मंत्री अपनी बेटी शहजाद को कहानी सुनाता है ‘एक समय शहर में बहुत बड़ा व्यापारी हुआ करता था। गांव में उसके कई घर, पशुशालाएं और कारखाने थे। एक रोज वह अपने परिवार के साथ गांव आया और अपनी पशुशाला को देखने गया। जहां एक कोने में खूंटे से बंधा गधा और बैल आपस में बात कर रहे थे। व्यापारी पशु-पक्षियों की भाषा भली-भांति समझता था इसलिए वह कौतूहल से वहां रुक गया और गधे-बैल की बात सुनने लगा।
बैल गधे को अपनी पीड़ा सुना रहा था. वह कह रहा था कि, ‘तू कितना खुशकिस्मत है जो हमेशा मालिक के साथ रहता है। मालिक तेरा ख्याल रखता है, तुझे अच्छा जौ खाने को देता है। बदले में मालिक बस तुझसे इतना ही काम लेता है कि तुझ पर सामान लादकर या खुद बैठकर कभी-कभी कहीं चला जाता है। तेरा जीवन मेरे जीवन से कई गुना अच्छा है’। बैल कहता है, ‘मैं बहुत अभागा हूं। दिन-रात मेहनत करता हूं बावजूद सुबह उठते ही मालिक मेरी पीठ पर हल टांगकर दिन भर मुझे चाबुक मारता और काम कराता है। खाने के लिए भी सूखा भूसा ही मिलता है। गंदगी-गोबर में दिन काटता हूं।’ इतना कहते ही बैल मायूस हो जाता है.
उसे मायूस देख गधा कहता है ‘भाई सच में तुम्हारा जीवन बहुत कष्टकारी है। तुम्हारे साथ अन्याय हो रहा है। मैं तुम्हें मालिक के प्रकोप से बचने का उपाय बताता हूं तुम वही करना, फिर तुम खुशी से रह पाओगे।’ बैल ने तपाक से पूछा ‘क्या सच में ऐसा होगा मेरे दोस्त? जल्दी बताओ क्या तरकीब है।’ गधा कहता है कि ‘तुम एक काम करो अपने आप को बीमार और कमजोर दिखाओ ऐसे में मालिक तुम पर तरस खाएगा और तुमसे ज्यादा मेहनत नहीं करवाएगा।’ बैल को यह तरकीब अच्छी लगी और वह गधे की बात झट से मान गया। व्यापारी वहां खड़े होकर दोनों की बातें सुन चुका था।
अगली सुबह जब हलवाहा खेत जोतने के लिए बैल को लेने गया तो उसने देखा कि बैल अचेत जमीन पर गिरा हुआ है। उसके शरीर में जान नहीं है और वह काफी कमजोर लग रहा है। हलवाहे को कुछ समझ नहीं आया कि अचानक क्या हुआ। वह भागा-भागा व्यापारी के पास आया और बोला ‘मालिक बैल का स्वास्थ्य ठीक नहीं जान पड़ता है। खेत कैसे जोते?’ यह सुनते ही व्यापारी समझ गया कि बैल गधे की तरकीब के अनुरूप बर्ताव कर रहा है। व्यापारी ने चालाकी दिखाई और हलवाहे से कहा कि ‘आज खेत जोतने के लिए गधे को ले जाओ।’
हलवाहा वापस पशुशाला में आया और गधे को लेकर खेत चला गया। गधे ने इससे पहले कभी खेत नहीं जोता था इसलिए दिनभर कड़ी धूप में वह बहुत थक गया। इधर हलवाहा बार-बार उसे कोड़े मार रहा था। शाम होते तक गधे के पांव में जान नहीं बची। किसी तरह दिन गुजरा और गधा वापस पशुशाला पहुंचा। उसे देख बैल बोला ‘भाई तुमने सही तरकीब सुझाया। आज का दिन तो बड़े मौज में बीता’। लेकिन गधा इतना थक चुका था कि कुछ बोल ही नहीं पाया और अपने स्थान पर गिर पड़ा. मन ही मन वह खुद को कोसने लगा कि आखिर क्यों उसने बैल को ज्ञान दिया। बैल की मदद के चक्कर में उसने अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली।’ ये कहानी सुनाकर मंत्री अपनी बेटी से कहता है, ‘शहजाद तुम क्यों उस गधे की तरह अपने आप को संकट में डालना चाहती हो? क्यों अपना जीवन बर्बाद करना चाहती हो? बेटी, निरंकुश शहरयार से ब्याह की जिद छोड़ दो।’ पिता की कहानी सुनने के बाद भी शहजाद का मन नहीं बदलता और वह शहरयार से विवाह के लिए दोबारा कहती है। मंत्री गुस्सा हो जाता है और कहता है कि ‘अगर तूने अपनी जिद नहीं छोड़ी तो मैं तुझे वह दंड दूंगा जो व्यापारी ने अपनी पत्नी को दिया था.’ शहजाद बोल पड़ती है ‘कौन सा दंड पिताजी? बैल और गधे का क्या हुआ?’
बेटी के पूछने पर मंत्री ने उसे आगे की कहानी सुनाता है। वह कहता है ‘एक रोज व्यापारी रात के भोजन के बाद टहलते-टहलते अपनी पत्नी के साथ पशुशाला पहुंचा। उसने देखा कि आज फिर गधा और बैल आपस में बात कर रहे हैं। वह उत्सुकता से छिपकर उनकी बातें सुनने लगा और पत्नी को भी छिपने को कहा. उसने सुना कि गधा बैल से पूछ रहा है कि ‘कल सुबह जब हलवाहा खेत ले जाने के लिए तुम्हें लेने आएगा तो तुम क्या करोगे?’ बैल जवाब देता है ‘भाई तुमने जो बताया था मैं वैसा ही करूंगा।’ इस पर गधा कहता है ‘ना दोस्त, कल ऐसा न करना। रास्ते में मैंने व्यापारी को कहते सुना था कि कल कसाई आएगा और तुम्हारी खाल ले जाएगा क्योंकि मालिक को लगता है कि तुम बूढ़े हो चुके हो। तुम मेरे दोस्त हो इसलिए मैं तुम्हें आगाह कर रहा हूं बाकी जैसी तुम्हारी इच्छा।’ गधे की बात सुनकर बैल असमंजस में पड़ गया कि वह क्या करें। अंत में उसने कहा कि कल वह बीमार होने का नाटक नहीं करेगा और काम पर जाएगा।
इतने में छिपकर दोनों पशुओं की बातें सुन रहा व्यापारी ठहाके लगाकर हंसने लगा। उसकी पत्नी ने वजह पूछी तो व्यापारी ने महज इतना ही कहा कि वह गधे और बैल की बातें सुनकर हंस रहा है। पत्नी ने उससे कहा ‘आप ये कला मुझे भी सिखाइए। मैं भी जानना चाहती हूं कि पशु-पक्षी आपस में क्या बात करते हैं?’ व्यापारी ने साफ इंकार कर दिया और घर आ गया। पत्नी बार-बार उसे यह कला सिखाने के लिए कहती रही लेकिन व्यापारी मानने को ही तैयार नहीं था उसने कहा कि ‘अगर मैंने तुझे ये विद्या सिखाई तो मैं जीवित नहीं बचूंगा।’ बावजूद पत्नी जिद पर अड़ी रही। वह रात भर नहीं सोई और न व्यापारी को सोने दिया। अगले दिन भी पत्नी की जिद शांत नहीं हुई। कई रोज गुजर गए व्यापारी अपनी पत्नी को समझाता रहा लेकिन मामला खत्म होने की बजाए बढ़ता जा रहा था।
एक रोज व्यापारी परेशान, दुखी मन लिए घर के बाहर बैठा था। उसने देखा कि आंगन में मुर्गा-मुर्गी प्यार भरी बातें कर रहे हैं, जिसे देखकर वहां खड़ा एक कुत्ता उन पर भौंक रहा है. वह मुर्गा-मुर्गी से कहता है, ‘तुम दोनों को लज्जा नहीं आती, हमारे मालिक परेशान हैं और तुम दोनों खुशी मना रहे हो। इस पर मुर्गा कहता है ‘हमारा मालिक मूर्ख है जो एक स्त्री का पति है। मुझे देखो मैं कितना सुखी हूं, यहां की पचास मुर्गियां मेरे अधीन हैं। हमारा स्वामी अगर बुद्धि से काम ले तो एक क्षण में उसकी पीड़ा दूर हो जाएगी।’ कुत्ता कहता है ‘मालिक ऐसा क्या करे?’ मुर्गा कहता है ‘हमारे मालिक को चाहिए कि एक मजबूत लाठी ले और अपनी पत्नी की कोठरी में जाए। पहले मनाएं और तब भी अगर पत्नी हठ न छोड़े तो लाठी से उसकी जमकर पिटाई करें। पत्नी रो-धोकर स्वत: शांत हो जाएगी।’
