शहरजाद की कहानियों को सुनने में शहरयार को बहुत अच्छा लगता था। शहरयार को शहरजाद की हर एक कहानी रोचक और मजेदार लगती थी। शहरजाद ने जैसे ही कहानी खत्म की वैसे ही शहरयार को एक और कहानी सुनने का मन हुआ और उसने कहा तुम्हें कोई और कहानी भी आती हैं। जवाब में शहरजाद ने कहा बहुत सारी कहानियां आती हैं और शुरू हो गया फिर एक नई कहानी के साथ जिसका नाम था सिंदबाद जहाजी की कहानी। हम अपने लेख के जरिए आपको सुनाते हैं यह कहानी।
शहरजाद ने कहानी की शुरुआत खलीफा रशीद के शासन काल से की जहां पर हिंदबाद नाम का एक मजदूर रहता था जो बहुत गरीब था। गर्मी के मौसम की बात है हिंदबाद अपने सिर पर भारी सामान रख कर कहीं जा रहा था। गर्मी बहुत ज्यादा थी और सामान भी बहुत भारी था जिसके वजह से उसे बहुत थकान हो रही थी। हिंदबाद ने अपनी थकान को कम करने के लिए कहीं पर बैठने का फैसला किया। जहां पर वो बैठा उस दीवार से सटे घर के अंदर से कई तरह की खुशबू आ रही थी। यहां तक की गलियों में गुलाब जल से छिड़काव भी किया हुआ था, ठंडी-ठंडी हवा के साथ गुलाब जल की महक का पता चल रहा था। इन सब खास चीजों के बीच पक्षियों की मधुर आवाज के शोर के साथ-साथ पकवान बनने की सुगंध आ रही थी। इतना कुछ एक साथ होता देख मजदूर को ऐसा लगने लगा था कि शायद ये किसी अमीर आदमी का घर है। उसे जानने की इच्छा हुई कि आखिर यह घर वास्तव में किसका है?
मजदूर ने देखा की उस घर के दरवाजे से बहुत सारे सेवक का आना-जाना लगा हुआ है। सेवक को देख मजदूर ने पूछ ही लिया कि, “इस घर का मालिक कौन है”। मजदूर के इस सवाल से सेवक को बहुत अचम्भा हुआ और सेवक ने मजदूर से कहा कि, “तू बगदाद का रहने वाला है फिर भी इस घर के मालिक को नहीं जानता”। सिंदबाद जहाजी का घर है यह, जो लखपति नहीं बल्कि करोड़पति हैं।
घर के मालिक के बारे में जानकर मजदूर ने अपने दोनों हाथों को आसमान की तरह उठाते हुए कहा कि, “हे दुनिया को बनाने वाले, यह किस तरह का अन्याय है”। एक तरफ रात-दिन आराम की जिंदगी जीने वाला सिंदबाद है तो दूसरी तरफ मैं मजदूरी करने वाला हिंदबाद जो रात-दिन कड़ी मेहनत करने के बाद बड़ी मुश्किल से अपनी पत्नी और बच्चों का पेट पाल पाता हूं। मजदूर ने आगे कहा, “हम दोनों ही इंसान हैं। क्या अंतर है हम दोनों में”?’ मजदूर की बातों से लग रहा था कि वो जैसे भगवान के सामने अपना गुस्सा जाहिर कर रहा हो। मजदूर बहुत निराश हो कर अपने दुर्भाग्य पर अफसोस करने लगा।
जब वो मजदूर निराश हो कर खड़ा था तभी उस घर के सेवक ने मजदूर का हाथ पकड़ते हुए कहा, “अंदर चलो, हमारे मालिक सिंदबाद ने तुझे बुलाया है”। सेवक की बात को सुनकर मजदूर बहुत घबरा गया और मन ही मन डर के मारे सोचने लगा कि लगता है मैंने जो अभी कहा वो सिंदबाद को पता चल गया है तभी तो मुझे अंदर बुलाया है ताकि दंड दे सके। डर के मारे मजदूर सेवक से कहने लगा कि, “मैं अंदर नहीं जाऊंगा और बहाने बनाने लगा मेरा सामान बाहर पड़ा है कोई चोरी कर लेगा तो”। सेवकों ने मजदूर से कहा कि, “तेरे सामान को कुछ नहीं होगा हम ध्यान रखेंगे और तुझे भी कुछ नहीं होगा”। सेवकों के इतना बोलने के बाद भी मजदूर उनसे बहस करता रहा पर मजदूर की एक ना चली और उसे घर के अंदर जाना ही पड़ा।
