05 March 2022

अलिफ लैला सिंदबाद जहाजी की पहली यात्रा की कहानी - Alif Laila Story of the First Voyage of Sindbad Ship

Alif laila Sindbad Jahazi Ki pheli yatra Story In Hindi

सिंदबाद ने अपनी पहली जहाजी यात्रा की कहानी सुनाना शुरू किया। उसने बताया की वह बहुत अमीर था। उसके पास बहुत सारी पुश्तैनी दौलत थी। जब उसके पिता जिंदा थे, तो वो कहा करते थे कि गरीबी की जगह मौत सबसे बेहतर है, लेकिन मैंने उनकी बात कभी नहीं सुनी और सारा पैसा मोज-मस्ती में उड़ा दिया। जब मेरे पास कुछ नहीं बचा, तो मुझे अपनी बुरी हालत पर बहुत रोना आया। फिर जब मुझसे रहा नहीं गया, तो मैंने अपना सारा सामान बेच दिया और जो पैसे मिले उसे लेकर समुद्री व्यापारियों के पास पहुंचा गया। मैंने उनसे कहा कि मैं भी व्यापार करना चाहता हूं। उनकी सलाह पर मैंने कुछ सामान खरीदा और व्यापारियों को किराया देकर उनके जहाज पर सवार हो गया और यात्रा पर निकल पड़ा।

फारस की खाड़ियों से होता हुआ जहाज यात्रा के पहले पड़वा पर फारस देश जाकर रुका। यह देश हिंदुस्तान के पश्चिम और अरब देशों के दाई ओर था। फारस की खाड़ी करीब ढाई हजार लंबी और 70 मील चौड़ी थी। मैंने पहले कभी समुद्री यात्रा नहीं की थी, इसलिए कई दिन तक तो मैं बीमार भी रहा। बीच-बीच में हमें कई टापू मिले, जहां हमने माल बेचा और खरीदा। एक दिन जहाज के कप्तान को हरा-भरा और बेहद खूबसूरत द्वीप नजर आया। कप्तान ने वहीं जहाज का लंगर डाल दिया और कहा कि जिसे इस द्वीप पर घूमना है, जा सकता है। मैं और कुछ व्यापारी कई दिनों तक जहाज पर रहते-रहते ऊब गए थे, इसलिए हम खाना बनाने का सामान लेकर छोटी नावों पर सवार होकर उस द्वीप पर चले गए।

वहां जाकर हमने जैसे ही खाना बनाना शुरू किया, तो वह द्वीप अचानक हिलने लगा। यह देख सब लोग डर गए और चिल्लाने लगे कि जल्दी जहाज पर चलो, यह द्वीप नहीं है बल्कि किसी मछली की पीठ है। सभी नाव पर बैठ गए और जहाज की ओर जाने लगे, लेकिन मैं अभी तक पूरी तरह ठीक नहीं हुआ था, तो कमजोरी के कारण जल्दी नाव तक नहीं पहुंच सका और वहीं रह गया। वही, मछली जो खाना बनाने के लिए जलाई आग की वजह से जाग गई थी, उसने पानी में गोता लगा दिया और उसके साथ मैं भी समुद्र में गोते लगाने लगा। मेरे हाथ में एक लकड़ी थी, जिसे मैं आग जलाने के लिए लाया था। बस मैं उसी के सहारे तैर रहा था, लेकिन मैं जब तक जहाज तक पहुंचता, तब तक जहाज वहां से जा चुका था।

मैं पूरे एक दिन और एक रात तक उस समुद्र में तैरता रहा। मैं इतना थक चुका था कि और तैरने की शक्ति मुझमें नहीं बची थी। मैं बस डूबने ही वाला था कि तभी एक बड़ी समुद्री लहर आई और उसने मुझे उछाल कर किनारे पर फेंक दिया। वह कोई आम किनारा नहीं था, बल्कि ढलान वाला था। मैं किसी मुर्दे की तरह नीचे जमीन पर जा गिरा।

