दूसरे फकीर सुकेब के बाद जुबैदा ने तीसरे फकीर को अपनी कहानी सुनाने को कहा। तीसरे फकीर ने अपना किस्सा सुनाते हुए बताया कि मेरा नाम अजब है। मैं भी एक बादशाह का ही बेटा हूं। मुझे भी अन्य लोगों की तरह मजबूरी में फकीर बनना पड़ा, लेकिन मेरी आंख किसी दूसरे की गलती से नहीं, बल्कि अपनी वजह से फूटी है। मैंने अपने पिता किसब की मौत के बाद उनका सिंहासन संभाला था। मेरा राज्य समुद्र के किनारे में बसा हुआ था, जिस वजह से मैं जहाज से अलग-अलग नगर आया-जाया करता था।
एक दिन मेरे मन में हुआ कि अपने नगर के लोगों से मिलकर उन्हें व्यापार के लिए प्रेरित करता हूं। इसी सोच के साथ मैं जहाज में बैठकर निकल गया। सारी जगह घूमने के बाद हम अपने राजमहल की ओर लौटने लगे, लेकिन तूफान के कारण जहाज रास्ता भटक गया। कई दिनों तक पानी में चलने के बाद भी जब मंजिल नहीं मिली, तो मैंने कुछ लोगों को जहाज के ऊपर चढ़कर दूर-दूर तक नजर दौड़ाने को कहा। इससे यह पता लग जाता कि आसपास कहीं जमीन है या नहीं।
तभी एक आदमी की आवाज आई कि दाईं तरफ कुछ काला-काला दिखाई दे रहा है। यह सुनते ही जहाज चलाने वाला मांझी घबरा गया और जोर-जोर से रोने लगा। मैंने पूछा आखिर ऐसा क्या हुआ है कि तुम इतना डर रहे हो। उसने जवाब दिया कि वो काला चुंबक का पहाड़ है। जैसे ही उसके पास हमारा जहाज पहुंचेगा, तो जहाज का सारा लोहा निकलकर पहाड़ पर चिपक जाएगा और जहाज टूट जाएगा।
यह सुनते ही सब डर के मारे परेशान हो गए। मौत के डर में किसी तरह से लोगों ने रात बिताई। फिर दिन होते-होते जहाज उस पहाड़ के पास पहुंच गया और फिर वैसा ही हुआ जैसा जहाज के मांझी ने कहा था। पूरा पहाड़ टूट गया और पानी में डूबने लगा। भाग्य से मैं एक ऐसी चीज के ऊपर गिरा कि डूबा नहीं और तैरता हुआ उसी चुंबक वाले पहाड़ के पास पहुंच गया। मैंने उस पहाड़ पर चढ़कर अपनी जान बचाने की कोशिश की, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। वो पहाड़ बहुत खड़ा था। मैं जितनी बार उस पर चढ़ने की कोशिश करता फिसल जाता।
तभी मुझे वहां पैरों के गहरे निशान दिखाई दिए, जिनपर चलकर मैं ऊपर चढ़ने की कोशिश करने लगा। हवा भी बहुत तेज चल रही थी। ऊंचाई पर चढ़ते हुए मैं कई बार डगमगाया, लेकिन किसी तरह से ऊपर चढ़ ही गया। ऊपर पीतल का एक गोला सा बना हुआ था, जिसके अंदर घोड़े पर सवार एक मूर्ति लगी हुई थी। मैं उस गोले के अंदर चला गया और उस मूर्ति को ही ऊपर वाला मानकर उसे अपनी जान बचाने के लिए धन्यवाद कहकर वही सो गया।
तभी मैंने एक सपना देखा। सपने में मुझे एक बूढ़ा आदमी उस जगह से निकलने का रास्ता बता रहा था. उसने कहा कि जहां तुम सो रहे हो वहां की जमीन खोदकर धनुष और बाण निकालना और फिर इसे घोड़े पर सवार मूर्ति पर चला देना। ऐसा करने पर मूर्ति समुद्र में और उसपर बना घोड़ा तुम्हारे पैरों के पास गिर
