लहसुन की चटनी खाने के बाद 100 बार हाथ धोकर बिना अंगूठे वाले आदमी ने अपनी कहानी सुनना शुरू किया। उसने कहा कि मैं बगदाद का रहने वाला हूं। वहां हारूं रशीद का राज हुआ करता था। मेरे पिता एक बड़े व्यापारी थे, लेकिन उनके आलस्य की वजह से वो व्यापार को ठीक से नहीं चला पाए। कुछ समय बाद उनका व्यापार मैंने संभाल लिया। फिर मुझे पता चला कि उन्होंने कई लोगों से कर्ज ले रखा है। तभी पिता जी की मौत हो गई और मैंने धीरे-धीरे अपना कारोबार संभालते हुए सारा कर्ज चुका दिया।
मैं बड़े आराम से अपने कपड़ों का व्यापार कर रहा था। इसी बीच एक दिन पालकी में बैठकर नाकाब पहनी हुई एक लड़की अपने सेवकों के साथ सुबह-सुबह बाजार में मेरी दुकान के सामने आई। उसके सेवकों ने उसकी पालकी उतार कर उससे कहा कि आप काफी जल्दी बाजार आ गई हैं। अभी यहां कुछ भी नहीं खुला है। उस लड़की ने मेरी दुकान को खुला देखा, तो तुरंत मेरी दुकान में पहुंच गई और मुझसे जरी का कपड़ा मांगने लगी। मैंने उसे बताया कि इस दुकान में सादे कपड़े ही मिलते हैं।
यह सुनते ही उसने कुछ देर के लिए अपना नकाब उतारा और मुंह का पसीना पोंछकर दोबारा उसे पहन लिया। मैंने जैसे ही उसका चेहरा देखा मुझे उससे प्यार हो गया। तब मैंने उस लड़की से कहा कि आप कुछ देर मेरी दुकान में रहिए, मैं बाजार खुलते ही जरी का काम करने वाले व्यापारियों के पास से सबसे अच्छे कपड़े ले आऊंगा। उनसे कुछ चुनकर आप अपने साथ ले जा सकती हैं।
मेरी बात सुनकर वो लड़की खुश हो हुई। मैं बाजार खुलते ही सभी व्यापारियों के पास गया और कपड़ा लेकर आया। उस लड़की को कपड़े पसंद आए। मैंने उसे कपड़े की कीमत 25 हजार मुद्रा बताई। वो खुशी-खुशी उसपर राजी हो गई और कुछ देर मुझसे बात करके वापस चली गई। बातों के चक्कर में मैं उससे पैसे लेना भूल गया और मुझे उसका न नाम मालूम था और न ही उसका पता। मैं परेशान हो गया।
दिन ढलते ही सभी व्यापारी अपना पैसा लेने आ गए। मैंने सभी से कह दिया कि मैं एक हफ्ते के अंदर उनके पैसे दे दूंगा। एक हफ्ता बीत गया, लेकिन वो लड़की पैसे देने नहीं आई। मैं परेशान हो गया था, तभी आठवें दिन वो लड़की आई और सारे पैसे दे गई। मैंने सबका उधार चुका दिया। कुछ दिनों बाद वो दोबारा दुकान आई और मुझसे कुछ जरी के कपड़े ले गई, जो मैं दूसरे व्यापारियों से लेकर आया था। इस बार फिर वो बिना पैसे दिए चली गई। मुझे लगा कि वो लौटकर आएगी, लेकिन एक महीने तक वो आई नहीं। उधार चुकाने के लिए मैं रोज व्यापार से कमाए हुए थोड़े-थोड़े पैसे उन कारोबारियों को दे देता था।
करीब दो महीने बाद वो लड़की दुकान आई और उसने सारे पैसे देते हुए मुझसे पूछा कि क्या आप शादीशुदा हैं। मैंने कहा नहीं। तभी उस लड़की के साथ आए सेवक ने मेरे कान में कहा कि यह बादशाह हारूं रशीद की पत्नी की खास सहेली है, जो तुम्हें पसंद करती है। अब तुम इन्हें कह दो कि तुम इनसे शादी करोगे या नहीं। मैंने उस सेवक को झट से अपने दिल के प्यार के बारे में उसे बता दिया। सेवक ने मेरी बात उस लड़की को बताई और जवाब में उस युवती ने कहा कि मैं दस दिन बाद अपने सेवक को भेजूंगी तुम उसके साथ आ जाना।
