दैत्यराज की आज्ञा मिलते ही तीसरे बूढ़े ने अपनी कहानी बतानी शुरू की। उसने कहा, ‘आप सभी मेरे साथ जिस खच्चर को देख रहे हैं असल में वह मेरी पत्नी है।’ ये सुनते ही वहां खड़े सभी लोग चौंक गए। बूढ़ा बोला, ‘मैं एक व्यापारी हुआ करता था। एक बार मुझे व्यापार के लिए परदेश जाना पड़। जहां मुझे कई साल लग गए। एक रोज जब मैं वापस लौटा तो मैंने पाया कि मेरी पत्नी एक हब्शी गुलाम के साथ प्रेम विलाप कर रही है। ये देखकर मुझे बहुत क्रोध आया। मैं जोर से चिल्लाया। लेकिन मैं कुछ कर पाता इससे पहले मेरी पत्नी ने मुझे देख लिया। वह झट से उठी और मुझ पर जादू-टोना और मंत्र फूंकने लगी। मैं वहां से जान बचाकर भागता इससे पहले उसने मुझे कुत्ते का रूप दे दिया।’ मैं कुछ नहीं कर पाया और निराश मन से वहां से चला गया।
कई दिनों तक मैं दिन-रात सड़कों पर इधर-उधर घूमता रहा। दिन भर जो मिलता खा लेता और रात को सड़क किनारे कहीं सो जाता था। धीरे-धीरे कई हफ्तों बाद मुझे बाजार में एक कसाई की दुकान दिखी। मैंने वहां जाकर फेंकी हुई हड्डियां खानी शुरू कर दी। एक दिन मैं कसाई के पीछे-पीछे उसके घर जा पहुंचा। मुझे देखते ही कसाई की बेटी दौड़कर पर्दे के पीछे चली गई। उसके हड़बड़ाने का कारण पूछने पर उसने अपने पिता से कहा कि मैं अनजान पुरुष के सामने नहीं आऊंगी। कसाई हैरान हो गया। उसने चारों ओर देखा और हैरानी से पूछा यहां अनजान पुरुष कौन है भला?’
इसपर कसाई की बेटी ने कहा, ‘जिस कुत्ते को आप साथ लाए हैं वह असल में एक पुरुष है। जो कुत्ते के वेश में घूम रहा है। इतना कहकर उसने मुझपर कुछ मंत्र फूंका जिसके बाद मैं अपने असल रूप में आ गया। मेरे पुरुष वेश में आते ही लड़की फिर पर्दे के पीछे छिप गई। मैंने हाथ जोड़ लिए और अपनी पूरी कथा सुनाई। कुछ देर मैंने कसाई की बेटी से कहा ‘हे भाग्यवती आपने मेरे असल रूप मुझे लौटाकर मुझपर बहुत बड़ा उपकार किया है। मैं आपसे एक विनती करना चाहता हूं।’ कसाई बोला, ‘क्या विनती?’ मैंने कहा ‘मेरी इच्छा है कि मेरी पत्नी को भी कुछ ऐसा ही दंड मिले।’ यह सुनते ही लड़की तुरंत मान गई और अपने पिता से बोली ‘पिताजी मैं आपको लोटे में जल देती हूं आप इस वृद्ध के साथ जाएं और इनकी पत्नी पर ये जल छिड़क आएं।’
कसाई ने बेटी की बात मान ली। लड़की अंदर गई और कुछ देर बाद जादू-टोना किया हुआ जल लोटे में लेकर लौटी। उसने अपने पिता को समझाया कि जल का प्रयोग किस तरह करना है। फिर वह मेरे पास आई और बोली जब पिताजी इस जल को आपकी पत्नी पर फेंकेंगे तो आप उस जानवर का नाम लीजिएगा जिसके रूप में आप अपनी पत्नी को बनाना चाहते हैं। मैंने आंखें नीची रखी और सिर हिलाकर हां में उसका जवाब दिया। मैंने हाथ जोड़कर उसकी कृतज्ञता व्यक्त की और कसाई के साथ वहां से घर के लिए निकल गया।
