05 March 2022

अलिफ लैला मृत स्त्री और जवान हत्यारे की कहानी - Alif Laila The Story of a Dead Woman and a Young Killer

Alif laila Mrit stree aur jawan hatyare ki Story In Hindi

शहरजाद कहानी का आरंभ करते हुए कहती हैं कि बगदाद के खलीफा हारूं की एक आदत थी कि वह रात को भेष बदलकर प्रजा का हाल जानने निकलते थे। एक दिन वह मंत्री जाफर के साथ निकले थे, तो उन्होंने देखा कि एक बूढ़ा मछुआरा बहुत परेशान है। दिन भर मछली न पकड़ पाने के कारण वह यह सोचकर दुखी का कि अब वह घर पर कैसे खाना लेकर जाएगा।

मछुआरे को परेशान देखकर खलीफा ने उसे कहा कि वह एक बार फिर से जाल फेंके। जाल में जो भी मिलेगा वह उसे चार सौ सिक्के में खरीद लेंगे। मछुआरे को जाल फेंकने पर एक संदूक मिला। संदूक को खोलने पर उसमें से एक सुंदर स्त्री का शव निकला। खलीफा को अपने राज्य में ऐसी घटना देखकर बहुत गुस्सा आया। उसने मंत्री जाफर को आदेश दिया कि तीन दिन में उस स्त्री के खूनी को ढूंढ कर लाओ नहीं तो मंत्री के साथ उसके चालीस रिश्तेदारों को फांसी दे दी जाएगी।

तीन दिनों के कड़ी मेहनत के बाद भी मंत्री को हत्यारे का पता नहीं चला। खलीफा ने मंत्री को फाँसी देने की खबर पूरे शहर में फैला दी। फाँसी के दिन अपने प्रिय मंत्री को देखने के लिए लोगों की भीड़ लग गई। अचानक एक खूबसूरत जवान ने आगे बढ़कर यह कबूल किया कि उसने ही स्त्री की हत्या की है। उसने खलीफा से यह भी अनुरोध किया कि उसकी इस कहानी को लिखा जाए ताकि दूसरे भी उसकी इस कहानी से सीख लें।

जवान कहानी कहना शुरू करता है। इस कहानी में वह बताता है कि किस तरह वह एक गलतफहमी का शिकार हो गया और बिना सच्चाई जाने उसने अपनी पतिव्रता पत्नी की हत्या कर दी।

बगदाद शहर का यह जवान लड़का अपनी पत्नी के साथ सुखपूर्वक रह रहा था। उसके तीन बेटे भी थे। उसकी बीवी अपने शौहर की खुशी का हमेशा ख्याल रखती थी। वह भी अपनी बीवी से बहुत प्यार करता था। बीवी के पिता उनके रिश्ते में चाचा लगते थे। एक दिन उस जवान की बीवी बीमार पड़ गई। लेकिन दवा लेने के बाद वह धीरे-धीरे अच्छी होने लगी थी। पर एक दिन स्नान करने के लिए जाते समय फिर से अस्वस्थ हो गई। उस वक्त उसने अपने शौहर से कहा कि उसको एक सेब लाकर दे, तो वह ठीक हो जाएगी नहीं तो स्वस्थ नहीं हो पाएगी। शौहर अपनी बीवी की ख्वाहिश को पूरा करने के लिए बाजार, बाग सब जगह जाता है, लेकिन उसको कहीं भी सेब नहीं मिला। घर आकर उसने बीवी से कहा कि बगदाद में तो सेब नहीं मिला, वह बसरा बंदरगाह जाकर सेब लाने की कोशिश करता है।

बसरा के शाही बाग से उसने अपनी बीवी के लिए चार दिनार देकर तीन सेब खरीदे। बीवी ने खुश होकर सेब को सूंघ कर चारपाई के नीचे रख दिया। वह जवान भी अपने कपड़े की दुकान में चला गया। उसने अचानक देखा कि एक हब्शी हाथ में सेब को उछालते हुए जा रहा है। उस जवान लड़के ने हब्शी को बुलाकर पूछा कि उसको सेब कहाँ से मिला। हब्शी ने हँसकर जवाब दिया कि, यह सेब उसकी प्रेमिका ने उसको दिया है। उसने बताया कि उसकी प्रेमिका का पति दो हफ्ते की यात्रा करके बसरा शहर से उसके लिए तीन सेब खरीद कर लाया था, जिसमें से यह एक है। हब्शी ने यह भी कहा कि हम दोनों ने मिलकर दावत भी की और फिर उसने मुझे यह सेब दिया। हब्शी तो यह कहकर चला गया, लेकिन जवान आग बबूला हो गया।

जवान गुस्से से पागल होकर दुकान बंद करके घर गया। वहाँ जाकर उसको चारपाई के नीचे दो ही सेब मिले। उसने बीवी से पूछा कि, तीसरा सेब कहाँ गया। बीवी ने चारपाई के नीचे झांककर देखा और जवाब दिया कि उसे पता नहीं। यह कहकर वह आँखे बंद करके लेट गई। बीवी की इस बात से जवान को विश्वास हो गया कि उसकी बीवी का हब्शी के साथ नाजायज़ संबंध है। उसके बाद जवान ने गुस्से से लाल हो गया। वह अपमान में पागल हो गया और उसने अपनी बीवी को तलवार से टुकड़े-टुकड़े कर डाला।