अगली सुबह जाकर मेरी आंख खुली, तो भूख कारण मेरा बुरा हाल था। मुझमें इतनी शक्ति भी नहीं बची थी कि मैं अपने पैरों पर खड़ा तक हो सकूं। बस किसी तरह अपने शरीर को घसीटता हुआ आगे बढ़ रहा था। कुछ दूरे जाने पर मुझे एक झील नजर आई। मैं झटपट वहां पहुंचा और जी भरकर पानी पिया। झरने का पानी बहुत मीठा था, जिसे पीकर मेरे बेजान शरीर में कुछ जान आई। उसे झरने के पास पेड़ों पर मीठे फल भी लगे हुए थे, जिन्हें खाकर मैंने अपना पेट भरा। इसके बाद मैं बाहर निकलने का रास्ते ढूंढने लगा। अभी मैं रास्ता तलाश ही रहा था कि मुझे एक सुन्दर-सी घोड़ी दिखाई दी, जो खूंटे से बंधी घास खा रही थी। वहीं पर जमीन के नीचे से कुछ लोगों की आवाज आती सुनाई दी। कुछ ही देर में एक आदमी बाहर निकला और मुझसे पूछने लगा कि मैं कौन हूं और यहां क्या कर रहा हूं। मैंने उसे अपनी आपबीती सुनाई, तो वो मुझे तहखाने में ले गया।

वहां और भी लोग भी थे। मैंने उनसे पूछा कि तुम लोग इस वीरान द्वीप पर क्या कर रहे हो। उन्होंने मुझे बताया कि वो लोग सिपाही है। इस द्वीप का मालिक साल में एक बार सभी घोड़ियों को यहां भेजता है, जिनका मिलान दरियाई घोड़े से करावाया जाता है। फिर इन घोड़ियों से बच्चे होते हैं, राज परिवार के सदस्य उनकी सवारी करते हैं। हम घोड़ियों को यहा बांधकर नीचे छुप जाते हैं, क्योंकि दरियाई घोड़े मिलन के बाद घोड़ी को मार देते हैं। इसलिए, हम यहां छुपकर बैठते हैं, ताकि दरियाई घोड़े इन्हें मार न सकें।

सैनिकों ने बताया कि कल हम लोग राजधानी लौट जाएंगे। मैंने उनसे कहा कि मैं भी तुम लोगों के साथ चलना चाहता हूं, क्योंकि यहां से मैं अपने देश वापस नहीं लौट सकता। इसी बीच वहां एक दरियाई घोड़ा आ गया। उसने जैसे ही घोड़ी को मारने का प्रयास किया सिपाही दौड़ते हुए बाहर गए और उसे वहां से भगा दिया।

दूसरे दिन सारी घोड़ियों के साथ हम सभी राजधानी पहुंच गए। वहां उन्होंने मुझे अपने बादशाह के सामने पेश किया। राजा के पूछने पर मैंने उनको अपनी सारी कहानी बताई। यह सुनकर उन्होंने अपने सेवकों को आदेश दिया कि मेरी खूब सेवा की जाए।

उस बादशाह के राज्य में एक विचित्र द्वीप था, जहां से रात-दिन ढोल बजने की आवाज आती रहती थी। कुछ जहाजियों का मानना था कि जब दुनिया का अंत आएगा, तो अधर्मी और झूठा आदमी पैदा होगा, जो खुद को ईश्वर बताएगा। ऐसा आदमी एक आंख से काणा होगा और गधे की सवारी करेगा। ये सब जानने के बाद मैं एक दिन उस द्वीप को देखने निकल गया। रास्ते में मुझे समुद्र में बहुत बड़ी-बड़ी मछलियां नजर आईं। कुछ तो 100-100 हाथ जितनी लंबी थीं, तो कुछ 200 सौ हाथ जितनी लंबी थीं। उन्हें देखकर कोई भी डर जाए, लेकिन वाे मछलियां खुद भी बहुत डरपोक थीं। जरा-सी आवाज करते ही वहां से भाग जाती थीं। एक मछली तो बहुत ही अजीब थी। वह एक हाथ जितनी लंबी थी, लेकिन मुंह उल्लू जैसा था। मैं बस इस उम्मीद में दिनभर इधर-उधर घूमता रहता था, ताकि मेरे देश का कोई व्यक्ति मुझे मिल जाए।

एक दिन मैं शहर के बंदरगाह पर खड़ा था। उसी सयम वहां एक जहाज आकर रुका। व्यापारी कुछ गठरियां लेकर जहाज से उतरे, तभी मेरी नजर एक गठरी पर पड़ी, जिस पर मेरा नाम लिखा था। मैं तुरंत जहाज के कप्तान के पास गया और उस से गठरी के बारे में पूछा।