जाएगा। उसे घोड़े को वही जमीन पर दफना देना, जिससे समुद्र में बड़ा सा तूफान आएगा और उसका पानी भी बढ़ने लगेगा। जब समुद्र का पानी पहाड़ तक पहुंचेगा, तो उसी पानी में एक छोटी सी नाव भी तुम्हारे पास आएगी। तुम किसी तरह से उसपर बैठ जाना, जिससे कुछ ही देर में तुम अपने राजमहल पहुंचे जाओगे। बस इस दौरान भगवान या ऊपर वाले किसी का नाम मत लेना।
सपना जैसे ही पूरा हुआ मेरी नींद खुल गई। मैंने जल्दी-जल्दी वो सब किया, जो मैंने सपने में देखा था। धनुष चलाने और घोड़े की मूर्ति दफनाने के बाद एक नाव आई जिसमें बैठकर मैं चला गया। दस दिनों तक समुद्र में यात्रा करने के बाद मुझे आसपास अपने नगर दिखे। खुशी के मारे मैं उस बूढ़े की हिदायत भूल गया और मैंने भगवान का नाम ले लिया। जैसे ही मेरे मुंह से भगवान का नाम निकला, वैसे ही नाव समुद्र में डूब गई।
नाव किनारे में ही थी, इसलिए मैं डूबा नहीं। तैरते हुए आगे की ओर बढ़ने लगा। कई घंटों तक मैं तैरता रहा, लेकिन किनारे पर नहीं पहुंचा। कुछ देर बाद बड़ी सी लहर आई और उसने मुझे एक तट पर फेंक दिया। मैंने आसपास के पेड़ से कुछ फल खाकर अपनी भूख मिटाई। कुछ ही देर में उस द्वीप से मुझे एक जहाज आता हुआ दिखा मैंने सोचा कि उसे रोक लूं, लेकिन फिर लगा कि अगर इसमें लुटेरे हुए तो क्या होगा। ऐसा सोचकर मैं ऊंचे पेड़ पर चढ़ गया।
मैंने वहां से देखा कि जहाज एक किनारे पर रूका और उससे कई लोग कुछ औजार लेकर निकले। उन्होंने समुद्र के किनारे की जमीन को खोदा और वहां जब एक दरवाजा दिखने लगा, तो उन्होंने खुदाई बंद कर दी। फिर वो लोग जहाज पर जाकर खाने-पीने का सामान लेकर बाहर आने लगे उनके साथ ही एक बूढ़ा आदमी और एक लड़का भी बाहर आया। उसके बाद सब एक-एक करके उस खोदी हुई जगह के दरवाजे को खोलकर अंदर चले गए। कुछ देर बाद उससे सारे लोग और बूढ़ा व्यक्ति बाहर आया, लेकिन वो जवान लड़का नहीं निकला। यह देखकर मैं हैरान हो गया। जहाज वाले लोगों ने उस जगह पर दोबारा मिट्टी डालकर दरवाजा पूरी तरह से ढक दिया और वापस चले गए।
सबके जाने के बाद मैं भी पेड़ से उतरा और उस जगह पर पहुंच गया। मैंने भी उस जगह पर खुदाई की। फिर मुझे भी एक दरवाजा दिखा और उसके नीचे सीढ़ियां। मैं उनसे उतरकर नीचे गया, तो वहां मुझे एक खूबसूरत घर दिखा। वहां एक लड़का बैठा हुआ था, जिसके आसपास मोमबत्तियां जल रही थीं और आसपास खाने की कई चीजें रखी हुई थी। तभी लड़के की नजर मुझपर पड़ी और वो घबरा गया। मैंने उसे समझाया कि मुझसे उसे कोई खतरा नहीं है। अगर वो परेशानी में है, तो मैं उसे बचा सकता हूं।