दस दिन बाद वो सेवक आया और मुझे नदी के पास लेकर गया। वहां बड़े-बड़े संदूक थे। एक संदूक में उस सेवक ने मुझे लेटने को कहा। मैंने वैसा ही किया। उसके बाद वो लड़की भी वहां आई और एक नाव में बैठ गई। उसी नाव में सभी संदूकों को भी रख दिया, जिनमें से एक में मैं भी था। नाव कुछ ही देर में बादशाह के महल के पास पहुंच गई।
सभी संदूकों को नाव से उतारा गया। उसके बाद सिपाहों ने संदूक की जांच करने के लिए उसे अंदर से देखने के लिए कहा। मैं संदूक के अंदर बैठा-बैठा डर के मारे सोच रहा था कि कही मुझे किसी ने देख लिया, तो मौत पक्की है। लड़की ने सिपाहों से कहा कि इसमें बादशाह की पत्नी का बेशकीमती समान है। अगर आपने इसे खोला, तो कुछ टूट सकता है, क्योंकि इसमें कांच का भी सामान है। कुछ भी इधर से उधर हुआ, तो आपको बादशाह की बेगम माफ नहीं करेंगी। ये सब सुनकर सिपाही ने संदूक आगे भिजवा दिया। तभी खलीफा खुद वहां आ गए और लड़की से कहा कि संदूक के अंदर क्या है दिखाओ।
अब बादशाह से उन संदूकों को बचाना नामुमकिन था। लड़की ने बड़ी समझदारी से सारे संदूक दिखाए। फिर जब आखिरी संदूक की बारी आई, जिसमें मैं था। तब उसने बादशाह से कहा कि इसमें आपकी पत्नी और मेरी दोस्त जुबैदा का खास सामान है। इसे मैं उनकी इजाजत के बिना नहीं खोल सकती हूं। यह सुनते ही बादशाह ने मुस्कुराते हुए संदूक को आगे ले जाने की इजाजत दे दी।
सभी संदूकों को वो लड़की अपने कमरे में लेकर आई और मुझे उस संदूक से निकालकर एक दूसरे कमरे में लेकर गई। वहां मुझे अच्छा खाना खिलाया और बताया गया कि वो लड़की कुछ दिनों बाद मुझसे मिलने आएगी। मुझे कमरे में छोड़कर वो लड़की जुबैदा से बात करने गई थी। उनसे मुलाकात करके वो मेरे कमरे में आई और कहा कि तुम आराम से यहां रहो। मैं दो दिन बाद तुम्हें बादशाह की पत्नी से मिलाऊंगी। इतना कहकर उसने मुझे उनसे बात करने का तरीका और अन्य बातें समझा दी।
मैं भी खुशी-खुशी वहां रहते हुुए बादशाह की पत्नी से मुलाकात का इंतजार करने लगा। दो दिन बाद वो लड़की मुझे बादशाह की बेगम के पास ले गई। उन्होंने मुझसे काफी देर तक बात की और फिर दस दिन बाद अपनी दोस्त से शादी करवाने का वादा किया।
जुबैदा ने इसी बीच बादशाह से बात की और उन्हें भी शादी के लिए तैयार कर लिया। दस दिन बाद धूमधाम से हम दोनों की शादी हो गई। वहां कई सारे पकवान बने हुए थे। सारे महमानों के खाना खाने के बाद मैंने और उस लड़की ने भी खाना खाया। उस दिन खाने में लहसुन की चटनी बनी हुई थी। मुझे वो बहुत पसंद आई, मैंने उसे खूब खाया। खाना खत्म करने के बाद, मैंने एक उंगली से उस चटनी को दोबारा निकाला और खा लिया। फिर हाथ धोने की जगह पास में रखे कपड़े से उंगली पोंछ ली।