जहाज छोड़े मुझे काफी समय हो गया था और बीमारी भी था, इसलिए मेरी सूरत काफी बदल गई थी। इस वजह से कप्तान ने मुझे पहचाना नहीं। उसने मुझे कहा कि हमारे जहाज पर बगदाद का एक व्यापारी सिंदबाद था, जो एक टापू पर घूमने गया था, लेकिन वापस नहीं लौटा। मैंने सोचा कि इन गठरियों का माल बेच दूं और जो भी दाम मिले उसे बगदाद में सिंदबाद के घरवालों तक पहुंचा दूं।

मैंने कप्तान से कहा कि जिस सिंदबाद को तुम मरा समझ रहे हो, वो मैं ही हूं और यह सारी गठरियां मेरी हैं। कप्तान को मुझ पर विश्वास न हुआ और बोला, मरे हुए आदमी का माल हथियाने के लिए तुम सिंदबाद बन गए। शक्ल से तो तुम सीधे लगते हो और पूरा माल हथियाना चाहते हो। मैंने अपने सामने सिंदबाद को डूबते देखा है। दूसरे व्यापारी भी इस घटना के साक्षी हैं।

मैंने कप्तान से कहा कि तुमने मेरी पूरी बात सुने बिना मुझे झूठा बना दिया। फिर मैंने उसे अपना पूरा हाल सुनाया। कैसे मैं लकड़ी के सहारे एक दिन और एक रात तक समुद्र में तैरता रहा और फिर कैसे द्वीप पर पहुंचा और फिर कुछ सिपाहियों के साथ यहां शहर आया। इस पर भी कप्तान को विश्वास न हुआ और दूसरे व्यापारियों को बुलाकर मुझे गौर देखा और पहचान लिया कि मैं ही सिंदबाद हूं।

सब लोगों ने मुझे बधाई दी और गले लगा कर कहा कि तुम ऊपर वाले की कृपा से तुम बचे हो। अब तुम अपना माल लेकर व्यापार शुरू कर सकते हो। मैंने अपने सामान में से कुछ बहुमूल्य चीजें निकालकर बादशाह को भेंट कीं। राजा ने पूछा कि उसे ये बेशकीमती वस्तुएं कहां मिली, तो मैंने उन्हें सारी बात बताई। बादशाह बहुत खुश हुए। उन्होंने मेरी भेंट स्वीकार की और बदले में अधिक कीमती वस्तुएं मुझे उपहार में दीं। मैं उनसे विदा लेकर जहाज पर आया और अपना माल बेचकर उस शहर की अच्छी पैदावार जैसे – चन्दन, जायफल, लौंग व काली मिर्च आदि लेकर फिर जहाज पर सवार हो गया। कई देशों और द्वीपों में घूमता होता हुआ हमारा जहाज बगदाद लौटा। उस यात्रा में किए गए व्यापार से मुझे एक लाख दीनार का लाभ हुआ था। मैं अपने परिवार और दोस्तों से एक बार फिर मिलकर बहुत प्रसन्न हुआ। फिर कुछ समय बाद मैंने एक विशाल भवन बनवाया और कुछ ही दिनों में अपनी पहली समुद्री यात्रा के सभी कष्ट भूल गया।

इस तरह सिंदबाद ने अपनी कहानी खत्म की और कहानी सुनने के लिए रुके गाने बजाने वालों ने फिर से नाचना-गाना शुरू कर दिया। सिंदबाद ने हिंदबाद को 400 दीनार की एक पोटली दी और कहा कि तुम अभी घर जाओ। कल इसी समय फिर आना, मैं तुम्हें अपनी यात्रा की और कहानियां सुनाऊंगा। हिंदबाद ने इतना धन पहले कभी नहीं देखा था। वह बहुत खुश हुआ। उसने सिंदबाद को बहुत धन्यवाद दिया और घर लौट गया।

अगली सुबह हिंदबाद नए कपड़े पहन कर तय समय पर सिंदबाद के घर पहुंच गया। सिंदबाद उसे देखकर बहुत खुश हुआ। कुछ देर बाद सिंदबाद के अन्य दोस्त भी आ गए। फिर सभी ने स्वादिष्ट भोजन किया और इसके बाद सिंदबाद ने कहा कि अब मैं तुम्हें अपनी दूसरी समुद्र यात्रा की कहानी सुनाता हूं। फिर सिंदबाद ने कहना शुरू किया…

Previous Post
Next Post

post written by:

0 Comments: