07 March 2022

अपमान का बदला | Apmaan Ka Badla Tenali Raman Story In Hindi

 

Apmaan ka badla Tenali Raman Story in Hindi

राजा कृष्णदेव राय दूर-दूर तक मशहूर थे। तेनालीराम ने भी राजा कृष्णदेव राय के चर्चे खूब सुने थे। तेनाली ने सुना था कि राजा चतुर और बुद्धिमानों का सम्मान करते हैं। इसलिए, उसने सोचा कि क्यों न राज दरबार में जाकर हाथ आजमाया जाए। लेकिन, इसमें एक अड़चन थी कि बिना किसी बड़ी मदद के वो वहां तक पहुंच नहीं सकता था। ऐसे में, उसे किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश थी, जो उसे राज दरबार तक पहुंचा सके।

इस बीच तेनाली की शादी मगम्मा नाम की लड़की से हो गई। एक वर्ष बाद तनाली के घर बेटा हुआ। इस दौरान तेनाली को पता चलता है कि राजा कृष्णदेव राय का राजगुरु मंगलगिरी नामक स्थान पर गया है। तेलानी वहां पहुंच जाता है और राजगुरु की खूब सेवा करता है और उन्हें महाराज से मिलने की अपनी इच्छा भी बताता है। लेकिन, राजगुरु था बहुत चालाक, उसने बड़े-बड़े वादे रामलिंग यानी तेनालीराम से किए और उससे खूब अपनी सेवा करवाई।

इस बीच राजगुरु ने सोचा कि अगर कोई चतुर इंसान राज दरबार में आ गया, तो उसका सम्मान घट जाएगा। इसलिए, राजगुरु ने रामलिंग से कहा कि, “मुझे जब भी सही मौका दिखेगा, मैं तुम्हारी मुलाकात महाराज से करवा दूंगा।” इसके बाद क्या था, तेनालीराम राजगुरु के बुलावे का इंतजार करने लगा, लेकिन कई दिनों तक कोई भी खबर नहीं आई।

इस बात पर कई लोग रामलिंग का मजाक उड़ाने लगे और कहते कि, “भाई रामलिंग, विजयनगर जाने की तैयारी कर ली?” इस बात पर तेनाली कहता कि, “उचित समय आने पर सब हो जाएगा।” लेकिन, धीरे-धीरे रामलिंग का राजगुरु पर विश्वास उठ गया और उसने खुद ही विजयनगर जाने का फैसला किया। वो अपनी मां और पत्नी के साथ विजयनगर के लिए रवाना हो गया।

यात्रा के दौरान किसी भी तरह की परेशानी आती, तो रामलिंग राजगुरु का नाम ले लेता। रामलिंग ने अपनी मां से कहा कि, “व्यक्ति जैसा भी हो, लेकिन नाम ऊंचा हो, तो सभी काम हो जाते हैं। इसलिए, मुझे अपना नाम बदलना होगा। महाराज कृष्णदेव राय के प्रति अपना सम्मान प्रकट करने के लिए मैं भी अपने नाम के साथ कृष्ण लगाऊंगा।” इस बात पर तेनाली की मां ने कहा कि, “बेटा मेरे लिए तो दोनों नाम बराबर हैं। मैं तुझे राम बुलाती थी और आगे भी इसी नाम से बुलाऊंगी।”

चार महीने की यात्रा के बाद आखिरकार तेनालीराम विजयनगर पहुंच जाता है। उसे राज्य की चमक-दमक देखकर बड़ा अच्छा लगा। बड़े-बड़े घर, साफ सड़कें और बाजार को देखकर वो दंग रह गया। इसके बाद, वहां कुछ दिन ठहरने के लिए उसने वहां के किसी परिवार से प्रार्थना की। फिर वो अकेला राज महल की ओर निकल पड़ा। वहां पहुंचकर उसने एक सेवन के हाथों राजगुरु तक संदेश भिजवाया कि तेनाली गांव से राम आया है। लेकिन, सेवक ने वापस आकर बताया कि राजगुरु इस नाम के किसी भी व्यक्ति को नहीं जानते हैं।

यह बात सुनकर रामलिंग को गुस्सा आया और वो सीधा राजगुरु से मिलने अंदर चल गया। अंदर पहुंच कर उसने राजगुरु से कहा कि, “मैं रामलिंग, मंगलगिरि में आपकी सेवा की थी।” लेकिन, राजगुरु ने जानबूझकर उसे पहचाने से इंकार कर दिया। राजगुरु ने रामलिंग को धक्के देकर वहां से निकलवा दिया। यह देख वहां मौजूद सभी लोग तेनाली पर हंसने लगे। तेनाली का इससे बड़ा अपमान आज तक नहीं हुआ था। उसने मन ही मन इस अपमान का बदला लेने की ठान ली। लेकिन, इसके लिए राजा का दिल जीतना जरूरी था।

अगले दिन रामलिंग दरबार में पहुंच गया। वहां गंभीर विषयों पर चर्चा जारी थी। संसार क्या है? जीवन क्या है? जैसे सवाल किए जा रहे थे। वहां मौजूद एक पंडित ने अपने जवाब में कहा कि, “संसार कुछ नहीं, बल्कि एक छलावा है। हम जो भी देखते हैं या खाते हैं, वो बस विचार है। सच में ऐसा कुछ होता ही नहीं है, लेकिन हमें लगता है कि ऐसा होता है।”

इस पर तेनालीराम ने पूछा कि, “क्या सच में ऐसा होता है?” उस पंडित ने कहा, “यह बात शास्त्रों में लिखी हुई है और शास्त्र गलत नहीं होते।” लेकिन, तेनालीराम को अपनी बुद्धि पर पूरा विश्वास था। इसलिए, उसने वहां मौजूद सभी लोगों से कहा कि, “क्यों न पंडित जी के विचारों की जांच की जाए। महाराज की तरफ से आज दावत का आयोजन है। हम सब खूब खाएंगे, लेकिन पंडित जी कुछ नहीं खाएंगे। पंडित जी बिना कुछ खाए भावना करेंगे कि वो खा रहे हैं।”

तेनालीराम की इस बात पर वहां मौजूद सभी लोग हंसने लगे। पंडित जी शर्म से पानी-पानी हो गए। महाराज भी रामलिंग से बहुत खुश हुए और उसे स्वर्ण मुद्राएं भेंट की। इसके बाद राजा कृष्णदेव राय ने तेनालीराम को राज विदूषक का पद दे दिया। वहां मौजूद सभी लोगों ने महाराज के फैसले का स्वागत किया। फैसले की प्रशंसा करने वालों में राजगुरु भी था।

कहानी से सीख : इस कहानी से हमें ये सीख मिलती है कि किसी का भी अपमान नहीं करना चाहिए और न ही किसी से झूठा वादा करना चाहिए।

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