बहुत जमाने पहले मिस्र में एक न्यायप्रिय बादशाह रहता था। वह इतना शक्तिशाली था कि आस-पास के राजाओं को भी उसका खौफ था। उनका मंत्री भी शासन का कार्यभार संभालने में कुशल और न्यायप्रिय था। मंत्री के दो पुत्र शम्सुद्दीन मुहम्मद और नूरुद्दीन अली थे। मंत्री का देहांत होने के बाद बादशाह ने दोनों बेटों को बुलाकर मंत्री पद पर नियुक्त किया।
जब बादशाह शिकार करने जाते थे तो एक भाई उनके साथ जाता था और दूसरा राज्य का कार्यभार संभालता था। एक बार बड़ा भाई बादशाह के साथ दूसरे दिन सुबह शिकार में जाने वाला था। इसलिए पहले दिन शाम को दोनों भाई एक साथ मिलकर हंसी मजाक कर रहे थे। हंसी-हंसी में बड़े भाई ने कहा हम दोनों भाई मिलकर एक साथ जैसे यह राज्य चलाते हैं, ठीक उसी तरह क्यों न संभ्रांत (अमीर) परिवारों की कन्याओं के साथ एक दिन में शादी करें।
छोटे भाई ने कहा जैसी आपकी इच्छा। जैसे-जैसे शाम बढ़ती गई, दोनों भाई नशे में चूर होते गए। बड़े भाई ने फिर बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि बात सिर्फ शादी तक क्यों रहेगी। अगर ऐसा हो कि एक ही रात हमारी बेगम गर्भधारण भी करें। फिर एक ही दिन हम दोनों की संतानें पैदा हो। तुम्हारे यहां पुत्र हो और मेरे यहां पुत्री। जब दोनों बच्चे बड़े हो जाएंगे तो दोनों की शादी कर देंगे। छोटे भाई ने कहा कि इससे अच्छी बात क्या हो सकती है कि मेरे बेटे के साथ आपकी बेटी की शादी होगी।
बड़े भाई ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि लेकिन मेरी एक शर्त है कि दहेज में नौ हजार अशर्फियाँ नकद, तीन गाँव और दुल्हन के साथ तीन दासियाँ होंगी। छोटे भाई ने भी मजाक में ही कहा कि दहेज तो आपको देना चाहिए। छोटे भाई की इस बात पर बड़ा भाई बहुत गुस्सा हो गया। धीरे-धीरे हँसी-मजाक का माहौल गंभीर रूप में बदल गया।
बेकार का मजाक गंभीर रूप धारण करता गया। नशे की हालत में बड़े भाई ने कहा कि तुमको सुबह बादशाह के पास ले जाकर दंड दिलवाऊंगा, तभी तुम्हें पता चलेगा कि बड़े भाई से गुस्ताखी करने का अंजाम क्या होता है। उसके बाद दोनों अपने-अपने कमरे में चले गए। छोटा भाई अपमान से जल-भून रहा था। वह सोच रहा था कि अगर बड़ा भाई नशे की हालत में एक मजाक के लिए ऐसा कह सकता है तो फिर गंभीर बात होने पर क्या करेगा।
दूसरे दिन शम्सुद्दीन महमूद बादशाह के साथ जंगल शिकार करने चला गया, लेकिन छोटा भाई रात के अपमान को भूल नहीं पाया। वह बहुत सारा रत्न आभूषण और खाने-पीने का सामान एक खच्चर पर लादकर मिस्र देश हमेशा के लिए छोड़कर चला गया। बहुत दिनों की कष्टदायक यात्रा में उसका खच्चर मर गया। वह खुद सामान उठाते हुए बसरा पहुँच गया। बसरा पहुँच कर उसने देखा कि एक भव्य व्यक्तित्व वाले आदमी की सवारी जा रही थी। उसने उस व्यक्ति को प्रणाम किया। वह शख्स बसरा का मंत्री था। वह नूरुद्दीन के चेहरे पर उच्च वंश की छाप देखकर उसको अपने साथ ले गया। परदेश आने का कारण पूछने पर नूरुद्दीन ने कहा कि सगे संबंधियों के साथ झगड़ा होने के कारण वह देश छोड़कर जगह-जगह भटक रहा है।
