जुबैदा की कहानी सुनने के बाद खलीफा ने अमीना को अपना किस्सा सुनाने को कहा। अमीना ने कहा, “आप जुबैदा की कहानी सुन चुके हैं। अब मैं आपको अपनी कहानी सुनाती हूं। मेरी मां मुझे लेकर अपने घर आ गई ताकि उसे विधवापन का अकेलापन न खले। फिर उसने मेरी शादी नगर के एक बड़े आदमी के बेटे से कर दी। दुर्भाग्य से एक साल बाद ही मेरे पति की मौत हो गई, लेकिन उसकी करीब 90 हजार रियाल की संपत्ति मुझे मिल गई। इतना सारा पैसा मेरे जीवन भर के गुजारे के लिए पर्याप्त था। पति की मौत के छह महीने बीत जाने पर मैंने 10 कीमती जोड़े बनवाएं और हर जोड़े की कीमत करीब 1-1 हजार रियाल थी। पति की मौत के एक साल पूरा हो जाने के बाद मैंने उन कपड़ों को पहनना शुरू किया।”
एक दिन की बात है, मेरे नौकर ने मुझे आकर बताया कि आपसे एक बुढ़िया मिलना चाहती है। अगर आप कहें, तो यहां ले आएं? मैंने आज्ञा दे दी। बुढ़िया आकर मुझसे कहा, ‘मैंने सुना है कि आप बहुत दयालु हैं। मुझे आपकी मदद चाहिए। एक युवती है, जिसके माता-पिता की मौत हो चुकी है। आज रात उसकी शादी है। हम दोनों ही इस शहर में किसी को नहीं जानते। उसका विवाह जिस लड़के से हो रहा है, वह बहुत ही धनी है और उसके रिश्तेदार भी। मेरी आपसे प्रार्थना है कि आप उस शादी में शामिल हों, इससे मेरी प्रतिष्ठा बच जाएगी। आपके होने से धनी लड़के वाले हमें गरीब नहीं समझेंगे।”
“अगर आप मेरी गरीबी को देखते हुए ऐसा करने से इनकार कर देंगी, तो मेरी इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी। इस नगर में मेरा कोई अपना भी नहीं है, जिससे मैं सहायता मांग सकूं। वैसे भी गरीबों और अनाथों पर दया करने वाली आपके जैसी परोपकारी और कोई दूसरी महिला नहीं है।”
इतना कहकर बुढ़िया सिसकने लगी। उसे रोता देखकर मेरा हृदय भर आया और मैंने उसे ढांढ़स बंधाते हुए कहा, “तुम चिंता न करो, मैं शादी में जरूर आऊंगी। मुझे अपना पता दे दो, मैं खुद ही वहां पहुंच जाऊंगी। तुम बस विवाह की तैयारियां करो।”
मेरी बात सुनकर बुढ़िया काफी खुश हुई और उसने कहा, “आपको मेरा मकान खोजने में परेशान होगी, इसलिए में शाम को खुद आकर साथ ले जाएगी।”
मैंने शादी में जाने की तैयारी शुरू कर दी। मैंने सबसे कीमती जोड़ा पहना और महंगे-महंगे गहने पहने। मैंने अपनी कई दासियों को भी अच्छे-अच्छे कपड़े और गहने पहनाकर तैयार कर दिया। इसके बाद शाम को बुढ़िया घर आई और अपने साथ घर ले गई।
हम चलते-चलते एक बड़ी-सी गली में पहुंचे। वहां हम एक बहुत बड़े दरवाजे के सामने खड़े हो गए। दरवाजे के ऊपर पर लिखा था “इस घर में हमेशा खुशी का निवास रहता है।” बुढ़िया के ताली बजवाते ही दरवाजा खुल गया और वह मुझे अंदर ले गई।
वहां एक सुंदर महिला ने गला लगाकर मेरा स्वागत किया और बड़े ही सम्मान से एक आलीशान कमरे में बैठा दिया। फिर उस महिला ने कहा कि तुम्हें यहां किसी और की शादी में नहीं, बल्कि तुम्हारी ही शादी में बुलाया गया है।