मुर्गे की बात व्यापारी ने सुनी और उसने वही किया जो मुर्गे ने कहा था। पत्नी की कोठरी में जाकर उसने लाठी से उसकी जमकर पिटाई की। पत्नी लाख चीखती रही, रोती रही, माफी मांगती रही लेकिन व्यापारी तब तक नहीं रुका जब तक पत्नी ने जिद नहीं छोड़ी। शहरजाद पिता के सिरहाने खड़ी ये कहानी सुन रही थी। मंत्री ने कहा कि ‘बेटी अगर तुमने भी अपनी हठ नहीं छोड़ी तो मैं भी तुम्हारे साथ ऐसा ही करुंगा।’ शहरजाद इतने पर भी नहीं मानी और शहरयार से विवाह के फैसले पर कायम रही। उसने मंत्री से कहा, ‘पिताजी मुझे भी ऐसी कई ऐतिहासिक कहानियां मालूम हैं लेकिन उन्हें कहने का कोई फायदा नहीं है। आप मेरी बात मान लें अन्यथा में खुद आपके खिलाफ जाकर शहरयार से विवाह करने चली जाऊंगी।’
बेटी की हठ के आगे मंत्री ने घुटने टेक दिए और कहा ‘मैं कल ही शहजादे शहरयार से इसके लिए बात करुंगा।’ अगले दिन सुबह-सुबह मंत्री शहजादे शहरयार के पास पहुंचा और बोला ‘बादशाह मेरी बेटी आपके साथ विवाह सूत्र में बंधना चाहती है।’ मंत्री की बात सुनकर बादशाह को बड़ा आश्चर्य हुआ उसने कहा ‘मंत्री तुम मेरा व्यवहार जानते हो फिर भी अपनी बेटी को मेरे पास भेज रहे हो क्यों?’ मंत्री बोला ‘बादशाह, मैं बेटी की जिद के आगे विवश हूं वो खुद आपसे विवाह करना चाहती है। उसका कहना है कि इस संसार में वह एक रात किसी की दुल्हन बनकर बिताना और अगले दिन मरना पसंद करेगी।’ बादशाह को बड़ा आश्चर्य हुआ उसने कहा ‘मंत्री तुम जानते हो कि अगले दिन तुम्हें ही उसे मृत्यु देनी होगी। कहीं उस वक्त तुम कमजोर न पड़ जाओ’ मंत्री बोला ‘बादशाह मैंने अपनी बेटी को समझाया लेकिन वह नहीं मानती, मेरे लिए आपकी आज्ञा सर्वोपरि है अत: मैं उसे मृत्युदंड देने से पीछे नहीं हटूंगा।’
ये सुनते ही शहजादे शहरयार ने कहा ‘ठीक है! सब तय है तो देरी किस बात की। जाओ अभी ही अपनी बेटी को ले आओ मैं आज रात ही उससे विवाह करुंगा।’ बादशाह का संदेशा लेकर मंत्री अपनी बेटी शहरजाद के पास आता है और उसे पूरी बात बताता है। शहरजाद ये सुनकर प्रसन्न हुई कि शहजादे उससे विवाह के लिए मान गए। उसने पिता का आभार किया और मन दुखी न करने को कहा। विवाह की तैयारियां हो रही थी कि तभी शहरजाद ने अपनी छोटी बहन दुनियाजाद को बुलाया और उससे एक वचन लिया। शहरजाद ने कहा कि ‘बहन, मुझे वचन दो कि तुम ठीक वैसा ही करोगी जैसा मैं तुम्हें कहूंगी।’ दुनियाजाद अपनी बड़ी बहन की आज्ञा मान लेती है और उसे वचन दे देती है।
