शेख चिल्ली बहुत ही गरीब परिवार से था। वह पढ़ाई-लिखाई में भी बहुत कमजोर था। अगर वो किसी चीज में माहिर था, तो वो था दिन भर बस खेल-खूद करना। अपना सारा समय वह मोहल्ले के लड़कों के साथ कंचे खेलने में बिता देता था। इसी तरह उसका पूरा बचपन बीत गया। धीरे-धीरे वह बड़ा होता चला गया लेकिन उसकी आदतें नहीं बदली।
शेख चिल्ली की इस आदत से उसकी मां बहुत परेशान थी। वह चाहती थी शेख चिल्ली अब बड़ा हो गया है, तो उसे कुछ काम-धंधा करना चाहिए, ताकि घर की हालत सुधर सके। एक दिन उसने शेख चिल्ली को बुलाया और खूब डांड लगाते हुए कहा – “कब तक तू दिन भर ऐसे ही मोहल्ले के आवारा लड़कों के साथ कंचे खेलेगा? अब तो तू बड़ा हो गया है और हट्टा-कट्टा भी है, तो तू कोई नौकरी क्यों नहीं करता है। कब तक ऐसे घर बैठे-बैठे मुफ्त की रोटियां खाएगा?”
मां की बात सुनकर शेख चिल्ली ने कुछ भी नहीं कहा। वह चुपचाप उनके आदेशों का पालन करते हुए अगले दिन नौकरी की तलाश में दूसरे गांव के लिए निकल पड़ा। शेख चिल्ली की मां ने उसके थैले में रास्ते के लिए सात रोटियां बांध दी। इसके बाद शेख चिल्ली आगे की ओर निकल पड़ा।
शेख चिल्ली ने आधा ही रास्ता तय किया था कि उसे भूख लग गई। वह एक कुएं के पास ठहरा और अपने थैले से रोटियां निकाल कर खाने के लिए बैठ गया। मां की दी हुई सात रोटियों को देखकर वह कहने लगा – “एक खाऊं, दो खाऊं, तीन खाऊं कि सातों को खा लूं।”
संयोग से उसी कुएं में सात परियां भी रहती थीं। शेख चिल्ली की खाने वाली बात सुनकर वे घबरा गईं। उन्हें लगा कि वह उन परियों को खाने की बात कर रहा है। डर के मारे वे सातों परियां कुएं से बाहर आई और शेख चिल्ली से विनती करने लगी कि वह उन्हें न खाए।
परियों ने शेख चिल्ली से कहा – “हमें मत खाओ। हम तुम्हें एक जादुई घड़ा देंगे। उस घड़े से तुम जो भी मुराद मांगोगे वह पूरी हो जाएगी।”
शेख चिल्ली ने परियों से जादुई घड़ा लिया और फिर वापस अपने घर आ गया। घर पहुंचकर उसने अपनी मां को परियों वाली बात बताई। मां यह सब सुनकर हैरान थी। उसने सोचा क्यों न परियों द्वारा दिए गए जादुई घड़े को आजमा कर देखा जाए। मां ने घड़े से ढेर सारे पकवान की इच्छा मांगी। इतना कहते ही उनके सामने तरह-तरह के पकवान थालियों में सज गए। दोनों से उस रात भरपेट खाना खाया।
इसके बाद शेख चिल्ली की मां ने उस जादुई घड़े से ढेर सारा धन मांगा और दोनों अमीर हो गए। यह सब देखकर शेख चिल्ली की मां बहुत खुश थी, लेकिन उसके मन में डर था कि गांव वाले उसके मूर्ख बेटे से उनके अमीर होने का राज न उगलवा लें।
तभी शेख चिल्ली की मां को एक तरकीब सूझी। वह बाजार गई और ढेर सारे बताशे खरीद लाई। फिर घर के छप्पर पर चढ़कर उनकी बारिश करने लगी। छप्पर से बताशे की बरसात देखकर शेख चिल्ली खूब खुश हुआ। उसे लगा ऐसा उस घड़े की वजह से हो रहा है। उसने ढेर सारे बताशे खाए।
अमीर बनने के बाद शेख चिल्ली व उसकी मां के रहने के तौर-तरीके भी बदल गए, जिसे कुछ ही दिनों में गांव के लोगों ने भांप भी लिया। गांव के लोग सोचने लगे कि अचानक ये इतने अमीर कैसे हो गए।
गांव के कुछ लोग शेख चिल्ली की मां के पास गए और पूछने लगे आखिर उन लोगों के पास इतने सारे धन कहां से आए। गावं वाले की बात सुनकर शेख चिल्ली मां ने कुछ नहीं बताया, तो उन्होंने सोचा कि चलो सीधा मूर्ख शेख चिल्ली से ही पूछ लिया जाए।
एक दिन मौका मिलते ही गांव के लोगों ने शेख चिल्ली को बुलाया और उससे पूछा कि आज-कल तुम्हारे रंग-ढंग कैसे बदल गए हैं। इस पर शेख चिल्ली ने उन्हें परी और जादुई घड़े वाली सारी बात बता दी।
शेख चिल्ली की बात सुनकर गांव वाले उसके घर पर गए और जादुई घड़ा दिखाने के लिए कहने लगे। इस पर शेख चिल्ली की मां ने कहा कि उनके पास ऐसा कोई घड़ा नहीं है।
मां ने कहा – “तुम लोग तो जानते ही हो कि मेरा बेटा मूर्ख है। यह तो दिन में भी सपने देखता है।”
यह सुनकर शेख चिल्ली ने जोर देते हुए कहा – “मां याद करो, मैंने तुम्हें ही वो जादुई घड़ा दिया था। क्या तुम भूल गई? उसी घड़े से तो हमने रात में ढेर सारे पकवान खाए थे और फिर हमारी छप्पर से बताशे की बारिश भी तो हुई थी।”
यह सुनकर उसकी मां ने हंसते हुए कहा – “लो अब बताओ कोई, भला छप्पर से भी कहीं बताशे की बारिश होती है?”
अब गांव वालो को भी शेख चिल्ली की मां की बातों पर यकीन हो गया था। उन्होंने मान लिया कि शेख चिल्ली ने कोई सपना देखा होगा और उन्हें कोई मनगढ़ंत कहानी सुना रहा होगा और सभी अपने-अपने घर वापस चले गए।
कहानी से सीख – मूर्ख लोगों की सच बात पर भी कोई यकीन नहीं करता है। इसलिए, उम्र व जरूरत के अनुसार खुद की कमियों को दूर करना चाहिए और होशियारी का हुनर सीखना चाहिए।
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