उसके बाद नूरुद्दीन मंत्री के साथ ही बसरा में रहने लगा। मंत्री भी उसकी विद्या और बुद्धि से बहुत खुश होता था। एक दिन मंत्री ने उसे अपनी रूपवती कन्या के साथ विवाह करने का प्रस्ताव दिया। विवाह के दिन उसने बूढ़े मंत्री से अपने घर छोड़ने की असली वजह बताई। मंत्री यह बात सुनकर बोले कि तुम्हारा देश छोड़कर निकलने का फैसला गलत तो था लेकिन तुम्हारा आना मेरे लिए अच्छा ही हुआ। इस बीच शम्सुद्दीन ने भाई का पता लगाने लोगों को दूर-दूर तक भेजा लेकिन न मिलने के कारण उसने भाई को मरा हुआ मान लिया। सबसे संयोग की बात यह हुई कि दोनों भाईयों की शादी एक ही दिन एक ही समय अपनी-अपनी जगह पर हुई। अजीब बात यह है कि दोनों भाईयों के घर संतान भी एक ही साथ हुई। नूरुद्दीन के घर बेटा हुआ तो शम्सुद्दीन के घर बेटी।
नूरुद्दीन ने अपने बेटे का नाम बदरुद्दीन हसन रखा। फिर एक दिन मंत्री नूरुद्दीन को बादशाह के पास ले जाकर कहा कि मेरा पद मेरे दामाद को दे दिया जाये। बादशाह भी उसकी बुद्धिमत्ता से बहुत खुश थे, इसलिए उसको मंत्री पद देने में कोई आनाकानी नहीं की। चार वर्षों के बाद मंत्री भी गुजर गए। उस वक्त बदरुद्दीन सात वर्ष का था। सही समय पर नुरुद्दीन ने बेटे का विद्या का अभ्यास करवाना शुरू कर दिया। समय के साथ बदरुद्दीन की बुद्धि भी तेज होती गई।
एक दिन नूरुद्दीन को बादशाह के दरबार ले गए। बादशाह ने कुछ सवाल किए, जिनका बदरुद्दीन ने बड़े ही समझदारी से जवाब दिया। उसकी समझदारी पर बादशाह बहुत खुश हुए। नूरुद्दीन भी समय के साथ बेटे की बुद्धि को ज्ञान देता रहा। एक दिन नूरुद्दीन भी बीमार पड़ गया। कोई भी दवा-दारू काम नहीं आया।.नूरुद्दीन अपना अंतिम समय समझकर बेटे को पास बुलाकर अपने बारे में बताया। उसने कलमदानी से एक कागज निकाल कर दिया और बेहोश हो गया। उसके बाद उसकी मृत्यु हो गई। बदरुद्दीन ने सारे रस्म रिवाज निभाए। बादशाह ने उसको बुलावा भेजा कि वह अपने पिता के पद पर आसीन हो, पर शोकाकुल बदरुद्दीन नहीं गया। इससे बादशाह गुस्सा हो गए। उन्होंने किसी और को यह पद दे दिया और उसको आदेश दिया कि पुराने मंत्री का जायदाद जब्त कर लो और बदरूद्दीन को पकड़कर लाओ। एक गुलाम को जैसे ही इस बात के बारे में मालूम हुआ उसने बदरूद्दीन को वहां से भाग जाने की सलाह दी। बदरुद्दीन खाली हाथ चलते चलते थक कर पिता के कब्रगाह में पहुँच गया। वहां वह,पिता के कब्र के ऊपर थक कर बैठ गया।