हिंदबाद यानी की मजदूर को सेवक एक ऐसी जगह पर ले गए जहां पर बहुत सारे लोग एक साथ खाना खाने के लिए बैठे हुए थे। तरह-तरह के पकवान वहां रखे थे और इन सब के साथ एक बुढ़ा लेकिन धनवान आदमी जिसकी सफेद लम्बी दाढ़ी छाती तक थी, वहां पर बैठा था। उस आदमी के पीछे बहुत सारे सेवक खड़े थे। मजदूर को यह सब देखकर डर लग रहा था। डर के मारे मजदूर ने उस सफेद दाढ़ी वाले आदमी को सिर झुकाकर सलाम किया। वो सफेद दाढ़ी वाला आदमी जिसका नाम सिंदबाद था उसने बड़े प्रसन्नतापूर्वक भाव से उसके सलाम का जवाब देते हुए भोजन और मदिरा मजदूर के सामने रख दिया। सिंदबाद वहां बैठे सभी लोगों को देख रहे थे कि उन्होंने भोजन किया या नहीं। जब सबने खाना खा लिया तो सिंदबाद ने मजदूर को फिर से देखा।
सिंदबाद ने मजदूर को ध्यान से देखते हुए कहा कि,’अरबी क्या नाम है तुम्हारा’। दरअसल बगदाद में जब भी किसी को आदर के साथ पुकारा जाता है तो उसे अरबी कह कर पुकारते हैं। सिंदबाद ने आगे कहा, “मैं और यहां पर मौजूद सभी लोग तुम्हारे यहां आने से बहुत खुश हैं”। पर “मैं तुम्हारे मुंह से वो सारी बातों को सुनना चाहता हूं जो तुमने बाहर कही थी”। दरअसल सिंदबाद जहां बैठे थे वो हिस्सा उसी जगह से लगा था जहां पर मजदूर बैठा था, तभी सिंदबाद ने सारी बातें सुन ली थी।
अपनी कही हुई बातों पर मजदूर को बहुत शर्म आ रही थी। मजदूर ने सिंदबाद से कहा, उस वक्त मैं थका हुआ था और बहुत गर्मी के कारण गुस्से में था। गुस्से में उस समय मेरे मुंह से ऐसी बातें निकल गई जो मैं इस सभा में बोलने की हिमाकत नहीं कर सकता। हिंदबाद (मजदूर) ने सिंदबाद से अपनी इस गलती के लिए माफी मांगी।
मजदूर के माफी मांगने पर सिंदबाद ने कहा, “मैं किसी पर अत्याचार नहीं करता हूं जो किसी के कुछ बोलने पर उसे दंड दूंगा”। सिंदबाद ने आगे कहा, “मुझे तो तुम्हारी बातें सुनकर तुम पर गुस्सा नहीं बल्कि दया आई और तुम्हारी ऐसी हालत देखकर तकलीफ हुई”। सिंदबाद ने मजदूर से कहा, “लेकिन तुमने ऐसी बातें कहकर अपना आज्ञान प्रकट किया है”। सिंदबाद ने कहा कि” “तुम्हें लगता है बिना कुछ मेहनत किए बिना ही मुझे ये शान-शौकत मिली है”। ऐसा नहीं है मैंने बहुत सारे संकटों का सामना किया है और उन्हें झेला है, तब जाकर भगवान ने मुझे इतना कुछ दिया है।
सिंदबाद ने उस महल में मौजूद सारे लोगों से कहा, “मुझे पिछले कई वर्षों तक मुसीबतों ने जकड़ रखा और बड़े अजीब से अनुभव भी हुए”। मेरी कहानी सुनकर आप लोगों को बहुत अचम्भा होगा क्योंकि मैंने अमीर बनने के लिए नियम के अनुसार सात बार बड़ी-बड़ी यात्राएं की जिसमें बहुत कष्टों का सामना करना पड़ा। सिंदबाद ने कहा कि, “अगर आप लोग चाहें तो मैं वह सब हाल सुनाऊं”। सभी लोगों ने कहा कि हां-हां जरूर सुनाएं। सिंदबाद ने हाल सुनाने से पहले अपने सेवकों को आदेश दिया कि, “हिंदबाद का सामान जो वो घर ले जा रहा था उसे उसके घर पहुंचा दें”। सेवकों ने अपने मालिक के आदेश को मानते हुए सामान को घर पहुंचा दिया। उसके बाद सिंदबाद ने अपनी सात बड़ी यात्रा में से पहली यात्रा का वृतांत कहना शुरू किया।
कहानी से सीख:-
अपने पास जो है उसमें खुश रहना सीखना चाहिए और कभी भी दूसरों के पास क्या है उसे देखकर अपनी तुलना उससे नहीं करनी चाहिए। दूसरों की सुख-सुविधा को देखकर यह सोचना कि उसे बिना मेहनत किए भगवान ने सब कुछ दिया है यह गलत है और आपके आज्ञान को दर्शाता है।
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