कुछ ही देर बाद मैं और मेरी पत्नी कमरे में गए। सभी सेवकों ने कमरे को बहुत अच्छा सजाया था। सभी चले गए, तो मैंने अपने हाथों से उस लड़की को पकड़ लिया। जैसे ही मैंने उसे हाथ लगाया, वो बहुत जोर से चिल्लाने लगी। तभी सारे सेवक आ गए और उन्होंने पूछा कि क्या हमसे कोई गलती हो गई है। उसने सेवकों को कहा कि इस आदमी को पकड़र जमीन में लेटा दो। इसे तुरंत मौत की सजा दे दो। मैंने डर के मारे अपनी पत्नी से पूछा, “आखिर ऐसा क्या कर दिया है मैंने।”
तब गुस्से में उसने कहा तुम्हारे हाथों से लहसुन की बदबू आ रही है। तुम इतने गंदे आदमी हो कि लहसुन की चटनी खाने के बाद हाथ भी नहीं धो सकते। मैं ऐसे गंदे इंसान के साथ बिल्कुल नहीं रहूंगी। तब उसने एक चाबुक से मुझे बहुत देर तक मारा। उसके बाद सेवकों को मेरा एक हाथ काटने का आदेश दे दिया। तभी एक सेवक ने मेरी पत्नी से कहा कि माना इन्होंने अपराध किया है, लेकिन इनका हाथ न कटवाएं। यह आपके पति हैं।
मैंने भी उससे माफी मांगी, लेकिन उसका गुस्सा कम नहीं हुआ। उसने सभी सेवकों को मुझे अच्छी तरह से पकड़ने को कहा और चाकू से मेरे सारे अंगूठे काट दिए। फिर कहा कि इन कटे हुए अंगूठों को देखकर तुम्हें हमेशा याद रहेगा कि तुमने क्या गलती की थी।
इतना कहकर वो चली गई और मैं दर्द के मारे रोने लगा। तभी एक सेवक ने कुछ दवाई कटे हुए अंगूठों में लगाई। उससे खून बहना तो बंद हो गया, लेकिन हाथों का दर्द ठीक नहीं हो रहा था। मैं दर्द में करहाते हुए ही सो गया। दस दिनों तक मुझे सेवकों ने उसी तरह से बांधकर रखा। एक दिन मैंने सेवकों से अपनी पत्नी के बारे में पूछा, तो उन्होंने बताया कि वो लहसुन की बदबू की वजह से बीमार हो गई हैं।
करीब एक महीने बाद वो मुझसे मिलने आई, लेकिन उसका गुस्सा शांत नहीं हुआ था। तब मैंने उससे कहा कि अब ऐसा भोजन करने के बाद सौ बार हाथ धोऊंगा। इस बात को सुनकर उसने मुझे माफ कर दिया। हम खुशी-खुशी एक साथ रहने लगे, लेकिन शाही महल के सिर्फ एक हिस्से में ही मैं आ जा सकता था। इसी वजह से मुझे लगा कि हमें एक अच्छा घर खरीदकर अलग रहना चाहिए। मेरी पत्नी ने मुझे कुछ मुंद्राएं दीं और मैंने झट से एक अच्छा घर खरीद लिया।
वहां जाकर हम सुखी परिवार की तरह रहने लगे। मैंने अपना कारोबार दोबारा शुरू किया। हमें किसी चीज की कमी नहीं थी। इसी बीच एक दिन मेरी पत्नी बीमार हो गई और उसकी मौत हो गई। फिर मैंने दूसरी शादी की, लेकिन कुछ समय बाद वो भी बीमार होने की वजह से मर गई। तब मुझे लगा कि यह घर ही खराब है, तो मैं उसे बेचकर फारस गया और फिर वहां से समरकंद आ गया।
इतनी कहानी सुनाकर अनाज के व्यापारी ने बादशाह से कहा कि आपको मेरे जीवन का किस्सा कैसा लगा। जवाब देते हुए बादशाह ने कहा कि ईसाई की कहानी से कुछ बेहतर है, लेकिन कुबड़े से अच्छी कहानी किसी की नहीं है। फिर यहूदी हकीम ने बादशाह से अपने जीवन की कथा सुनाने की आज्ञा मांगी और अपने साथ हुई बातें बताने लगा। क्या है यहूदी हकीम की कहानी जानने के लिए पढ़ें दूसरी स्टोरी।
0 Comments: