07 March 2022

शिल्पी की अद्‌भुत मांग | Shilpi Ki Maang Story In Hindi

Shilpi Ki Maang Story in Hindi

विजयनगर के महाराज कृष्णदेव हर बार तेनालीराम की सूझबूझ से दंग रह जाते थे। इस बार भी तेनालीराम ने महाराज को हैरान कर दिया। दरअसल, एक बार महाराज कृष्णदेव पड़ोस के राज्य पर जीत हासिल करके विजयनगर लौटे और उन्होंने उत्सव मनाने की घोषणा कर दी। पूरे नगर को ऐसे सजाया गया जैसे कोई बड़ा त्योहार हो।

अपनी इस जीत को यादगार बनाने के लिए महाराज कृष्णदेव के मन में विचार आया कि क्यों न नगर में विजय स्तंभ बनवाया जाए। स्तंभ बनाने के लिए महाराज ने राज्य के सबसे हुनरमंद शिल्पकार को तुरंत बुलवाया और उसे काम सौंप दिया।

महाराज के आदेशानुसार शिल्पी भी अपने काम में जुट गया और कई हफ्तों तक दिन-रात एक करके उसने विजय स्तंभ का काम पूरा किया। जैसे ही विजय स्तंभ बनकर तैयार हुआ, तो महाराज समेत दरबारी व नगरवासी शिल्पकार की कला को देखकर उसके कायल हो गए।

शिल्पी की कारीगरी से प्रसन्न होकर महाराज ने उसे दरबार में बुलाया और इनाम मांगने को कहा। उनकी बात सुनकर शिल्पकार ने कहा, “हे महाराज, आपको मेरा काम पसंद आया मेरे लिए यही सबसे बड़ा इनाम है। आप बस अपनी कृपा मुझ पर बनाए रखिएगा।” शिल्पकार का जवाब सुनकर महाराज को खुशी हुई, लेकिन उन्होंने जिद पकड़ ली कि वह शिल्पी को कोई-न-कोई इनाम जरूर देंगे। महाराज ने शिल्पी को कहा कि उसे कोई-न-कोई इनाम मांगना ही होगा।

महाराज की इच्छा को जानने के बाद दरबार में मौजूद अन्य दरबारी शिल्पकार से कहने लगे कि महाराज खुले मन से तुम्हें कुछ देना चाह रहे हैं। तुम जल्दी से मांग लो। शिल्पकार अपनी कला में माहिर होने के साथ ही स्वाभिमानी और बुद्धिमान भी था। शिल्पी को लगा कि अगर वह कुछ नहीं मांगता, तो महाराज नाराज हो सकते हैं। अगर वह कुछ लेता है, तो वह उसके स्वाभिमान और उसूलों के खिलाफ होगा।

ऐसे में कुछ देर सोचने के बाद शिल्पकार ने साथ लाए अपने औजारों का झोला खाली किया और खाली झोले को महाराज की तरफ बढ़ाते हुए कहा कि इनाम स्वरूप इस झोले को दुनिया की सबसे बहुमूल्य वस्तु भर दीजिए।

शिल्पी की बात सुनकर महाराज सोच में पड़ गए कि ऐसी कौन सी वस्तु है, जो सबसे बहुमूल्य है। काफी देर तक सोचने के बाद महाराज ने दरबार में मौजूद राजपुरोहित व सेनापति समेत अन्य दरबारियों से इसका जवाब मांगा। घंटों सोचने के बाद भी शिल्पी को क्या दिया जाए, इसका उत्तर किसी को समझ नहीं आया।

किसी से भी संतोषजनक जवाब न मिलने पर महाराज झल्ला गए और शिल्पी से कहने लगे कि इस दुनिया में हीरे जवाहरात से बढ़कर और क्या कीमती हो सकता है? चलो, मैं तुम्हारा ये झोला उसी से भर देता हूं। महाराज की बात सुनकर शिल्पी ने इनकार में सिर हिलाते हुए कहा, “नहीं महाराज, हीरे-जवाहरात इस दुनिया में सबसे कीमती नहीं हैं। मैं वो कैसे ले सकता हूं।”

संयोगवश उस दिन तेनालीराम दरबार में मौजूद नहीं थे। किसी से भी समस्या का समाधान न मिलने पर महाराज ने तुरंत तेनालीराम को बुलाने का आदेश दिया। महाराज का संदेश मिलते ही तेनालीराम तुरंत दरबार की ओर निकल पड़े। रास्ते में ही सेवक ने तेनालीराम को महाराज की चिंता का कारण बता दिया।

दरबार पहुंचते ही तेनालीराम ने सबसे पहले महाराज को प्रणाम किया और फिर सभा में मौजूद अन्य लोगों का अभिवादन किया। महाराज की व्याकुलता को देखते हुए तेनालीराम ने सभा में ऊंची आवाज में कहा, “जिसे भी सभा में दुनिया की सबसे बहुमूल्य वस्तु चाहिए वह सामने आए।” तेनालीराम की बात सुनकर शिल्पी आगे आया और अपना खाली झोला तेनालीराम की ओर बढ़ा दिया।

शिल्पकार से झोला लेकर तेनालीराम ने उसके मुंह को खोला और हवा में 3-4 बार ऊपर नीचे हिलाकर थैले के मुंह को बांध दिया। इसके बाद तेनालीराम ने झोला शिल्पी की ओर बढ़ाते हुए कहा कि अब आप यह झोला ले सकते हैं, क्योंकि मैंने इसमें दुनिया की सबसे कीमती वस्तु भर दी है। शिल्पकार ने भी झोला थामते हुए तेनालीराम को प्रणाम किया और फिर महाराज से अनुमति लेते हुए औजार उठाकर सभा से चला गया।

यह दृश्य देखकर सभा में मौजूद सभी लोग अचंभित रह गए। महाराज ने उत्सुकता जताते हुए तेनालीराम से पूछा कि शिल्पी को खाली झोला देने के बावजूद भी वह बिना कुछ कहे ही क्यों चला गया? इससे पहले उसने हीरे-जवाहरात जैसे कीमती सामान को बहुमूल्य मानने से इनकार कर दिया था।

महाराज की उत्सुकता व दरबारियों के चेहरे पर प्रश्न चिह्न को देखते हुए तेनालीराम ने कहा, “हे महाराज, वह झोला खाली बिल्कुल भी नहीं था, क्योंकि उसमें दुनिया की सबसे बहुमूल्य वस्तु यानी हवा भरी हुई थी। इस दुनिया में हवा से कीमती और क्या हो सकता है, जिसके बिना हम जीवित नहीं रह सकते।”

तेनालीराम का जवाब सुनकर महाराज खुश हो हुए और उसकी पीठ थपथपाने लगे। तेनालीराम की बुद्धिमता से प्रसन्न होकर महाराज ने उसे इनाम स्वरूप अपने गले से एक कीमती मोतियों की माला निकालकर पहना दी।

कहानी से सीख

इस कहानी से दो सीख मिलती है। पहली यह कि धन से स्वाभिमान नहीं खरीदा जा सकता। दूसरी यह कि दुनिया में सबसे कीमती हवा है, जिसका मूल्य कोई नहीं चुका सकता। हमें यह मुफ्त मिलती है, इसलिए हम इससे कीमती दौलत को समझ लेते हैं।

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