मेरी बातें सुनकर वो शांत हुआ। फिर मैंने उससे पूछा कि जहाज से आए लोग उसे ऐसे छोड़कर क्यों चले गए। तब उसने बताया कि वो एक जौहरी का बेटा है, जो काफी धनवान है। सालों से पिता उसके पैदा होने की कामना कर रहे थे। उसी बीच उन्होंने एक सपना देखा कि उनका बेटा पैदा होने के कुछ ही सालों में मर जाएगा। इससे वो परेशान रहने लगे। तभी एक दिन मां ने बताया कि वो गर्भ से हैं। फिर नौ महीने बाद उसका जन्म हुआ। तभी एक पंडित ने बताया कि उनके बेटे की मौत चौदहवें साल में हो सकती है। अगर किसी तरह से उस समय बच गया, तो लंबी जिंदगी जीने को मिलेगी।
इतना कहने के बाद जौहरी के बेटे ने मुझे बताया कि पंडित ने कहा है कि अजब नाम के बादशाह के हाथों उसकी मृत्यु होगी। वो 14 साल का होने वाला है और उसकी मौत के डर से पिता ने उसे इस टापू में जमीन के अंदर बनाए हुए घर में रखा हैं। अब 40 दिनों तक का ही खतरा है। यह सुनकर मेरे मन में हुआ कि मैं ही अजब बादशाह हूं, लेकिन इस बच्चे को पता चला तो वो परेशान हो जाएगा। तब मैंने बच्चे से कहा कि वो घबराए नहीं। अब उसके सिर की मुसीबत टल गई है, कोई भी उसे नुकसान नहीं पहुंचा सकता। इतना कहकर मैंने खुद पूरे 40 दिन उसकी सेवा करने का फैसला किया।
मैं रोज उसके साथ खेलते, खाता और रात को सो जाता। ऐसा करते-करते 39 दिन बीत गए। 40 वें दिन वो बच्चा बहुत खुश था, उसने कहा कि कुछ देर बाद ही मेरे पिता आ जाएंगे। इतना कहकर वो जल्दी से तैयार होकर आ गया। उसके बाद हम दोनों ने साथ में खाना खाया और फिर उस बच्चे ने मुझसे तरबूज काटने को कहा। मैंने उससे पूछा चाकू कहा है। उसने बताया कि उसके सिरहाने के ऊपर की दीवार के खाचे में चाकू रखा है। वह जगह थोड़ी ऊंचाई में थी, इसलिए मैंने खूदकर उस चाकू को पकड़ने की कोशिश की। चाकू हाथ में आ गया, लेकिन मेरा पैर फिसला और मैं चाकू के साथ ही बच्चे के सीने पर जाकर लगा। उसी वक्त बच्चा मर गया।
मुझे बहुत अफसोस हुआ कि अनजाने में ही सही, लेकिन मेरे हाथों से उस मासूम बच्चे की मौत हो गई। मैं बहुत देर तक रोया और फिर जल्दी से उस जगह से बाहर निकला। मैंने पहले की तरह वहां से निकलकर उस जगह पर मिट्टी डाल दी। बाहर देखा, तो उसके जौहरी पिता जहाज लेकर आ गए थे। मैं जल्दी से पेड़ पर चढ़ गया।
जहाज से जौहरी और कुछ लोग खुशी-खुशी बाहर आए। उन्होंने दोबारा मिट्टी खोदी और नीचे चले गए, लेकिन कुछ ही देर में अंदर से रोने-चिल्लाने की आवाज आने लगी। जौहरी अपने बेटे के सीने में चाकू लगा हुआ देखकर बेहोश हो गया। होश आने के बाद जौहरी अपने बेटे को लेकर उसी पेड़ के नीचे बैठ गया, जिसके ऊपर मैं बैठा हुआ था। फिर उसी पेड़ के नीचे एक गड्ढा खोदकर उसने अपने बच्चे को दफना दिया और रोते-रोते जहाज में बैठकर वापस चला गया।
मैंने सोचा था कि बच्चे के साथ मैं भी वापस अपने राजमहल जाऊंगा, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। अब मैं रोज रात को उसी जगह पर सो जाता और दिन होते ही वहां से बाहर निकलकर खाने के लिए फल और आगे जाने का रास्ता ढूंढता।
