खलीफा हारूं रशीद अपने राज्य के लोगों का सुख-दुख जानने के लिए अक्सर भेष बदलकर बगदाद की सड़कों पर घूमा करते थे।
एक दिन उसने अपने मंत्री जाफर को बुलाया और कहा कि मैं आज रात फिर से भेष बदल कर शहर में चक्कर लगाऊंगा। अगर उस दौरान कोई भी पहरेदार सोता मिला, तो उसे दंड दिया जाएगा, जबकि काम कर रहे मेहनती पहरेदारों को इनाम दूंगा।
मंत्री जाफर तय समय पर रात को खलीफा के पास पहुंचा। उसके साथ जासूसों का सरदार मसरूर भी था। इसके बाद तीनों आम नागरिकों का रूप बनाकर बगदाद शहर में घूमने लगे।
एक गली में उन लोगों ने एक आदमी को देखा। उसका कद लंबा और सफेद दाढ़ी थी। उसके पास एक जाल और नारियल के पत्तों से बना टोकरा था। खलीफा को उस पर दया आ गई और मंत्री को उसके करीब भेजा। मंत्री ने उससे पूछा कि तुम कौन हो और कहां जा रहे हो?
उसने कहा, “मैं गरीब मछुआरा हूं। आज मछली पकड़ने गया था, लेकिन काफी कोशिश करने के बाद भी शाम तक कोई मछली जाल में नहीं फंसी। अब मुझे मजबूरन खाली हाथ घर जाना पड़ रहा है। घर में मेरी बीवी और बच्चे इंतजार कर रहे हैं। मुझे समझ नहीं आ रहा कि आज उनका पेट कैसे भरूंगा।”
मछुआरे की बात सुनकर खलीफा को उस पर दया आ गई और उन्होंने कहा, “तुम एक बार फिर नदी पर चलो और जाल फेंको। तुम्हारे जाल में कुछ फंसे या न फंसे, लेकिन मैं तुम्हें 400 सिक्के दूंगा और तुम्हारे जाल में जो कुछ आएगा, उसे मैं ले लूंगा।” मछुआरा खुद को भाग्यशाली मानता हुआ फिर से नदी के किनारे पहुंचा और ऊपर वाले को याद करके जाल फेंक दिया। जब उसे लगा कि जाल में कुछ फंस गया है और उसने उसे खींच लिया। बाहर निकालने पर पता चला कि उसमें एक भारी संदूक फंसा हुआ है। अपने वादे के मुताबिक, खलीफा ने मछुआरे को 400 सिक्के दे दिए।
खलीफा को उस संदूक को देखकर बेहद हैरानी हुआ कि आखिर इसमें क्या है। उसके कहने पर जाफर और मसरूर ने संदूक को महल में रखवा दिया। वहां लेकर जब संदुक को खोला गया, तो उसमें नारियल की चटाई मिली, जिसमें किसी चीज को डालकर सिल दिया गया था। खलीफा यह देखकर और बेचैन हो गया और सिलाई काटी गई, तो उसके अंदर से एक सुंदर स्त्री की लाश मिली, जिसे टुकड़े-टुकड़े करके चटाई के अंदर सिली दिया गया था।
यह देखकर खलीफा को बहुत गुस्सा आया और उसने मंत्री पर नाराजगी जताते हुए कहा, “तुम्हारे रहते शहर में ये क्या हो रहा है। मेरे राज में किसी स्त्री की इस तरह से हत्या हो जाती है और किसी को पता भी नहीं चलता। ये मुझे बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं है। अब तुम या तो उस हत्यारे का पता लगाओ या फिर तुम और तुम्हारे 40 रिश्तेदारों को फांसी पर लटकवा दूंगा।”
खलीफा की बात सुनकर मंत्री सन्न रह गया। उसने कहा कि मुझे कुछ तो समय दीजिए, जिस पर खलीफा ने उसे हत्यारे को खोजने के लिए तीन दिन की मोहलत दी।
