07 March 2022

तेनाली रामा और खूंखार घोड़ा - Tenali Rama and the dreaded horse

बहुत समय पहले की बात है। दक्षिण भारत में विजय नगर नाम का एक साम्राज्य हुआ करता था और उस साम्राज्य की बागडोर राजा कृष्णदेव राय के हाथ में थी। एक दिन उनके राज्य में एक अरबी व्यापारी घोड़े बेचने आया। उसने राजा के सामने अपने घोड़ों की इतनी तारीफ की कि महाराज कृष्णदेव उसके सभी घोड़ों को खरीदने के लिए तैयार हो गए। राजा ने व्यापारी की बातों में आकर सारे घोड़े खरीद तो लिए, लेकिन उनके सामने अब एक बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई। मुश्किल यह थी कि सभी घोड़ों को रखा कहां जाएं। दरअसल, घोड़ों की संख्या इतनी ज्यादा थी कि राजा का घुड़साल उन सभी घोड़ों को रखने के लिए बहुत छोटा था।

इस समस्या से निपटने के लिए राजा ने एक उपाय निकाला और सभी दरबारियों के साथ पूरी प्रजा को हाजिर होने का आदेश दिया। राजा का आदेश मिलते ही मंत्रियों और राज दरबारियों के साथ पूरी प्रजा अपना सारा काम-धाम छोड़कर राज महल के बाहर जमा हो गई। इसके बाद राजा कृष्णदेव वहां पहुंचे और कहा, “मैंने आप सभी को एक जरूरी काम देने के लिए यहां बुलाया है।”

इतना कहकर राजा ने सभी के सामने आपनी बात रखी, “हमने अरबी घोड़ों की एक खेप खरीदी है। ये सभी घोड़े बहुत लाजवाब और बेशकीमती हैं, लेकिन अफसोस हमारे घुड़साल में इन सभी को रखना संभव नहीं। नया घुड़साल तैयार होने में करीब तीन महीने का वक्त लगेगा। इसलिए, मैं चाहता हूं कि राज्य के सभी मंत्रियों और दरबारियों के साथ हमारी प्रजा भी तीन महीने के लिए इन घोड़ों की देखभाल करे। इसके लिए राज दरबार के खजाने से हर महीने सभी को एक-एक सोने का सिक्का दिया जाएगा।

महीने में एक सोने के सिक्के के बदले घोड़ों को संभालना और उनके चारे-पानी का प्रबंध करना बहुत ही मुश्किल था, लेकिन कोई भी इस संबंध में कुछ न बोल सका, क्योंकि आखिर राजा का आदेश जो था। फिर क्या सभी एक-एक घोड़ा लेकर अपने घर की ओर चल दिए। वहीं, एक घोड़ा तेनाली राम को भी मिला।

तेनाली राम बहुत ही बुद्धिमान और चतुर था। वह अपने घोड़े को ले गया और घर के पीछे घास-फूस की छोटी-सी घुड़साल बनाकर घोड़े को वहां बांध दिया। राज्य की सारी प्रजा राजा के क्रोध से बचने के लिए अपना पेट काटकर घोड़ों की खूब सेवा करने लगी।

वहीं, तेनाली राम घुड़साल में बनी छोटी-सी खिड़की से घोड़े को हर रोज थोड़ा-सा ही चारा देता। देखते ही देखते तीन महीने पूरे हो गए।

समय पूरा होने के बाद सभी को राजमहल फिर से बुलाया गया। राजा का आदेश सुनकर सभी अपना-अपना घोड़ा ले राज महल पहुंच गए, लेकिन तेनाली राम खाली हाथ ही पहुंचा। तेनाली राम के साथ घोड़ा न देख राजा हैरान हुए और उससे घोड़ा न लाने की वजह पूछी।