ऐसा होते-होते एक महीने बीत गया। फिर एक दिन समुद्र का पानी सूखने लगा। पानी सूखते-सूखते मेरे घुटनों के बराबर पहुंच गया। तब मैंने हिम्मत करके समुद्र के किनारे से सफर करना शुरू किया। देखते-ही-देखते पानी और सूख गया। हर जगह रेत-ही-रेत थी। तभी मुझे दूर कही आग दिखाई दी। मैं उस दिशा की ओर यह सोचकर बड़ा कि पक्का यहां कोई इंसान रहता होगा। वहां पहुंचा तो देखा कि सात लोग थे, लेकिन सबकी एक आंख फूटी हुई थी। मैं मन में सोच ही रहा था कि यह कैसे हुआ होगा कि एक आदमी ने मुझसे मेरा परिचय पूछा।
मैंने बताया कि मैं बादशाह अजब हूं और सारे रास्ते की घटना सुना दी। मेरी कहानी सुनकर वो मुझे अपने घर ले गए। सबका घर नीले रंग का और एक जैसा था। सभी सात लोग अलग-अलग घर में रहते थे। इन घरों के बीच में एक कालीन बिछा हुआ था, जहां एक वृद्ध बैठा था। एक व्यक्ति ने मुझे भी उसी कालीन में बैठने को कहा। साथ ही यह भी बताया कि तुम यहां जबतक रहना चाहो रह सकते हो, लेकिन हम जो भी करें उसकी वजह मत पूछना और हमारी एक आंख क्यों नहीं है यह सवाल, तो बिल्कुल मत पूछना।
फिर सबके लिए उस बूढ़े व्यक्ति ने खाना बनाया और सबको खाना दे दिया। उस खाने में से थोड़ा सा उसने मुझे भी दिया। मैं भी खाकर चुपचाप बैठ गया। उसके बाद उस वृद्ध व्यक्ति ने सभी सातों लोगों के सामने एक-एक प्लेट रख दी, जिसमें स्याही थी। सबने उस स्याही को अपने चेहरे पर लगाया और जोर-जोर से रोए और कहने लगे हम कितने अभागे हैं। अपने हाथों से हमने अपनी दुनिया को उजाड़ दिया है। उन्हें देखकर मैं डर गया। कुछ देर बाद वो बुजुर्ग फिर वहां आया और फिर उनको एक-एक गिलास पानी दिया सबने अपना मुंह धोया और अपने-अपने कमरे में चले गए।
भले ही मुझे उन्होंने मना किया था कि मैं उनसे कुछ न पूछू, लेकिन मैं रात भर सो नहीं पाया। मैंने सुबह होते ही उन लोगों से कहा कि मुझे पता है कि आप लोगों ने मुझे अपने बारे में पूछने से मना किया है, लेकिन मैं रात भर नहीं सो पाया। मुझे जानना है कि रात में सब रोए क्यों और ऐसा क्या हुआ था कि आप सबकी दाहिनी आंख फूट गई, लेकिन मुझे किसी ने जवाब नहीं दिया।
फिर रात को बूढ़े ने सबके लिए खाना बनाया और दोबारा चेहरे पर स्याही लगाकर रोने लगे। फिर यह सब देखकर मुझे रात को नींद नहीं आई। अगले दिन सुबह मैंने फिर उन लोगों से रात की घटना का कारण और अपने नगर जाने का रास्ता भी पूछा। सबने मुझे समझाया कि अगर तुम हमारी कहानी जानोगे, तो काने हो जाओगे। इन बातों से दूर रहो। कई दिनों तक मैं अपनी जिद में अड़ा रहा और कहा परिणाम जो भी हो, लेकिन मुझे उनकी कहानी जाननी है।
मेरे सवालों से परेशान होकर उन सभी सात लोगों ने मुझे एक भेड़ की खाल में बंद कर दिया और हाथ में एक चाकू दे दिया। फिर बताया कि एक पक्षी मुझे लेकर पहाड़ में चला जाएगा। वहां पहुंचते ही चाकू से भेड़ की खाल काटकर उससे निकलकर चिल्लाना, जिसे सुनकर वो पक्षी भाग जाएगा। वहां एक महल मिलेगा, जहां तुम्हारे सारे सवालों के जवाब हैं।