यह सुनकर मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा, लेकिन उस स्त्री ने मेरी प्रशंसा करते हुए मुझे कुछ और पूछने का मौका ही नहीं दिया।
थोड़ी देर बातें करने के बाद उसने शादी के रहस्य से पर्दा उठाते हुए कहा, “बीबी, दरअसल मेरा एक भाई है, जो बेहद खूबसूरत है। वह तुम्हारी खूबसूरती की बारे में काफी कुछ सुना है और तुमसे शादी करना चाहता है। अगर तुम उसके साथ शादी नहीं करोगी, तो उसे बहुत दुख होगा। वह युवक हर तरह से तुम्हारे योग्य है और तुम्हें हमेशा खुश रखेगा।”
उस स्त्री ने इसके बाद बहुत देर तक अपने भाई की तारीफ की और कहा कि अगर तुम्हारा हल्का-सा भी संकेत मिले, तो उसे तुम्हारे आने की सूचना दे दूं।
हालांकि, मैं पति की मौत के बाद फिर से शादी करने की इच्छुक नहीं थी, लेकिन उस आदमी इतनी तारीफ सुनने के बाद मैं इनकार नहीं कर पाई। उस स्त्री की बात सुनने के बाद मैं धीरे से मुस्कुरा कर चुप हो गई। मेरे मौन को उसने मेरी स्वीकृति समझ लिया और ताली बजाई।
उसके ऐसा करते ही पास के कमरे से एक युवक बहुत शानदार कपड़े पहनकर आया। उसके रूप को देखकर मुझे अपने भाग्य पर बहुत खुशी हुई। वह मेरे पास बैठकर बहुत ही सभ्यता से बातें करने लगा। इसके बाद उस स्त्री ने दूसरी बार ताली बजाई, तो दूसरे कमरे से काजी और चार अन्य पुरुष निकले। काजी ने शरीयत के अनुसार हमारी शादी करा दी, वे चारों पुरुष गवाह बन गए। विवाह के दौरान मैंने पतिव्रता होने का व्रत लिया।
विवाह के पश्चात मैं धनवान स्त्रियों की तरह नहीं, बल्कि रानी की तरह सुखपूर्वक पति के घर रहने लगी। कुछ दिनों बाद मैंने बड़े घर की स्त्रियों की तरह बाजार से रेशमी थान खरीदकर बेचने की इच्छा जताई, मेरे पति ने इसकी इजाजत दे दी। मैं बुढ़िया और दो दासियों को लेकर शहर के सबसे बड़े बाजार में गई। वहां बुढ़िया ने एक नौजवान व्यापारी के बारे में बताया, जिसे वह जानती थी। उसने कहा कि इस व्यापारी के पास कई मूल्यवान थान है। मैंने सोचा जब एक ही जगह सब सामान मिल जाए तो अच्छा है, इसलिए उसकी दुकान में चली गई।
बुढ़िया ने कहा कि इसके पास हर तरह का सामान है, तुम जो चाहो ले लो। फिर उस व्यापारी ने बुढ़िया से मेरी पसंद जानते हुए कई सारे थान दिए। मैंने उनमें से एक थान पसंद किया और बुढ़िया से उसके दाम पूछने को कहा। व्यापारी ने कहा, “यह थान बेशकीमती है, मैं इसे असंख्य अशर्फियां देने पर भी नहीं बेचूंगा, लेकिन अगर यह सुंदरी अपने गाल का चुंबन मुझे दे दो, तो यह थान उसे दे दूंगा।”
उसकी इस बात पर मैं नाराज हो गई और बुढ़िया से कहा कि यह व्यापारी दुष्ट है। इतनी गंदी बात करने की इसकी हिम्मत कैसे हुई, लेकिन बुढ़िया ने भी उस व्यापारी का ही पक्ष लिया और कहा, “सुंदरी, ऐसा करने में क्या परेशानी है। इसे चुपचाप एक चुंबन दे दो।”