वहां उसकी एक यहूदी व्यापारी से भेंट हुई। उसने बदरुद्दीन को पहचान लिया। वहां बैठने का कारण पूछने पर, उसने बताया कि वह पिता को सपने में देखने के कारण यहां उनसे मिलने के लिए आया है। लेकिन यहूदी को यह बात सच नहीं लगी। उसने कहा कि आपको मालूम नहीं है कि आपके पिता ने व्यापार में भी पैसा लगाया था। कई जहाजों पर उनका हजारों दीनार का माल लदा हुआ है और वे जहाज व्यापार के लिए यात्रा पर निकल चुके हैं। मैं आपके पिता का सेवक हूँ। अब उस माल के मालिक आप हैं। आप चाहें तो अपने पहले जहाज के माल को मेरे हाथ बेच दें मैं उसे छह हजार मुद्राओं से खरीदने के लिए तैयार हूँ।’
बदरुद्दीन के पास था तो कुछ नहीं, इसलिए उसने ऐसा सुनहरा मौका खोने नहीं दिया। व्यापारी ने एक दस्तावेज पर लिखित रूप से हस्ताक्षर करवाया और उसको छह हजार मुद्राओं की थैली देकर चला गया। उसके बाद बदरूद्दीन अपने दुर्भाग्य पर रोते-रोते सो गया। उसी वक्त एक जिन्न वहां से जा रहा था, बदरुद्दीन की सुंदरता पर मोहित होकर वह एक परी को बुलाकर लाया। परी ने कहा कि मिस्र के बादशाह का एक मंत्री है, जिसका नाम शम्सुद्दीन मुहम्मद है। उसकी एक बीस बरस की पुत्री है जो बहुत सुंदर है। बादशाह ने उसके रूप की प्रशंसा सुनकर मंत्री से कहा कि उस कन्या का विवाह उसके साथ करवा दो। पर शम्सुद्दीन राजी नहीं हुआ, क्योंकि वह अपने भाई के बेटे के साथ विवाह करवाना चाहते थे। बादशाह ने इस बात से गुस्सा होकर घुड़साल में काम करने वाले एक बदसूरत कुबड़े हब्शी के साथ विवाह तय कर दिया।
यह सुनकर जिन्न ने परी से कहा कि, चलो हम दोनों मिलकर इस लड़के के साथ मंत्री की कन्या का विवाह करवाने का आयोजन करते हैं। जिन्न और परी एक क्षण ही में बदरुद्दीन हसन को उठा कर मिस्र की राजधानी काहिरा में ले आए। बदरुद्दीन की आँख खुली तो वह स्वयं को नई जगह पा कर बहुत घबराया। जिन्न ने उसे चुप रहने के लिए कहा। फिर उसे समझाया,कि वह शादी के जुलूस में शामिल हो जाए। उसके बाद अंदर जा कर दूल्हे के बगल में बैठ जाए। सभी बदरुद्दीन के रूप की प्रशंसा करने लगे। गाना बजाना हो जाने के बाद सब कक्ष में जाने लगे। अब कक्ष में सिर्फ वह और हब्शी ही रह गया। लेकिन परी और जिन्न ने कुबड़े को वहां से भगा दिया। उसके बाद बदरुद्दीन को मंत्री की पुत्री के भवन में पहुंचा दिया, जहां वह अपने शौहर का इंतजार कर रही थी। मंत्री की बेटी कुबड़े के जगह पर बदरुद्दीन को देखकर बहुत खुश हो गई। बदरुद्दीन ने एक चौकी पर अपनी पगड़ी, थैली और भारी पोशाक रख दी। अब सोते समय उसने सिर्फ टोपी, एक कुरती और तंग मोहरी का पाजामा ही पहना हुआ था। बदरुद्दीन के बगल में उसकी दुल्हन भी सो गई, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। जिन्न और परी को फिर से शरारत सुझी। उन्होंने तय किया कि जिस तरह से वो बदरुद्दीन को सोते हुए बसरा से काहिरा लाए थे, वैसे ही उसे नींद में दमिश्क नगर की जामा मस्जिद के बाहर लिटा दिया। इसके बाद दोनों वहां से चले गए।