इसके बाद उन्होंने मुझे भेड़ की खाल में अकेले जंगल के बीच में छोड़ दिया। कुछ देर बाद एक बड़ा-सा पक्षी आया और मुझे उड़ाकर ले गया। जैसे ही उसने मुझे पहाड़ में पहुंचाया मैंने उनके बताए अनुसार ठीक समय में भेड़ की खाल काटी और जोर से चिल्लाया, जिसे सुनकर पक्षी भाग गया। उसके बाद वो सुंदर सा महल दिखा, जिसके बारे में मुझे उन सात लोगों ने बताया था।
महल को देखते ही मैं अंदर चला गया। वहां इतनी सुख-सुविधाएंं थी कि मैं आराम से रहने लगा। वहां मेरी सेवा करने के लिए 40 सेविकाएं रहती थीं। रोज वो मेरी सेवा करती और मुझे स्वादिष्ट खाना खिलाती। ऐसा होते-होते एक साल बीतने वाला था। फिर कुछ दिनों के बाद उन सारी सेविकाओं मुझे कहा कि वो महल से जाना चाहती हैं। मैंने उनसे पूछा कि ऐसा क्या हुआ कि उन्हें अचानक जाना है। मैंने उनसे उनकी कहानी सुननी चाही। उन्होंने बताया कि आपकी तरह ही यहां कई लोग आते हैं और एक साल तक हम उनकी सेवा करते हैं। उसके बाद उनके साथ जो होता है, अब वही आपके साथ भी होगा। यह सब सुनकर मैं हैरान रह गया।
उसके बाद उन्होंने बताया कि वो एक साल इस महल में रहती हैं और फिर 40 दिन के लिए दूसरी जगह चले जाती हैं। आज वो एक साल बीत गया है। इतना कहकर उन्होंने चाबियों का एक गुच्छा मेरे हाथ में दे दिया और बताया कि इन चाबियों से आप महल का कोई भी कमरा खोलकर वहां घूम सकते हैं। यहां का हर कमरा खूबसूरत और आलीशान है। उसके बाद उन्होंने मुझसे बस एक सोने का दरवाजा न खोलने का अनुरोध किया और कहा कि उस दरवाजे को खोलने से सब कुछ बर्बाद हो जाएगा।
फिर मैंने पूछा कि जब तुम्हें हर बार जाना ही होता है, तो तुम रो क्यों रही हो। तब उन्होंने बताया कि हमारे रोने की एक वजह आपसे दूर होना है और दूसरा कारण यह है कि हम जानते हैं आप उस सोने के दरवाजे को जरूर खोलेंगे और आपके साथ वो बुरी चीजें होंगी, जो अन्य लोगों के साथ हुई हैं। इसी वजह से हमारी मुलाकात कभी नहीं हो पाएगी। आपसे दूर होना और दोबारा न मिलने के डर से हम सभी रो रही हैं।
सबकी बातों को सुनकर मैं परेशान हो गया। फिर मैंने उनसे कहा कि मैं ऐसा मैं कुछ नहीं करूंगा, जिससे तुमसे अलग होना पड़ा। उसके बाद सभी चले गए और मैंने सोचा कि सिर्फ एक दरवाजा नहीं खोलना है, लेकिन अन्य दरवाजे तो खोले जा सकते हैं। यही सोचकर मैंने दूसरे दरवाजे खोलने शुरू किए।
जब मैंने पहला दरवाजा खोला, तो वहां देखा कि बहुत बड़ा बाग था। उसमें कई तरह के फल लगे हुए थे। वह बाग ऐसा था कि उन्हें पानी देने की जरूरत तक नहीं पड़ती थी। फिर मैंने दूसरा दरवाजा खोला उसके अंदर फूलों का बगीचा था। दोनों दरवाजे बंद करके मैंने तीसरा दरवाजा खोला, जिसमें तरह-तरह के पक्षी रहते थे। हर कमरे में इसी तरह की अलग-अलग चीजें थीं। एक कमरे में ऐसे जेवरात थे, जिनको मैंने कभी नहीं देखा था। खजाने को देखकर मेरे मन में हुआ कि मैं बहुत किस्मत वाला हूं कि ऐसे महल में आया हूं।