“मैं इतनी मूर्ख थी और वह थान मुझे इतना पसंद आ गया था कि मैं इसके लिए तैयार हो गई।” बुढ़िया और दोनों दासियां मेरी आड़ करके सड़क की ओर खड़ी हो गईं। मैंने अपने मुखे से वस्त्र हटाते हुए अपना गाल उस व्यापारी की ओर कर दिया।
उस दुष्ट व्यापारी ने चुंबन लेने की जगह मेरे गाल पर जोर से काट दिया, जिससे मेरा गाल लहूलुहान हो गया और मैं तड़कपर बेहोश हो गई। इस दौरान मौका पाकर व्यापारी अपना माल समेटकर और दुकान बंद करके भाग गया। थोड़ी देर बाद होश आने पर मैंने अपना गाल लहुलूहान पाया। मेरे रोने की आवाज से वहां भीड़ इकट्ठा हो गई, लेकिन उन्होंने समझा कि मैं किसी बीमारी की वजह से बेहोश हुई हूं। थोड़ी देर बाद मुझे होश आने पर बुढ़िया और दासियों ने राहत की सांस ली। बुढ़िया ने मुझसे माफी मांगते हुए कहा कि मेरे कहने पर ही तुम इस दुष्ट व्यापारी की दुकान पर आई और मुसीबत में फंस गईं। तुम घर चलो, मैं तुम्हारे घाव पर ऐसी दवा लगाऊंगी कि यह तीन दिन में ठीक हो जाएगा।
मैं जैसे-तैसे घर पहुंची और कमजोरी के कारण फिर से बेहोश हो गई। बुढ़िया किसी तरह मुझे होश में लाई, फिर पलंग पर लेटा दिया। रात को जब पति आया और मुझसे पूछा कि लेटी क्यों हो, तो मैंने बहाना बनाया कि मुझे सिर दर्द हो रहा है। मुझे लगा कि वह मेरी बात मान लेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उसने मेरे सिर पर हाथ फेरने के बाद मुंहे से कपड़ा हटा दिया और गाल पर घाव देखकर गुस्सा हो गया और पूछने लगा कि गाल पर चोट कैसे लगी।
वैसे तो मैं उसके कहने पर ही बाजार गई थी और मेरी कोई गलती भी नहीं थी, लेकिन सच कहने की मेरी हिम्मत नहीं हुई। मैंने झूठ बोला कि बाजार में एक लकड़हारा लकड़ी का गठ्ठर लेकर मेरे पास से गुजरा था। उसकी एक लकड़ी मेरे गाल में चुभ गई, जिससे मुझे चोट लग गई।
यह सुनकर मेरा पति गुस्सा में भर गया और कहा कि अगर यह बात सच है, तो मैं कल ही सारे लकड़हारों को फांसी पर चढ़वा दूंगा। मैं घबराई कि मेरे एक झूठ से सभी लकड़हारे बेकसूर ही मारे जाएंगे।
इसके बाद पति ने फिर से पूछा, तुम सच-सच बताओ कि तुम्हारे गाल पर घाव कैसे लगा, लेकिन मेरी सच बताने की हिम्मत नहीं हुई। मैंने फिर झूठ बोला कि बाजर में एक कुम्हार गधे पर बर्तन लेकर जा रहा था। उसके गधे ने मुझे धक्का मारा, जिस कारण मैं जमीन पर गिर गई और वहां गिरा एक कांच का टुकड़ा मेरे गाल में धंस गया। यह सुनकर मेरे पति ने कहा, अगर यह सच है, तो मैं कल ही मंत्री जफर से कहकर नगर के सभी कुम्हारों को यहां से बाहर निकलवा दूंगा। यह सुनकर मैं घबराई कि आखिर निर्दोष कुम्हारों को सजा क्यों मिले।