राजा के सवाल पर तेनाली राम बोला, “महाराज घोड़ा काफी बिगड़ैल और खूंखार हो चला है। इसलिए अपने साथ लाना तो दूर, मेरी उसके घुड़साल में जाने की भी हिम्मत नहीं हुई।” तेनाली राम की बात सुनते ही राजगुरु बोले, “महाराज तेनाली राम झूठ बोल रहा है। हमें खुद जाकर इस बात का पता लगाना चाहिए।”

राजगुरु की बात सुनकर राजा कृष्णदेव उन्हें खुद तेनाली राम के घर जाकर सच्चाई का पता लगाने को कहते हैं। राजा के आदेश पर राजगुरु तेनाली राम के साथ कुछ दरबारियों को लेकर उसके घर की ओर चल देते हैं।
तेनाली राम के घर पहुंच जैसे ही राजगुरु की नजर वहां बने घुड़साल पर पड़ी वह बोले, “मूर्ख तेनाली इस छोटी-सी कुटिया में घोड़े को रखा है और तुम इसे घुड़साल कह रहे हो।

राजगुरु की बात पर तेनाली राम बोला, “राजगुरु आप बहुत ही विद्वान हैं, तो आपको अधिक पता होगा। मैंने यह कुटिया घोड़े को रखने के उद्देश्य से बनाई, इसलिए इसे घुड़साल कह दिया, लेकिन घोड़ा सच में बहुत खूंखार हो गया है। इसलिए, पहले आप उसे खिड़की से झांक कर देख लें। उसके बाद ही इस कुटिया के अंदर जाएं।”

राजगुरु तेनाली राम की बात मानकर घोड़े को देखने के लिए घुड़साल की खिड़की के पास जैसे ही अपना चेहरा लाते हैं, भूखा घोड़ा लपक कर उनकी दाढ़ी मुंह से पकड़ लेता है। राजगुरु अपनी दाढ़ी को छुड़ाने की काफी मशक्कत करते हैं, लेकिन असफल रहते हैं। ऐसे में जब हर जतन करने के बाद भी घोड़ा राजगुरु की दाढ़ी नहीं छोड़ता, तो एक दरबारी अपनी तलवार से राजगुरु की दाढ़ी काट देता है और घोड़े से उनकी जान छूटती है।

घोड़े से किसी तरह जान बचने के बाद राजगुरु साथ आए कुछ दरबारियों को घोड़े को महल ले चलने का आदेश देते हैं। तेनालीराम का घोड़ा पकड़ कर राज दरबार में पेश किया जाता है। तीन महीने से घोड़े को ठीक से चारा-पानी न मिलने की वजह से वह बहुत ही दुबला-पतला दिख रहा था। जब राजा घोड़े की यह हालत देखते हैं, तो तेनाली से इसके पीछे की वजह पूछते हैं।

राजा के सवाल पर तेनाली जवाब देता है, “मैंने घोड़े को हर रोज थोड़ा ही चारा दिया, जिस प्रकार आपकी प्रजा कम भोजन में गुजारा करती है। इस कारण घोड़ा कमजोर और बिगड़ैल हो गया।”

तेनाली राम ने कहा, “राजा का धर्म प्रजा की सुरक्षा और देखभाल करना होता है, न कि उन पर अतिरिक्त बोझ डालना। घोड़ों की देखभाल करने का आदेश देकर घोड़े तो शक्तिशाली और बलवान हो गए, लेकिन उनकी देखभाल करने के चक्कर में भरपेट भोजन न कर पाने के कारण प्रजा दुर्बल हो गई।”

महाराज कृष्णदेव को अब तेनाली राम की बात समझ आ गई और उन्हें गलती का एहसास हुआ। उन्होंने अपनी प्रजा से इस गलती के लिए क्षमा मांगी और तेनाली राम की बुद्धिमानी के लिए उसे सम्मान के रूप में इनाम दिया।

कहानी से सीख:

तेनाली रामा और खूंखार घोड़ा कहानी से सीख मिलती है कि कोई भी फैसला लेने से पहले अच्छी तरह सोच-विचार कर लेना चाहिए, ताकि उसके दुष्परिणाम किसी और को न भुगतने पड़ें।

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