंकार भरा था।

यह देख कर स्वामी जी बहुत ही शांत स्वर में बोले, आपने अपनी जिन्दगी के बीस साल ऐसी विद्या को सीखने में बर्बाद कर दिए, जो काम एक नाव पांच मिनिट में कर सकती है। आप ये बीस साल निर्धन बेसहारा गरीबों की सेवा में लगा सकते थे। या अपने ज्ञान और शक्ति का प्रयोग देश और देशवासियों की प्रगति में लगा सकते थे। परंतु आपने अपने बीस साल सिर्फ पांच मिनट बचाने के लिए व्यर्थ कर दिए, ये कोई बुद्धिमानी नहीं है।

साधु सिर झुकाए खड़े रह गये और स्वामी जी नाव में बैठ कर नदी के दूसरी किनारे चले गए।

कहानी से सीख:

इस प्रकार इस कहानी ने हमें बताया कि ज्ञान और शक्ति का सही प्रयोग आवश्यक है। किसी शक्ति को प्राप्त कर के यदि हम उस पर घमंड करते है तो यह मूर्खता है। शक्ति का सही जगह पर सही इस्तेमाल करना ही वास्तविकता में बुद्धिमानी है।

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