माता सीता के जन्म को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं। कोई कुछ कहानी सुनता है, तो कोई कुछ। इसलिए, साफ-साफ कहना मुश्किल है कि सीता की माता कौन थी। सीता के जन्म से जुड़ी हम ऐसी ही एक प्रचलित कहानी सुना रहे हैं।
एक बार लंकापति रावण के तप से खुश होकर भगवान ब्रह्मा उसे वरदान मांगने को कहते हैं। रावण उनसे अमर होने का वरदान मांगता है। ब्रह्माजी उसे अमर होने के अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने को कहते है। रावण वरदान में मांगता है कि मुझे सुर, असुर, पिशाच, नाग, किन्नर या अप्सरा कोई भी न मार सके। रावण मनुष्य द्वारा न मारे जाने के बारे में नहीं बोलता है, क्योंकि वह मनुष्य को तिनके के समान समझता था।
वरदान पाने के बाद रावण हर तरफ तबाही मचाना शुरू कर देता है। एक दिन वह दंडकारण्य नामक जगह पहुंचता है, जहां ऋषि-मुनियों का निवास था। रावण को ऋषि-मुनियों को मारना उचित नहीं लगा, लेकिन वो उन ऋषि-मुनियों के रक्त को एक कमंडल में भर कर साथ ले जाता है। वह कमंडल ‘गृत्समद ऋषि’ का था, जो पुत्री की लालसा में माता लक्ष्मी से प्रार्थना करते थे कि वह उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। इसके लिए गृत्समद ऋषि रोजाना पूजा-पाठ के दौरान पवित्र मंत्र पढ़कर दूध की कुछ बूंदें कमंडल में डाला करते थे, जिसमें रावण रक्त भरकर अपने साथ ले गया था।
रावण कमंडल को लंका ले गया और वह पहुंचकर कमंडल अपनी पत्नी मंदोदरी को देकर कहता है, “यह विषैले रक्त से भरा है। इसे संभाल कर रखना और किसी को मत देना।”
कुछ दिन बाद विहार के लिए रावण किसी पर्वत पर चला जाता है। मंदोदरी को इस तरह रावण का जाना अच्छा नहीं लगता है। वो मृत्यु प्राप्त करने के लिए कमंडल में भरे विष का पान कर लेती है। कमंडल के रक्त को पीने के कुछ समय बाद मंदोदरी गर्भवती हो जाती है। गर्भवती होने के बाद मंदोदरी घबरा जाती है कि महल में मौजूद अन्य लोग उसके बारे में क्या सोचेंगे। फिर मंदोदरी तीर्थ यात्रा का नाम लेकर कुरुक्षेत्र चली जाती है। वहां मंदोदरी एक बच्ची को जन्म देती है, लेकिन लोक-लाज के चलते वो उसे एक कलश में रखकर जमीन में दफना देती है।
कुछ दिनों बाद राजा जनक भी कुरुक्षेत्र जाते हैं। जब वह जमीन में हल चलाते हैं, तो उन्हें वहां कलश मिलता है, जिसमें मंदोदरी ने बच्ची को रखा था। बच्ची को कलश से निकालते ही आसमान से फूलों की वर्षा होने लगती है और साथ में आकाशवाणी भी होती है। आकाशवाणी में राजा जनक द्वारा उस कन्या के लालन-पालन की बात कही जाती है। हल के सीत (हल के आगे का नुकीला भाग) से टकराने की वजह से कलश मिला था, इसलिए राजा जनक ने कन्या का नाम सीता रखा।
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