जैसे ही मैं कसाई को लेकर घर पहुंचा तो देखा कि मेरी पत्नी आराम से बिस्तर पर सो रही थी। वह काफी गहरी नींद में थी इसलिए हमें अच्छा मौका मिल गया। कसाई ने मेरे इशारे पर फटाक से लोटे का जल मेरी पत्नी की तरफ फेंका, इतने में मैं तपाक से चिल्लाया ‘तू स्त्री का वेश छोड़कर खच्चर बन जा।’ इसके बाद ठीक वैसा ही हुआ जैसा कसाई की बेटी ने कहा था। क्षण भर में मेरी पत्नी ने खच्चर का रूप ले लिया। तब से लेकर आज तक मैं इसे यूं ही साथ लेकर घूमता हूं। बूढ़े की कहानी सुनकर दैत्य को विश्वास न हुआ। दैत्य ने खच्चर से पूछा, ‘बूढ़ा जो कह रहा है क्या वो सच है? क्या सचमुच तुम इसकी पत्नी हो?’ इस पर खच्चर ने हां की मुद्रा में सिर हिलाकर जवाब दिया। अब दैत्य को तीसरे बूढ़े की कहानी पर विश्वास हो चुका था।
दैत्य बोला, ‘तुम्हारी आपबीती वास्तव में विचित्र है। अपने वादे के अनुसार मैं इस व्यापारी के अपराध का एक तिहाई अंश माफ करता हूं। अब यह व्यापारी अपराध मुक्त है। तुम तीनों वृद्धों के कारण इसका मृत्युदंड माफ हो गया है।’ दैत्य ने एक कोने में चुपचाप अपने मृत्यु की राह देख रहे व्यापारी से कहा, ‘आज इन तीनों ने अगर तुम्हारी सहायता न की होती तो तुम मारे गए होते। इन तीन बुजुर्गों के कारण तुम्हें जीवन दान मिला है। अब तुम इन तीनों के प्रति अपना आभार प्रकट करो।’ इतना कहते ही विशालकाय दैत्य अंतर्ध्यान हो गया। उसके जाते ही व्यापारी तीनों वृद्धों के चरणों में गिर पड़ा।
व्यापारी फूट-फूटकर रोने लगा और बोला ‘आज आप तीनों नहीं होते तो अब तक मैं परलोक सिधार चुका होता। आप सभी का कोटि-कोटि धन्यवाद।’ सभी वृद्धों ने व्यापारी का आभार ग्रहण किया और अपने-अपने रास्ते के लिए रवाना हो गए। व्यापारी भी अपने घर लौट आया। उसके जाने के बाद से घर में मातम पसरा हुआ था। शोक-विलाप जारी था। उसके बाल-बच्चे और पत्नी दहाड़े मारकर रो रहे थे। इसी बीच व्यापारी को सही-सलामत आता देखकर किसी को अपनी आंखों पर विश्वास न हुआ। व्यापारी को जिंदा देख सभी घरवाले बेहद खुश हुए। वे नाचने-गाने लगे। सबके पूछने पर व्यापारी ने सभी को पूरी बात बताई। सभी ने तीनों बुजुर्गों को मन ही मन धन्यवाद कहा और हंसी-खुशी साथ रहने लगे।
यह कहानी खत्म होते ही शहरजाद बोली, ‘मैंने अभी जो कहानी सुनाई इससे बेहतर भी एक कहानी है जो मैं जानती हूं। यह कहानी एक मछुआरे की है।’ ये सुनते ही छोटी बहन दुनियाजाद बोली ‘दीदी, अभी रात बाकी है। आप इस कहानी को भी सुनाएं।’ वहां बैठे बादशाह शहरयार ने इस पर कुछ नहीं कहा वे चुप रहें। इतने में शहरजाद खुद ही बोल पड़ी ‘यह कहानी बादशाह को भी खास पसंद आएगी, मुझे इस बात का भरोसा है।’ यह सुनते ही बादशाह शहरयार ने शहरजाद को कहानी सुनाने की अनुमति दे दी।
अब शहरजाद ने बादशाह को कौन से मछुआरे की कहानी सुनाई? वो कहानी क्या थी? क्या मछुआरे की कहानी बादशाह शहरयार को पसंद आई? इस कहानी में आगे क्या हुआ जानने के लिए जरूर पढ़ें अगला अध्याय:
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