अगली सुबह अजान की आवाज सुनकर जब दमिश्क में रहने वाले लोग नमाज पढ़ने आए, तो सीढ़ियों पर बदरुद्दीन को सोया देखकर हैरान रह गए। लोगों के वहां इकट्ठा होने पर शाेर होने लगा, तो बदरुद्दीन की नींद खुल गई। खुद को मस्जिद के सामने देखकर वह हैरान हो गया। जब उसे लोगों से पूछने पर यह पता लगा कि वह दमिश्क में है तो अचरज में पड़ गया।
लोगों से अपनी सच्चाई बताने पर लोग उसको पागल समझने लगे। वह लोगों को समझा नहीं पाया कि पिछली रात उसकी शादी काहिरा में हुई थी। बच्चे बूढ़े सब उसको पागल बोलकर चिढ़ाने लगे और पत्थर फेंकने लगे। वह डरकर हलवाई की दुकान में आकर छुप गया। हलवाई को उसकी अवस्था देखकर तरस आ गया। उसने बदरुद्दीन को रस्मों रिवाज के साथ गोद ले लिया। बदरुद्दीन ने उससे हलवाई का सारा काम सीखा और फिर हसन हलवाई के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
उधर काहिरा में जब सुबह मंत्री शम्सुद्दीन की बेटी उठी, तो अपने पति को वहां न पाकर दुखी हो गई। वह समझी कि उसके शौहर कहीं बाहर गए हैं और वह उसका इंतजार करने लगी। उधर मंत्री इस बात से दुखी होकर अपनी पुत्री के पास आया कि जाने कैसे उसने कुबड़े के साथ रात बिताई होगी। लेकिन बेटी के पास से सब सच्चाई सुनने के बाद उसको खुशी भी हुई और फिर दामाद के न मिलने पर गम भी हुआ।
बेटी ने बदरुद्दीन का सामान अपने पिता को दिखाया। वह पगड़ी को देखते ही समझ गया कि इस तरह की पगड़ी तो मोसिल के मंत्री पहना करते हैं। उसने पगड़ी को अच्छी तरह देखा, तो उसमें एक पत्र लिपटा हुआ मिला। ये वही आखिरी पत्र था, जिसे नूरुद्दीन अली ने अपने बेटे को लिखा था और बदरुद्दीन हमेशा उसे अपनी पगड़ी में संभाल कर रखता था।
मंत्री को वहां सिक्कों से भरी थैली भी मिली, जिसमें इसहाक यहूदी का लिखा कागज था। उसमें लिखा था कि मैंने 6 हजार मुद्राओं में बदरुद्दीन के जहाज का माल खरीद लिया है। शम्सुद्दीन ये सब चीजें मिलने से बहुत खुश हुआ। उसने अपनी बेटी से कहा कि तुम ठीक ही कहती हो और तुम्हारी खुशी जायज है। यह कह कर उसने अपने भाई के पत्र को कई बार चूमा और भाई की याद में रोने लगा।
उसके बाद शम्सुद्दीन की पुत्री ने नौ महीने के बाद एक पुत्र को जन्म दिया। उसका नाम अजब रखा गया। जब वह सात वर्ष का हुआ तो उसकी शिक्षा शुरू हुई। लेकिन अजब बहुत घमंडी था और अपने दोस्तों से हमेशा लड़ाई करता रहता था। एक बार सारे दोस्तों ने मिलकर एक खेल खेला जिसमें सबको अपने माता-पिता का नाम कहना था। अजब ने माँ का नाम हसना और पिता का नाम शम्सुद्दीन मुहम्मद बताया। सब उसका मजाक उड़ाने लगे। सबने उसे शादी के रात की सच्चाई बताई। इस बात से दुखी होकर अजब घर आया। बेटी और नाती की यह हालत देख कर उसने बादशाह से दामाद की खोज करने की अनुमति ली। पहले वह काहिरा से दमिश्क गया। वहां उसने डेरा डाला।