बस उसके बाद एक ही दरवाजा खोलने के लिए बचा था। मैंने जैसे ही उसे खोला उससे खुशबू आई और मेरा दिमाग काम करना बंद हो गया। मैं सेविकाओं को किए हुए सारे वादे भूल गया और उस खुशबू में खो गया। फिर मैंने वो सोना का दरवाजा भी खोल दिया। मैं उसके अंदर गया और देखा कि वहां दीप जल रहे थे। साथ ही अंदर एक घोड़ा था। उसे देखते ही मैं उसके ऊपर बैठ गया और उसकी लगाम को मैंने हाथ में पकड़ लिया। तभी वो घोड़ा हवा में भागने लगा। मैंने उसे रोकने की कोशिश की, तो वो और तेज भागा।
फिर घोड़ा धीरे-धीरे मुझे उसी घर में लाया जहां में था। उस घर की पितल की छत पर उसने मुझे फेंक दिया। उसके बाद घोड़े ने जोड़ से मुझे अपनी पूंछ मारी, जो सीधे मेरी एक आंख में लगी और वो फूट गई। तभी घोड़ा वहां से हवा में उड़ गया। उसके बाद मैं किसी तरह से नीचे आया और देखा कि वहां सात मकान हैं और बीच में चटाई लगी हुई थी।
सभी सात लोग मेरे सामने थे, लेकिन सबने मुझे अनदेखा किया। फिर बूढ़े व्यक्ति ने मुझे कहा कि देखो, मैंने तुम्हें पहले ही कहा था कि तुम्हारे साथ क्या होगा। जवाब में मैंने भी अपनी गलती स्वीकार करते हुए कहा कि जो भी हुआ है मेरी वजह से ही हुआ है। तब उन सात लड़कों और बूढ़े ने मिलकर कहा कि यहां तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं अब तुम बगदाद चले जाओ। उन्होंने मुझे यहां का पता और रास्ता बताया। फिर मैं अपनी दाढ़ी, मूंछ, सिर के बाल और भौहें सब मुंडवाकर बगदाद के लिए निकल गया।
यहां पहुंचकर मैं उन दोनों फकीरों से मिला, जिन्होंने आपको पहले कहानी सुनाई थी। उसके बाद मैं इन फकीरों के साथ आपके घर पहुंचा जहां मुझे आदर मिला। जुबैदा ने फकीर की कहानी सुनकर कहा कि ठीक है मैंने तुम्हें माफ किया। उसके बाद जुबैदा ने तीनों फकीरों को वहां से जाने कहा।
जुबैदा की बात सुनकर तीनों फकीर ने उनसे कहा, “हुजूर, हम इन तीन आदमियों की भी कहानी सुनना चाहते हैं। हमें कुछ देर और रुककर इनकी कहानी सुनने का मौका दें।” जुबैदा ने सिर हिलाते हुए उन्हें रुकने की आज्ञा दी। फिर तीनों आदमियों से अपनी कहानी सुनाने को कहा।
जुबैदा को कोई अंदाजा नहीं था कि उन तीन लोगों में से एक अब्बास वंश का सातवां खलीफा है और अन्य दो लोग उनके मंत्री जाफर और मसरूर हैं। ऊंचे पद पर होने के बाद भी खलीफा के मंत्री जाफर ने जुबैदा से कहा, “हम आपको पहले ही बता चुके हैं कि हम यहां व्यापार के लिए आए हैं।” व्यापार के सिलसिले में सबसे मुलाकात के बाद हमें एक व्यापारी ने आज खाने पर बुलाया था, इसलिए हम उसके घर खाने के लिए गए।