इस पर नाराज होते हुए मेरे पति ने कहा कि जब तक तुम सच नहीं बताओगी मेरा गुस्सा कम नहीं होगा। मैंने कहा कि चलते-चलते मुझे चक्कर आ गया और मैं गिर गई, जिससे मेरे गाल में चोट लग गई। यह सुनकर मेरा पति गुस्से से आग-बगुला हो गया और बोला, तुम झूठ पर झूठ बोल रही हो। इसके बाद उसने ताली बजाई और तीन गुलाम वहां आए। मेरे पति ने उन्हें तलवार से मेरे दो टुकड़े करके लाश को नदी में मछलियों को खाने के लिए फेंकने का आदेश दिया। गुलामों ने मुझसे कहा, अपने अंतिम समय में ऊपर वाले को याद कर लो। मैंने कहा थोड़े वक्त के लिए प्राणदान दे दो कुछ कहना है मुझे, लेकिन आंसुओं और हिचकियों के आगे मैं कुछ कह नहीं सकी। इस बीच मेरे पति का क्रोध बढ़ता गया, लेकिन मैं कुछ न कह सकी। मैंने अपने पति से कुछ और मोहलत मांगी, लेकिन उसने गुलामों को मुझे मारने का आदेश दिया।
गुलाम मुझे मारने ही वाले थे कि इतने में बुढ़िया वहां आ गई। उसने मेरे पति को बचपन में पाला था और उसे अपना दूध पिलाया था। वह उसके पैरों में गिर पड़ी और अपने दूध के बदले में मेरे लिए जीवनदान मांगा। मेरे पति ने उसके कहने पर मुझे मरवाया तो नहीं, लेकिन कहा कि दंड जरूर मिलेगा। उसके आदेश से गुलामों ने मुझे बहुत कोड़े मारे, जिससे मैं बेहोश हो गई और मेरे शरीर के कई हिस्सों से मांस उधड़ गया। मुझे एक महल के कमरे में बंद कर दिया, जहां मैं कई महीने तक पड़ी रही। इस दौरान बुढ़िया ने मेरा ख्याल रखा और मरहम-पट्टी की। उसकी सेवा से मैं स्वस्थ तो हो गई, लेकिन मेरे शरीर पर काले निशान रह गए, जिन्हें आपने देखा।
जब मैं चलने-फिरने योग्य हुई, तो सोचा कि पहले पति के मकान में जाकर रहूं, जहां मेरी संपत्ति थी, लेकिन उस गली में जाने पर मकान तो दूर उसका एक निशान तक नहीं मिला। मेरे दूसरे पति ने उस घर को खुदवाकर मिट्टी में मिला दिया था। मैं इसके खिलाफ बोल भी न सकी, क्योंकि मुझे डर था कि कहीं वह गुस्से में आकर मुझे मरवा न दे।
अपनी जान बच जाने पर मैं ऊपर वाले को धन्यवाद कहते हुए जुबैदा के पास गई और उसे अपनी पूरी कहानी कह सुनाई। उसने कहा कि मेरे पास काफी पैसा है, जिससे हम दोनों को परेशानी नहीं होगी। जुबैदा ने यह भी बताया कि कैसे उसकी सगी बहनों की जलन की वजह से उसका मंगेतर शहजादा समुद्र में डूब गया और फिर जिस परी की उसने मदद की थी उसने उससे छल करने वाली उसकी सगी बहनों को जानवर बना दिया।
फिर मैं जुबैदा के साथ रहने लगी। मेरी मां की मौत के बाद मेरी छोटी बहन साफी अकेली हो गई, जिसे जुबैदा ने यहां बुला लिया, इस तरह हम तीनों बहनें खुशी से साथ-साथ रहनी लगीं।
हम लोग मिलजुलकर घर का काम करते। कभी बाजार सौदा लाने मैं जाती, तो कभी साफी। कल मैं बाजार गई, तो जिस मजदूर के सिर पर सामान लदवाकर लाई, वह बहुत हंसमुख था और सभ्य भी था। इसलिए, हमने पूरे दिन उसे अपने साथ रहने दिया, जिससे हमारा मनोरंजन हो सके।
रात को तीन फकीरों ने हमसे रात भर के लिए आश्रय मांगी। हमने उन्हें स्वादिष्ठ भोजन कराया और शराब पिलाई। वे देर रात तक मनोरंजन करते रहे। इसके बाद मोसिल के तीन बड़े संभ्रांत दिखने वाले व्यापारियों ने भी रात भर की शरण मांगी, जो हमने दे दी।
अमीना ने कहा कि हालांकि हमारे सभी मेहमानों ने हमसे वादा किया था कि वो सबकुछ चुपचाप देखेंगे और किसी चीज के बारे में कुछ नहीं पूछेंगे, लेकिन उन्होंने अपना वादा नहीं निभाया और उन दोनों जानवारों और कोड़ों से मारे जाने की वजह से मेरे शरीर के निशानों के बारे में पूछने लगे। हमें इस पर बड़ा क्रोध आया, हम चाहते तो उनके प्राण ले सकते थे, लेकिन हमने ऐसा नहीं किया और उनकी कहानी सुनकर उन्हें जाने दिया।
दोनों स्त्रियों की कहानियां सुनकर खलीफ हारू रशीद को बहुत हैरानी हुई। उसने जुबैदा से पूछा कि क्या परी ने बताया था कि ये कब जानवर से इंसान बनेंगी। जुबैदा ने कहा कि मैं यह बताना भूल गई कि परी ने जाते मुझे अपने थोड़े-से बाल दिए थे और कहा था कि अगर तुम इनमें से एक भी बाल आग में डालोगी, तो मैं दुनिया में जहां भी रहूं तुम्हारे पास आ जाऊंगी।
खलीफा ने पूछा, वे बाल कहां हैं। जुबैदा ने कहा, मैं वे बाल हमेशा अपने पास रखती हूं। इतना कहकर उसने एक पुड़िया में से कुछ बाल निकाले और उन्हें खलीफा को दिखाया।
खलीफा ने भी उस परी को देखने की इच्छा जताई। इसके बाद जुबैदा ने एक-दो बाल नहीं, बल्कि पूरी पुड़िया ही आग में डाल दी और धुआं उठते ही कुछ पलों में सुंदर-सी परी सामने आ खड़ी हुई।
उस परी ने खलीफा से कहा, “आप धरती पर खुदा के प्रतिनिधि हैं, आप जो भी कहेंगे मैं उसका पालन करूंगी। जुबैदा ने मेरी जान बचाई थी, इसलिए मैं इसकी बड़ी आभारी हूं। मैंने इसके उपकारों के बदले में इसके साथ धोखा और नीचतापूर्ण बर्ताव करने वाली इसकी बहनों को जानवर बनाया था। अब मेरे लिए क्या आज्ञा है?”
खलीफा ने कहा, “ये दोनों अपने किए का काफी दंड भुगत चुकी हैं, इसलिए इन्हें फिर से इंसान बना दो। साथ ही अमीना को दुख देने वाले इंसान के बारे में बताओ और इसके शरीर पर बने काले निशान ठीक कर दो।”
परी ने कहा कि मैं सब ठीक कर दूंगी। परी ने हाथ में पानी लेकर कुछ मंत्र पढ़े और फिर दोनों जानवरों को इंसानी शरीर दे दिया। साथ ही अमीना के निशान ठीक कर दिए। उसका शरीर सोने जैसा दमकने लगा। इसके बाद परी ने खलीफा से कहा कि अमीना को दुख देने वाला कोई और नहीं, बल्कि तुम्हारो बेटा अमीन है। उसने अमीना की खूबसूरती पर मोहित होकर धोखे से उसके साथ शादी की थी।
यह कहकर परी गायब हो गई। खलीफा ने सारी बात जानने के बाद अपने बेटे को बुलवाया, लेकिन डर के कारण उसकी आने की हिम्मत नहीं हुई। इस पर खलीफा ने आदेश दिया कि अमीन इसे पत्नी के रूप में सम्मान सहित अपने साथ रखे। शहजादा अमीन ने खलीफा के आदेश का सम्मान करते हुए ऐसा ही किया। इसके बाद खलीफा ने जुबैदा से शादी कर ली और साफी और बाकी दो बहनों की फकीर बने तीनों राजकुमारों से शादी करवा दी। साथ ही उन्हें अपने राज्य में उच्च पद भी दिया।
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