उधर दमिश्क में हलवाई का निधन हो गया था और अब नूरुद्दीन ही हसन नाम से हलवाई की दुकान चलाता था। उसने जैसे ही अजब को देखा तो प्रेम से विह्वल हो गया और बड़े ही प्यार से कढ़ाई से लेकर मलाई खिलाई। अजब को भी मलाई बहुत पसंद आई। गुलामों के बार-बार कहने पर अजब दुकान से अचानक निकल कर भाग गया, ताकि नाना को पता न चले की मंत्री का नाती आम हलवाई की दुकान से मलाई खा रहा है।
उधर शम्सुद्दीन तीन दिनों तक दमिश्क में दामाद को खोजने के लिए कई प्रमुख नगरों में गया। इनमें हलब, नारदीन, मोसल, सरवर आदि शामिल थे। अंत में वह बसरा पहुँचा और वहाँ के बादशाह से भेंट की। शम्सुद्दीन ने कहा कि मैं अपने भाई नूरुद्दीन अली के पुत्र बदरुद्दीन हसन को ढूँढ़ने निकला हूँ, आप कुछ उसके बारे में जानते हो तो कृपा करके मुझे बताएँ।
बादशाह ने नूरुद्दीन अली की पत्नी से उन्हें मिलवाया। वहां से शम्सुद्दीन अपनी भाभी को लेकर फिर से निकल पड़े। फिर से लौटते वक्त दमिश्क में डेरा डाला। अजब फिर से बदरुद्दीन की दुकान में जाकर मलाई खाकर आया। डेरे पर आकर जब दादी ने उसको मलाई दी तो पेट भरा होने के कारण वह नहीं खा पाया। उसने दादी से कहा यहां एक हलवाई है, जो बहुत अच्छी मलाई बनाता है। इस घटना से दादी को बहुत गुस्सा आया। उन्होंने कहा कि इतनी स्वादिष्ट मलाई मेरे और मेरे बेटे के सिवा कोई नहीं बना सकता है।
अजब ने दादी से माफी मांगी और कहा कि इस नगर में एक हलवाई है और वो इतनी अच्छी मलाई बनाता है कि मैं क्या कहूँ। यह सुनकर दादी गुस्से से लाल हो गई। दादी बोली कि कोई हलवाई मुझ से अच्छी मलाई नहीं बना सकता है। मुझे भी दिखाओ आखिर वह हलवाई कैसी मलाई बनाता है। इसके बाद हसन के यहां से मलाई मंगवाई गई। मलाई खाते ही दादी बेहोश हो गई। दादी ने होश आने पर बताया की यह मलाई बदरुद्दीन ने ही बनाई है।
जब यह खबर नाना शम्सुद्दीन तक पहुँची तो वह हसन को उठाकर लाया, जिसे देखकर उसकी भाभी बेहोश हो गई। शम्सुद्दीन को अपना दामाद मिल गया। उसने हसन को कुछ नहीं बताया। शम्सुद्दीन हसन को एक संदूक में बंद करके अपने शहद काहिरा लेकर आया। शम्सुद्दीन ने अपने पुत्री का कमरा बिल्कुल शादी की रात जैसा सजवाया। कमरे में हसन को संदूक से बाहर निकाला गया। बदरुद्दीन कमरे को देखकर हैरान रह गया। उसे अपनी सुहागरात याद आ गई। उसके विवाह के वस्त्र और थैली ठीक उसी जगह पर रखे थे। यह देखकर उसे अपना खोया हुआ दस साल पुराना जीवन याद आ गया। यह देखकर उसे कुछ समझ नहीं आया कि बीच में इतना कुछ कैसे हो गया और क्या हुआ। तब शम्सुद्दीन ने सब कुछ समझाकर कहा और उसको अपना परिचय दिया। कहानी खत्म होने पर मंत्री, खलीफा से रैहान हब्शी को दंड से मुक्ति दिलाने की गुहार लगाई। खलीफा मान गए और साथ ही उस जवान को एक दासी देकर कहा कि उसके साथ विवाह करके सुखपूर्वक रहें।
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