किसी शहर में एक मोची रहा करता था। उसके घर के पास ही उसकी एक छोटी-सी दुकान थी। उस दुकान में वह मोची जूते बनाने का काम करता था। तैयार जूतों को बेचकर जो भी पैसे मोची के हाथ लगते उन्हीं से वह अपने परिवार का पेट पालता था।
हालांकि, मोची अपना काम बड़ी मेहनत और लगन से करता था, लेकिन धीरे-धीरे उसके जूते खरीदने वालों की संख्या कम होने लगी। ऐसे में उसे कम दाम पर अपने तैयार जूतों को बेचना पड़ता था। इसका नतीजा यह हुआ कि समय के साथ उसका सारा जमा पैसा भी खत्म हो चला। नौबत यह आ गई कि उसे घर चलाने के लिए अपनी पत्नी के गहने तक बेचने पड़ गए।
इस कारण मोची बहुत उदास रहने लगा। उसको उदास देख मोची की पत्नी उसे दिलासा देती कि ऊपर वाले पर भरोसा रखो, सब ठीक हो जाएगा। भगवान हमारी मदद जरूर करेगा। पत्नी की यह बात सुनकर मोची झूठ-मूठ का मुस्कुरा देता और मन ही मन अपनी इस दशा को सोचकर चिंता में डूब जाता।
एक समय ऐसा आया जब मोची की दुकान पर केवल एक जोड़ी ही जूते बचे। इसके अलावा, उसके पास और जूते बनाने का समान भी मौजूद नहीं रह गया था। वहीं, मुश्किल इस बात की थी कि उस एक जोड़ी जूते को खरीदने वाला भी कोई नहीं आ रहा था। जब कई दिनों तक उन जूतों को खरीदने कोई नहीं आया, तो मोची उन जूतों को लेकर बाजार की ओर चल दिया।
बाजार में मोची के जूते बिक गए। जूते बेचने के बाद जो पैसे मिले, मोची ने उससे घर का जरूरी सामान खरीदा और घर वापस आने लगा, लेकिन तभी अचानक रास्ते में उसकी नजर एक बूढ़ी औरत पर पड़ी। वह औरत बहुत भूखी और बीमार थी। इसलिए, मोची ने कुछ पैसे उस बूढ़ी औरत को दे दिए।
अब उसके पास और जूते बनाने के लिए सामान नहीं था। वह दुकान लौटा और वहां उसने एक चमड़े का टुकड़ा बचा देखा। उस टुकड़े से केवल एक जोड़ी जूता ही बन सकता था। तो जूते के लिए मोची ने टुकड़ा काटकर तैयार किया और यह सोचकर घर चला गया कि अब अंधेरा ज्यादा हो गया है। कल रोशनी में वह जूते तैयार करेगा।
अगली सुबह जब वह जूते बनाने के लिए दुकान पहुंचा, तो उसे वहां कटे हुए चमड़े के टुकड़े की जगह एक तैयार जूते की जोड़ी मिली। वह जूते की जोड़ी इतनी खूबसूरत थी कि मोची उसे देखकर हैरान था। मोची ने उस जोड़ी को उठाया और फौरन बाजार की ओर रवाना हो गया।
वो जूते इतने खूबसूरत थे कि मोची को उसकी अच्छी कीमत हासिल हुई। इस पर मोची बहुत खुश हुआ और हासिल हुए पैसों में से उसने कुछ पैसे जरूरतमंद लोगों को दिए। बाकी जो बचे उससे उसने जूते बनाने का सामान लिया।
उस रात उसने दो जोड़ी जूतों के लिए चमड़ा काट कर रखा और घर वापस आ गया। अगली सुबह उसे फिर से वैसे ही खूबसूरत दो जोड़ी जूते तैयार मिले। उसने घर आकर यह पूरी बात अपनी पत्नी को बताई। मोची की पत्नी बोली, “देखा मैं कहती थी न कि भगवान हमारी मदद जरूर करेगा। ऊपर वाला सब कुछ देखता है। उसका ही किया है कि कोई नेक दिल हमारी इस तरह से मदद कर रहा है।”
अब तो रोज जूते के लिए चमड़ा काट कर छोड़ने और अगले दिन बने बनाए सुंदर जूते पाने का सिलसिला ऐसे ही चलने लगा। धीरे-धीरे मोची की स्थिति सुधर गई और उसने अच्छा पैसा भी जमा कर लिया। तभी मोची की पत्नी एक दिन बोली, “हमें एक दिन रात को रुक कर पता लगाना चाहिए कि हमारे लिए इस तरह से जूते कौन बना रहा है।”
यह सोचकर मोची और उसकी पत्नी रात को चमड़े का टुकडा छोड़कर दुकान में रुक गए। तभी उन्होंने देखा कि तीन बौने खिड़की से दूकान में घुसे और खुशी-खुशी जूते बनाने लगे। पूरी रात खूबसूरत जूते बनाने के बाद वह तीनों बौने खिड़की के रास्ते ही वापस चले गए।
यह सब देखने के बाद मोची और उसकी पत्नी आपस में बात करने लगे कि इन तीन बौनों ने हमारी बहुत मदद की है। इसलिए, हमें भी इनके लिए कुछ करना चाहिए। इन्हें कुछ उपहार देना चाहिए।
इस पर मोची ने अपनी पत्नी से पूछा, “बताओ आखिर इन्हें ऐसा क्या दिया जाए, जिससे इन्हें खुशी मिले।” इस पर पत्नी कहती है, “तुमने ध्यान दिया कि उनके कपड़े और जूते काफी पुराने हो गए हैं। मैं उनके लिए नए कपड़े सिल देती हूं। तुम उनके लिए जूते बना देना।”
फिर क्या था मोची ने तीनों बौनों के लिए जूते बनाए और उसकी पत्नी ने तीनों के लिए सुंदर कपड़े तैयार किए। बाद में उन्हें ले जाकर दुकान में रख दिया और उस रात उन्होंने उन बौनों के लिए चमड़े का टुकड़ा नहीं छोड़ा।
जब रात में तीनों बौने दूकान में घुसे तो अपने नाप के जूते और कपड़े पाकर काफी खुश हुए। उन्होंने कपडे और जूते पहने और खुशी-खुशी वहां से चले गए। उस दिन के बाद से कुछ दिन तक मोची ने गौर किया कि उसके द्वारा छोटे गए चमड़े के टुकड़े वैसे ही पड़े मिलते हैं। मोची समझ गया कि अब बौने उसकी मदद के लिए वहां नहीं आएंगे। उसकी स्थिति सुधर चुकी है और उसे अपना काम खुद करना होगा।
इतने दिनों में मोची को लोगों की पसंद का अच्छी तरह अंदाजा हो गया था। इसलिए, उसने पूरी मेहनत के साथ बौनों जैसे जूते बनाए और उन्हें बाजार में बेचा। मोची द्वारा बनाए गए जूते भी लोगों को बहुत पसंद आए और उसका काम अब अच्छा चलने लगा।
कहानी से सीख : दूसरों द्वारा की गई मदद का आभार माने और उनसे सीख लें, न कि दूसरों पर निर्भर रहने लगें।
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