एक किसान बहुत परेशान था। उसे अपने खेतों को सींचने के लिए पानी की जरूरत थी। इसलिए, वह कई दिनों से अपनी जमीन के आसपास किसी कुएं की तलाश कर रहा था। इसी तलाश में वह घूम ही रहा था कि अचानक उसे एक कुआं दिखा। यह कुआं उसके खेतों से बहुत नजदीक था। इसलिए, किसान बहुत खुश हुआ। उसने सोचा कि अब उसकी परेशानी खत्म हो गई। यह सोचकर वह खुशी-खुशी घर चला गया।
अगले दिन वह पानी लेने कुएं पर पहुंचा। जैसे ही उसने कुएं के नजदीक रखी बाल्टी कुएं में डाली, वहां एक आदमी आ धमका। वह किसान से बोला, यह कुआं मेरा है। तुम इससे पानी नहीं ले सकते। अगर तुम इस कुएं से पानी लेना चाहते हो, तो तुम्हें इस कुएं को खरीदना होगा।
यह बात सुनकर किसान कुछ देर रुका और फिर मन ही मन सोचने लगा कि अगर मैं इस कुएं को खरीद लूं, तो मुझे कभी पानी की कमी नहीं होगी और न ही मुझे पानी के लिए इधर-उधर भटकना पड़ेगा। फिर क्या था, दोनों के बीच एक रकम तय हुई। किसान के पास उतने पैसे तो थे नहीं, लेकिन वह यह मौका छोड़ना नहीं चाहता था। इसलिए, किसान ने उस आदमी को अगले दिन वह रकम देने का वादा किया और घर की ओर चल दिया।
किसान के लिए कुआं खरीदने का यह अच्छा मौका था। इसलिए, वह इस काम में जरा भी देर नहीं करना चाहता था। घर पहुंचते ही उसने अपने करीबियों और दोस्तों से इस बारे में बात की और कुएं के लिए तय हुई रकम का इंतजाम करने में जुट गया। थोड़ी भागदौड़ और कोशिश के बाद आखिरकार उसने वह रकम जमा कर ली। अब वह पूरी तरह से निश्चिंत हो चुका था कि उसे कुआं खरीदने से कोई नहीं रोक सकता।
जमा हुए पैसों को लेकर वह फिर घर चल दिया। उसे बड़ी बेसब्री से इंतजार था कि कब रात खत्म होगी और वह कुआं खरीदने जाएगा। इसी सोच में वह पूरी रात सो नहीं सका। अगले दिन सुबह होते ही वह कुआं खरीदने निकल पड़ा।
उस आदमी के घर पहुंच किसान ने उसके हाथ पर पैसे रखे और कुएं को खरीद लिया। अब तो कुआं किसान का हो गया था तो फिर उसने पानी निकालने में देर नहीं की। जैसे ही किसान ने कुएं से पानी निकालने के लिए बाल्टी उठाई, उस आदमी ने फिर बोला ठहरो, तुम इस कुएं से पानी नहीं निकाल सकते हो। मैंने तुम्हें कुआं बेचा है, कुएं का पानी अभी भी मेरा है। किसान मायूस हो गया और न्याय के लिए राजा के दरबार में शिकायत करने पहुंच गया।
मालूम है उस राजा का नाम क्या था? राजा अकबर। राजा अकबर ने उस किसान की पूरी कहानी सुनी और फिर उस आदमी को दरबार में बुलाया, जिसने वह कुआं बेचा था। राजा का फरमान सुनते ही वह आदमी भागा-भागा दरबार में हाजिर हो गया। राजा ने उससे पूछा, जब तुमने इस किसान को अपना कुआं बेच दिया, तो फिर इसे पानी क्यों नहीं लेने दे रहे हो।
आदमी बोला, महाराज मैंने इसे केवल कुआं बेचा था, पानी नहीं। यह बात सुनकर राजा भी सोच में पड़ गए। उन्होंने कहा कि बात तो यह पते की कह रहा है, कुआं बेचा है, पानी तो नहीं। काफी देर सोचने के बाद जब इस समस्या को सुलझाने में वह नाकाम हो गए, तो उन्होंने बीरबल को बुलाया।
बीरबल बहुत ही बुद्धिमान था। इसलिए, राजा अकबर किसी भी मामले पर फैसला लेने से पहले उसकी राय जरूर लेते थे। बीरबल ने एक बार फिर दोनों से उनकी समस्या पूछी। पूरी बात जानने के बाद बीरबल ने उस आदमी से कहा ठीक है, तुमने कुआं बेचा पानी नहीं। फिर तुम्हारा पानी किसान के कुएं में क्या कर रहा है? कुआं तुम्हारा नहीं है, फौरन अपने पानी को कुएं से बाहर निकालो। बीरबल का इतना कहते ही, उस आदमी को समझ आ गया कि अब उसकी चालाकी किसी काम नहीं आने वाली। उसने राजा से फौरन माफी मांगी और माना कि कुएं के साथ उसके पानी पर भी किसान का पूरा अधिकार है।
यह देखकर राजा अकबर ने बीरबल की बुद्धिमानी की तारीफ की और कुआं बेचने वाले आदमी पर धोखेबाजी के लिए जुर्माना लगाया।
कहानी से सीख
किसान और कुएं की कहानी से पता चलता है कि अपने आपको दूसरे से अधिक चालाक नहीं समझना चाहिए। साथ ही धोखा देने की आदत से भी दूर रहना चाहिए, क्योंकि कोई ऐसा भी हो सकता है, जो आपसे भी अधिक बुद्धि का इस्तेमाल करना जानता हो। ऐसे में आपका धोखा पकड़ा जाएगा और आपको अपने किए का भुगतान करना होगा, जैसे इस कहानी के अंत में कुआं बेचने वाले आदमी को करना पड़ा।
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