शहरजाद दुनियाजाद से कहती है ‘जब मैं ब्याह करके शहजादे के यहां जाऊंगी तो उनसे निवेदन करके तुम्हें भी वहां बुलाऊंगी। तुम मेरे बुलाने पर वहां आ जाना। मैं शहजादे से कहूंगी कि मरने से पहले तुम्हारे साथ वक्त बिताना चाहती हूं इसलिए तुम्हें बुलवाया है।’ दुनियाजाद अपनी बड़ी बहन की बात मान गई और कहा ‘दीदी आपने जैसा कहा मैं वैसा ही करुंगी।’ शाम को मंत्री विवाह के लिए शहरजाद को लेने आता है। धर्मानुसार शहजादे शहरयार और अपनी बेटी शहरजाद का विवाह कराता है और दुखी मन लिए लौट आता है।
इधर शहरयार अपनी नई बेगम शहरजाद के कमरे में गया। कक्ष में पहुंचते ही उसने कहा ‘चेहरे से नकाब हटाइए।’ शहरजाद ने बादशाह की आज्ञा का पालन किया और चेहरे से नकाब उतार दिया। शहरजाद का सुंदर रूप देख शहरयार उस पर मुग्ध हो गया और उसे निहारने लगा। इतने में शहरजाद की आंखों से आंसू गिरने लगे। ये देख शहरयार ने घबराकर पूछा ‘तुझे क्या हुआ?’ शहरजाद ने उत्तर दिया ‘शहजादे! मेरी एक बहन है जो मुझे प्राणों से प्रिय है मेरी इच्छा है कि वह मेरे साथ आज रात यहां रहे ताकि कल सुबह मैं अंतिम बार उससे गले मिल सकूं।’ शहजादे शहरयार ने उसकी बात मान ली और उसे बुलावा भेजा।
संदेशा पाकर पहले से तैयार बैठी दुनियाजाद अपनी बहन के पास आने के लिए निकल गई। वह महल में आई और अपनी बहन के कक्ष में घुस गई। बादशाह ने कहा ‘शहरजाद इसे बगल में लगे पलंग पर सुला दो।’ शहरजाद ने बादशाह की आज्ञा के मुताबिक बहन को पास के पलंग में सुलाया और खुद बादशाह के साथ शाही पलंग पर सो गई। हल्की रोशनी होते ही दुनियाजाद उठी और बड़ी बहन के पास आकर बोली ‘दीदी! तुम्हारी चिंता में मैं रात भर सो नहीं पाई। मन बहुत घबरा रहा है। कोई कहानी सुनाओ ताकि जी बहल जाए।’ दुनियाजाद की बात सुनकर उसने बादशाह शहरयार की तरफ देखा और उनसे अनुमित मांगी। बादशाह शहरयार ने शहरजाद को कहानी सुनाने की अनुमति दे दी।
शहरजाद ने दुनियाजाद को कौन सी कहानी सुनाई? क्या वह अपनी योजना में कामयाब हुई? या अगले दिन शहरयार ने उसे भी मरवा दिया…इन सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़े अगला अध्याय।
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