व्यापारी ने हमारा खूब सत्कार किया। स्वादिष्ट खाना खिलाया और फिर कुछ मनोरंजन किया। उसके बाद हमने कुछ देर शतरंज का खेल खेला और सबने मिलकर संगीत का आनंद लिया। संगीत की धुन में खोकर वहां मौजूद लोग नाचने और हल्ला करने लगे। सबकी आवाजों के कारण वहां पर शोर इतना ज्यादा होने लगा कि राजा के कुछ सिपाही पहुंच गए। उन्होंने हल्ला करने और दूसरों की शांति भंग करने की वजह से सभी लोगों को गिरफ्तार कर लिया। हम तीन लोग किसी तरह से वहां से भागकर निकल गए थे।
हमने जैसे ही अपने घर की ओर जाना शुरू किया, तो पता लगा कि रात बहुत हो गई है और हमारे सराय राज्य के द्वार बंद हो चुके हैं। हमने रात बिताने के लिए इधर-उधर घूम कर कुछ इंतजाम करना चाहा, लेकिन कुछ हुआ नहीं। फिर भटकते-भटकते आपके घर के पास पहुंचे, तो कुछ लोग हंस-बोल रहे थे और गाने की आवाजें भी आ रही थीं। यह देखकर हम आपके घर आए और दरवाजा खटखटाने लगे। आपने दरवाजा खोला और हमें यहां कुछ देर ठहरने को दिया। हमारी इतनी ही कहानी है।
मंत्री की बात सुनकर जुबैदा ने उन पर विश्वास कर लिया। उन्होंने कहा कि ठीक है मैं तुम्हारी बात मान लेती हूं। अब तुम तीनों यहां से चले जाओ और फिर जुबैदा ने मजदूरों और फकीरों को भी वहां से जाने का इशारा किया। उसकी बात सुनने के बाद भी कोई बाहर निकलने को तैयार नहीं हुआ और आराम से बैठे रहे। जुबैदा ने गुस्सा में कहा कि तुम सब यहां से जाते हो या नहीं। फटाफट बाहर निकल जाओ, वरना अपनी जान से चले जाओगे।
जुबैदा की बात सुनकर तीनों फकीर, सातों मजदूर, खलीफा और उनके मंत्री डर गए, क्योंकि वहां सात लोग तलवार लेकर भी खड़े थे। सभी जल्दी-जल्दी बाहर निकल गए। उनके जाते ही जुबैदा ने घर का दरवाजा बंद कर दिया। मजदूर अपने रास्ते निकल गए। तभी खलीफा ने तीनों फकीरों से पूछा कि तुम सब कहा जाओगे, क्योंकि इस नगर के बारे में तुम्हें कुछ भी नहीं पता। जवाब में फकीरों ने कहा कि हम भी यही सोच रहे हैं कि कहा जाएंगे, क्योंकि रात बहुत हो गई है।
तभी खलीफा ने अपने मंत्री जाफर के कान में कहा कि तुम अपने घर इसे ले जाओ और सुबह मेरे दरबार में लेकर आ जाना। इधर, जाफर ने ऐसा ही किया वो अपने साथ सभी फकीरों को ले गए। उधर, खलीफा और मसरूर दोनों महल चले गए। महल पहुंचकर खलीफा अपने कमरे में सोने के लिए गए, लेकिन उन्हें नींद नहीं आई। उनके दिमाग में एक ही बात चल रही थी कि जुबैदा आखिर है कौन। उसने अपने घर के जानवरों को क्यों मारा और उसके बाद उन्हें प्यार क्यों किया। फिर अचानक खलीफा के दिमाग में एक
महिला के शरीर पर पड़े काले निशान आ गए। उन्होंने सोचा कि आखिर उसके शरीर पर वो काले निशान कैसे पड़े होंगे। उसके बारे में भी जानना चाहिए।
ये सब सोचते-सोचते सुबह हो गई। खलीफा अपने बिस्तर से उठे उन्होंने स्नान किया और बगीचे में टहलते हुए फिर जुबैदा के बारे में सोचने लगे। नाश्ता करके खलीफा ने तुरंत मंत्री मसरूर को बुलाया। उसे खलीफा ने कहा कि मुझे रात भर नींद नहीं आई। मुझे जुबैदा और उसके घर के दोनों काले रंग के जानवरों के बारे में जानना है कि आखिर उनकी कहानी क्या है। तुम तुरंत जाकर जुबैदा के घर के सभी लोगों को राजमहल लेकर आओ। आते-आते उन फकीरों को भी अपने साथ लेकर आना।