मंत्री जाफर परेशान होकर अपने भवन लौटा और सोचने लगा कि भला तीन दिन में हत्यारे का पता कैसे चलेगा। अगर लगा भी लिया, तो उसके हत्यारे होने का सबूत कहां से लाऊंगा। फिर उसने सोचा कि अगर पहले से ही जेल में बंद किसी अपराधी पर ही हत्या का इल्जाम लगा दूं, तो कैसा रहेगा? फिर दूसरे ही पल उसने सोचा कि खुद को बचाने के लिए किसी और को मौत के मुंह में धकेलना सही नहीं होगा। ऊपर वाला भी उसे माफ नहीं करेगा।
मंत्री ने सभी सिपाहियों को तीन दिन के अंदर महिला के हत्यारे को खोजने का आदेश दिया। वो सभी तीन दिन तक घर-घर जाकर उस हत्यारे का पता लगाते रहे, लेकिन उसका कहीं पता नहीं चला। तीन दिन बाद खलीफा के आदेश पर जाफर और उसके 40 परिवार वालों को खलीफा के सामने पकड़कर लाया गया। खलीफा अब भी गुस्से में था, इसलिए उसने उन सभी को फांसी देने का आदेश दिया।
फिर मंत्री और उसके परिवार वालों की गर्दनों में फांसी का फंदा डाल दिया गया। यह देखने के लिए पूरे शहर की भीड़ वहां इकट्ठा हो गई। सभी मंत्री के अच्छे व्यवहार और न्यायप्रियता के कारण लोग उससे बहुत प्यार करते थे। कई लोग यह नजारा देखकर रोने लगे, लेकिन किसी में इतना साहस नहीं था कि वो खलीफा के सामने मंत्री के मृत्यु दंड का विरोध कर सके।
जल्लाद सभी को फांसी पर लटकाने ही लगा था कि एक सुंदर युवक भीड़ से निकलकर आया और बोला, “मंत्री और उसके परिजनों को छोड़ दिया जाए, क्योंकि स्त्री का हत्यारा मैं हूं।” यह सुनने के बाद मंत्री अपनी जान बचने से तो खुश था, लेकिन उस युवक की तय मौत के बारे में सोचकर बहुत दुखी हुआ। अभी मंत्री यह सब सोच ही रहा था कि भीड़ से एक बूढ़ा आदमी आया और बोला, “यह युवक झूठ बोल रहा है। स्त्री को मैंने मारा है, इसलिए दंड मुझे दिया जाए।”
उस बूढ़े आदमी ने युवक से कहा कि बेटा तुम क्यों फांसी चढ़ना चाहते हो। मैंने बहुत दुनिया देख ली है, इसलिए मुझे फांसी पर चढ़ जाने दो, लेकिन वह युवक इस बात पर कायम रहा कि स्त्री का हत्यारा वो ही है।
सैनिकों ने तुरंत सारा वाक्या खलीफा को सुनाया। इसके बाद खलीफा ने मंत्री और उसके परिवार को छोड़ने का आदेश दिया और कहा कि मंत्री को सम्मान के साथ उसके पास लाया जाए और कहा कि अगर बुजुर्ग और युवक दोनों ही खुद को हत्यारा बता रहे हैं, तो दोनों को फांसी पर चढ़ा दो, लेकिन मंत्री ने कहा कि उनमें से एक झूठ बोल रहा है, इसलिए बिना सोचे किसी को सजा देना गलत होगा।
उन दोनों को खलीफा के सामने लाया गया। युवक ने खुदा की सौगंध खाकर कहा, “मैंने ही चार दिन पहले उस स्त्री की हत्या की थी और उसके शव को टुकड़े-टुकड़े करके संदूक में बंद करके नदी में डाल दिया था। अगर मैं झूठ बोल रहा हूं, तो खुदा मुझे दंड दे।” यह सुनकर बूढ़ा चुप रह गया। युवक की बात सुनकर खलीफा को यकीन हो गया कि वही हत्यारा है। खलीफा ने कहा, “क्या उस स्त्री को मारते समय मेरा या खुदा का डर नहीं लगा और अब क्यों अपना अपराध स्वीकार कर रहे हो?” युवक बोला, “अगर आप आदेश दें, तो मैं सारी कहानी सुनाऊं। मैं चाहता हूं कि इस कहानी को लिखा जाए, ताकि सबको इससे सीख मिले।” खलीफा ने कहा, “ठीक है, ऐसा ही होगा।”
युवक ने क्या कहानी सुनाई जानने के लिए पढ़ें अगली स्टोरी।
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