सालों पहले एक नगर में भीमा नामक राजा का शासन हुआ करता था। वह दिल का बहुत अच्छा और अपनी प्रजा को खुश रखने वाला राजा था। अगर किसी को कोई समस्या होती, तो राजा तुरंत उसका समाधान कर देता। धन-संपत्ति और खूब इज्जत होने के बाद भी राजा की पत्नी दुखी रहती थी। उसके मन में हमेशा से संतान प्राप्ति की चाहत थी, जो सालों से पूरी नहीं हो पाई थी। राजा को भी यह दुख रह-रहकर सताता था।
राजा ने कभी अपना दुख खुद पर हावी होने नहीं दिया और पूरे राज्य की लगन से सेवा करते रहते थे। एक दिन भीमा राजा के राज्य में एक सिद्ध साधु भ्रमण करने पहुंचे। वो गांव -गांव घूमकर लोगों से पूछने लगे कि वो कितने सुखी हैं। हर किसी का जवाब एक ही था कि हमारे राजा बहुत अच्छे हैं और पूरी प्रजा को खुश रखते हैं।
हर किसी के मुंह से राजा की तारीफ सुनने के बाद वो साधु राजा के पास पहुंचा। राजा को प्रणाम करने के बाद साधु बोला, ‘हे राजन! तुम्हारे राज्य में हर कोई खुश है। ये सब देखकर मुझे भी बहुत अच्छा लग रहा है। तुम्हारे काम से खुश होकर मैं तुम्हें एक टोकरी दे रहा हूं। ध्यान रखना कि ये कोई सामान्य टोकरी नहीं है। तुम इसमें जो भी डालोगे, वो चीज एक से दो बन जाएगी।’
इतना कहकर साधु वहां से चला जाता है। अब राजा टोकरी लेकर सीधे रानी के पास पहुंचा और साधु की सारी बातें बताई। राजा की बात सुनकर रानी अपने हाथ से एक कंगन उतार कर उस टोकरी में डाल देती है। देखते ही देखते कंगन एक से दो हो जाते हैं।
यह देखकर राजा व रानी दोनों हैरान होने के साथ ही काफी खुश हुए। दोनों के मन में हुआ कि अब राज्य में किसी चीज की कमी नहीं होगी और प्रजा की खुशी दोगुनी हो जाएगी। इस टोकरी से भी हम अपनी प्रजा की ही सेवा करेंगे।
कुछ दिनों बाद भोला नाम का एक व्यक्ति अपने परिवार के साथ राजा और रानी से मिलने के लिए पहुंचा। उसके साथ पत्नी और नवजात शिशु भी था। भोला ने सबसे पहले राजा-रानी दोनों को प्रणाम किया और बताया कि हम आपके ही नगर के रहने वाले हैं। आपको संतान न होने का दुख हमसे सहा नहीं जा रहा है, इसलिए हम अपने इस शिशु को आपको देने के लिए आए हैं। इस वक्त से ही आप दोनों मेरे पुत्र के माता-पिता हो।
भोला की बात पर राजा के कुछ बोलने से पहले ही रानी ने नवजात को अपनी गोद में उठा लिया। रानी ने भोला और उसकी पत्नी सुलेखा को धन्यवाद कहा। इन सबके बीच राजा कुछ कह नहीं कह पाए। राजा को पुत्र मिलने की खुशी तो थी, लेकिन वो भोला और सुलेखा के लिए परेशान थे। राजा को पता था कि पुत्र न होने से भी अधिक दुख उसे पैदा करके किसी को दे देने से होता है।
इतना सब सोचने के बाद राजा कुछ देर बाद रानी को समझाते हैं कि हम किसी बच्चे को उसके माता-पिता से अलग नहीं कर सकते हैं। राजा और रानी की बातें सुनकर भोला व सुलेखा उनसे हाथ जोड़कर पुत्र को रखने की प्रार्थना करते हैं।
राजा-रानी दोनों ही भोला और सुलेखा की बातें सुनकर हैरान हो जाते हैं। तब राजा ने सीधे भोला से पूछा, ‘आखिर क्या बात है, तुम अपने बच्चे को अपने साथ रखने की बात सुनकर दुखी हो जाते हो। साफ-साफ कहो क्या परेशानी है।’
राजा की बातों का जवाब देते हुए भोला कहता है, ‘हमारे बच्चे को श्राप है कि अगर वो बारह दिन हमारे पास रहता है, तो तेहरवें दिन उसकी मृत्यु हो जाएगी। आज हमारे बच्चे को हमारे साथ बारह दिन हो गए हैं। अगर हम कल इसे अपने पास रखेंगे, तो इसकी मृत्यु हो जाएगी।’
राजा ने इस बारे में सोचने के लिए थोड़ा समय मांगा और भोला व सुलेखा को कुछ देर राजमहल में आराम करने के लिए कहा। फिर राजा भी इस बारे में सोचने के लिए अपने कक्ष में गए और रानी बच्चे को गोद में लेकर राजा के पीछे चलने लगी। कक्ष में पहुंचकर रानी ने राजा से पूछा, ‘आप आखिर इतने परेशान क्यों हैं।’ तब राजा ने कहा कि मेरे राज्य में रहने वाला कोई भी परिवार मुझे अपनी संतान देकर सारी जिंदगी रोता रहे, ये मुझे हरगिज मंजूर नहीं है।
राजा की बात सुनकर रानी भी इस बारे में सोचने लगी। तभी रानी महाराज से बोलती है, क्यों न हम इस बच्चे को टोकरी में डालकर एक से दो लें। फिर इस बच्चे को हम रख लेंगे और दूसरे बच्चे को भोला व सुलेखा को सौंप देंगे। राजा यह सुनकर खुश हो गए और जल्दी से बच्चे को टोकरी में रख दिया। टोकरी में रखते ही वो नवजात एक से दो हो गए।
फिर रानी ने जिस नवजात को टोकरी में डाला था उसे उठाती है और राजा दूसरे बच्चे को उठाता है। अब दोनों बच्चे को लेकर राजा-रानी सीधे उस कमरे में पहुंचे जहां भोला और उसकी पत्नी आराम कर रहे थे। राजा ने अपनी गोद में लिए बच्चे को भोला को सौंपकर कहा, ‘ये लो अपना बच्चा।’
राजा की बात सुनकर भोला और सुलेखा निराश हो गए। तभी राजा ने टोकरी के बारे में उन दोनों को बताते हुए कहा कि अब ये बच्चा श्राप मुक्त हो गया है। आपके जिस बच्चे को श्राप मिला है, वो रानी के पास है। आप दोनों इस शिशु को ले जाएं और इसकी अच्छे से देखभाल करें। राजा की पूरी बात सुनने के बाद भोला और उसकी पत्नी खूब खुश हुए और बच्चे को लेकर चले गए।
राजा और रानी भी बच्चा पाकर खुश थे। उन्होंने खूब अच्छी तरह से बच्चे का पालन-पोषण किया। वो बच्चा भी बड़ा होकर एक अच्छा राजकुमार बना और माता-पिता व राज्य का नाम रोशन किया।
कहानी से सीख
खुद को दुख होने के बाद भी दूसरों की भलाई के बारे में सोचना ही इंसानियत और इंसान का सबसे बड़ा धर्म है।
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