खलीफा की आज्ञा मिलते ही मंत्री जुबैदा के घर गया। उसने पिछली रात का जिक्र किए बिना जुबैदा को अपने साथ खलीफा के महल चलने को कहा। यह सुनकर जुबैदा हैरान हुई। उसने घर के सभी लोगों को दरबार बुलाने का कारण पूछा। कुछ देर सोचने के बाद जुबैदा अपनी दोनों बहनों को लेकर मंत्री के साथ महल के लिए निकल गई। फिर मसरूर अपने घर गए और फकीरों को भी अपने साथ खलीफा के महल चलने को कहा। कुछ ही देर में मसरूर सभी के साथ खलीफा के दरबार पहुंच गए।
खलीफा सबको देखकर खुश हुए। उनके मन में हुआ कि अब वो जुबैदा की कहानी जान पाएंगे। उन्होंने जुबैदा और उनकी बहनों को एक परदे के पीछे बैठा दिया। फिर सभी फकीर को मंत्रियों के पास की कुर्सी पर बैठाया, क्योंकि उन्हें पता था कि वो राजकुमार हैं। तब खलीफा ने जुबैदा को बताया कि मैं कल आपसे व्यापारी बनकर मिला था। कुछ ऐसी बातें कल हुई कि आपको दुख हुआ, लेकिन मैं यह जानकर बहुत खुश हूं कि आप मजबूत इरादों वाली महिला हैं। इतना ही नहीं, हम लोगों ने आपसे किया हुआ वादा तोड़ा और उन काले जानवरों के बारे में पूछ लिया। हमारी गलतियों को आपने माफ किया। इससे पता चलता है कि आपका दिल भी अच्छा और साफ है। मैं चाहता हूं कि बगदाद की हर महिला आपकी जैसी हिम्मत वाली और नेक दिल वाली बने।
इतना कहकर खलीफा ने दरबार बुलाए गए सभी लोगों को कहा कि आप घबराएं नहीं। मैंने यहां किसी को भी सजा देने के लिए नहीं बुलाया है। मैं अब्बास वंश का सातवां खलीफा हारूं रशीद हूं। फकीरों की तरफ देखते हुए खलीफा ने कहा कि मैंने आप सबकी कहानी उस रात जुबैदा के घर में सुनी। मुझे बुरा लगा कि आप राजकुमार होने के बाद भी फकीर बनकर रह रहे हैं। फिर खलीफा ने जुबैदा से कहा कि मैंने वहां मौजूद सभी लोगों की कहानी सुनी है, लेकिन अब मेरे मन में आपका किस्सा सुनने की इच्छा है। आप कौन हैं और आप लोगों में से किसी एक महिला के शरीर में कुछ काले निशान हैं, जिसका कोई-न-कोई बड़ा कारण जरूर है। मुझे इन सब बातों के बारे में जानना है।
खलीफा की बात सुनने के बाद भी जुबैदा ने कुछ नहीं कहा और वो चुप रहीं। उसके बाद हारूं रशीद की बात को उनके मंत्री ने दोबारा दोहराया। आंखों में आंसू लिए जुबैदा ने खलीफा से कहा, “जनाब आप मेरी कहानी सुनना चाहते हैं, तो मैं जरूर सुनाऊंगा। मेरे जीवन में जो कुछ भी हुआ है वो बहुत अलग है। शायद आपने ऐसी कहानी कभी नहीं सुनी होगी।” इतना कहकर जुबैदा ने खलीफा को अपना किस्सा सुनाना शुरू किया। जुबैदा की रोचक कहानी सुनने के लिए हमारी दूसरी स्टोरी पढ़ें।
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