07 March 2022

शिकारी झाड़ियां | Shikari Jhadiya Story In Hindi

Shikari Jhadiya Story in Hindi

महाराज कृष्णदेव हर साल ठंड के मौसम में नगर के बाहर डेरा डाला करते थे। इस दौरान महाराज और उनके कुछ दरबारी व सैनिक उनके साथ तंबू लगाकर रहते थे। राज्य के सभी कामकाज को छोड़कर उन दिनों गीत-संगीत की महफिलें सजती और कभी किस्से कहानियों के दौर चला करते थे।

ऐसी ही एक सुहानी शाम में महाराज के मन में शिकार पर जाने का विचार आया। महाराज ने दरबारियों से कहकर शिकार की तैयारियां शुरू करवाईं। इसके बाद अगली ही सुबह महाराज अन्य दरबारियों व कुछ सैनिकों के साथ शिकार के लिए निकलने लगे।

तेनालीराम महाराज के प्रिय थे, उन्होंने उनसे भी शिकार पर साथ चलने को कहा। महाराज की बात सुनकर एक दरबारी कहने लगा, “रहने दीजिए महाराज, तेनालीराम की उम्र हो चली है और अब वह शिकार पर जाएंगे तो जल्दी ही थक जाएंगे।” दरबारी की बात सुनकर सभी हंसने लगे, लेकिन तेनालीराम ने कुछ नहीं बोले। इतने में महाराज ने तेनालीराम से कहा कि वह दरबारियों की बातों पर ध्यान न दें और उनके साथ शिकार पर चलें।

महाराज के कहने पर तेनालीराम भी एक घोड़े पर सवार होकर काफिले के साथ चल पड़े। कुछ समय बाद महाराज का काफिला जंगल के बीच पहुंच गया। शिकार के लिए नजरें दौड़ाते हुए महाराज को पास ही एक हिरण दिखाई दिया। हिरण पर निशाना साधने के लिए जैसे ही राजा ने तीर कमान पर चढ़ाया हिरण वहां से भागने लगा और महाराज अपने घोड़े पर उसका पीछा करने लगे।

महाराज को हिरण के पीछे जाते देख अन्य दरबारियों के साथ तेनालीराम भी महाराज का पीछा करने लगे। जैसे ही महाराज ने हिरण पर निशाना साधा वो एक घनी झाड़ियों में जाने लगा। महाराज निशाना लगाने के लिए हिरण के पीछे झाड़ियों में जाने लगे। तभी तेनालीराम ने पीछे से महाराज को रुकने के लिए आवाज दी।

तेनालीराम की आवाज से महाराज का ध्यान भंग हो गया और उनका निशाना चूक गया। हिरण के झाड़ियों में जाते ही महाराज ने पलटकर गुस्से से तेनालीराम को देखा। महाराज ने तेनालीराम को डांटते हुए पूछा कि आखिर उसने उन्हें झाड़ियों में जाने क्यों नहीं दिया। नाराज होते हुए राजा कृष्णदेव ने कहा कि उसके चलते हिरण का शिकार नहीं हो पाया।

महाराज की डांट सुनने पर भी तेनालीराम चुप्पी साधे रहे। महाराज के चुप होने पर तेनालीराम ने एक सैनिक को पेड़ पर चढ़कर झाड़ियों के उस पार देखने को कहा। तेनालीराम के कहने पर सैनिक ने देखा कि वह हिरण जिसका महाराज पीछा कर रहे थे, वो कंटीली झाड़ियों में फंसा हुआ है और बुरी तरह से लहूलुहान है। काफी देर तक प्रयास करने के बाद भी वह हिरण उन कंटीली झाड़ियों से निकल पाया और लड़खड़ाते हुए जंगल की ओर भाग गया।

पेड़ से उतरकर सैनिक ने महाराज को पूरी आंखों देखी सुनाई। सैनिक की बात सुनकर महाराज को बड़ी हैरानी हुई। उन्होंने तेनालीराम को पास बुलाया और उससे पूछा कि क्या उसे पहले से पता था कि वहां कंटीली झाड़ियां हैं। महाराज की बात सुनकर तेनालीराम ने कहा, “जंगल में कई ऐसी झाड़ियां होती हैं, जो व्यक्ति को लहूलुहान करके अधमरा छोड़ सकती है। मुझे शक था कि आगे ऐसी ही ‘शिकारी झाड़ियां’ हो सकती हैं।”

तेनालीराम की बात सुनकर महाराज उसकी सूझबूझ के एक बार फिर कायल हो गए। महाराज ने अन्य दरबारियों की ओर देखते हुए कहा कि तुम लोग नहीं चाहते थे कि तेनालीराम शिकार पर आए, लेकिन आज उसके ही कारण मेरी जान बची है। महाराज ने तेनालीराम की पीठ थपथपाते हुए कहा कि तुम्हारी बुद्धि और सूझबूझ का कोई मुकाबला नहीं है।

कहानी की सीख

जल्दबाजी में उठाए गए कदम कई बार हमें नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसलिए, परिस्थिति व आसपास की चीजों को देखते हुए ही सूझबूझ से काम करना चाहिए।

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