जवान को अब इस बात का डर सताने लगा कि कहीं कोई उसको हत्या के इल्जाम में पकड़ न लें। इसलिए उसने अपने बीवी के शव को नारियल के पत्तों की बनाई चटाई में एक लाल डोरे से लपेट कर बाँध दिया और एक संदूक में रख दिया। अंधेरा होने पर उसने संदूक को नदी में डाल दिया। इसके बाद जब वह घर पर आया तो उसने देखा कि बड़ा लड़का दरवाजे पर बैठकर रो रहा था और बाकी दो बच्चे घर में सो रहे थे।

जवान ने बड़े लड़के से रोने की वजह पूछी तो उसने बताया कि आप जो तीन सेब माँ के लाए थे, उनमें से एक सेब मैंने चुपके से चारपाई के नीचे से उठाया था। उसको बाहर बैठकर खाने ही जा रहा था तो एक हब्शी गुलाम ने मेरे हाथ से वह सेब छीन लिया। मैंने उससे बहुत मिन्नत की कि वह सेब वापस दे दे, मेरे पिता ने बसरा के शाही बाग से यह सेब लाए हैं। मेरी माँ को पता चलेगा तो वह मुझे डाँटेगी। पर हब्शी गुलाम ने मेरी एक बात नहीं सुनी और मुझे मारपीट कर भगा दिया। इसके बाद जवान का लड़का अपने पिता से अनुरोध करने लगा कि वह माँ को कुछ नहीं बताए।

यह बात सुनकर जवान की जान गले में अटक गई। वह यह सोचकर रोने लगा कि उसने जाने बूझे अपनी सीधी-सादी पतिव्रता पत्नी को मार डाला है। दुख और पश्चाताप से उसके होश उड़ गए थे। जब थोड़ा होश आया तो लड़के को कमरे में जाकर सोने के लिए कहा और खुद अकेले में सिर पीटने लगा। खुद की भ्रष्ट बुद्धि पर धिक्कार करने लगा। उसे इस बात का गम सताने लगा कि उसने अनजान हब्शी गुलाम की बातों पर कैसे विश्वास कर लिया। कैसे वह अपनी पत्नी पर शक कर बैठा। एक बार वह अपनी पत्नी से खुलकर पूछ लेता, तो इतनी बड़ी गलती नहीं करता।

इस शोक की हालत में वह बैठा था, उसी समय उसके चाचा अपनी बेटी का हाल जानने घर आए। जवान ने अपनी सारी बात सच्चाई से चाचा को बता दी। पर आश्चर्य की बात यह है कि चाचा ने बेटी की हत्या के लिए उसको कुछ भी नहीं कहा बस अपने भाग्य को कोसने लगे। लेकिन रोने से क्या होगा ना उसकी पत्नी वापस आएगी और न ही उनकी बेटी। इतना कहने के बाद जवान रुका, उसने कहा कि तब से उसके दिल को कभी चैन नहीं मिला है। उसने खलीफा से अनुरोध किया कि इस पाप के लिए उसको फांसी की सजा दी जाए।

पहले तो खलीफा को यह सारी कहानी हैरान करने वाली लगी, लेकिन जब जवान के चाचा ने इस बात की पुष्टि की तब खलीफा ने कहा कि अगर कोई इंसान अनजाने में कोई अपराध कर बैठता है तो भगवान और मेरी दृष्टि में वह क्षमा योग्य होता है।

खलीफा ने कहा कि वह जवान के सच बोलने और गलती को स्वीकार करने से खुश हैं। उसने अपनी गलती को न छिपाकर मंत्री और उनके बेकसूर रिश्तेदारों की जान बचाई है। खलीफा के नजर में इस गलती का असली गुनहगार वह हब्शी गुलाम है, जिसने झूठ कहा था। खलीफा ने मंत्री से कहा कि वह अभी भी फांसी की सजा से मुक्त नहीं हुआ है। मंत्री को फिर से आदेश दिया कि तीन दिन के अंदर उस हब्शी को ढूंढकर लाया जाए, जिसके कारण यह घटना घटी है।

मंत्री फिर से गम के सागर में डूब गया कि इस बार तो हत्यारे ने खुद कबूल किया अपना गुनाह लेकिन वह हब्शी को कैसे ढूंढ पाएगा। पहले की तरह इस बार भी गुनहगार नहीं मिला। तय समय पर मंत्री को फांसी देने के लिए बुलाया गया। मंत्री अपनी बच्ची से बहुत प्यार करता था, उसने सिपाहियों से गुजारिश की कि एक बार वह बच्ची को प्यार करना चाहता है। बच्ची को प्यार करते वक्त उसके सीने में एक बंधी हुई चीज लगी। मंत्री ने बेटी से पूछा तो उसने बताया कि यह शाही बाग का मोहर लगा हुआ सेब है।

बच्ची ने कहा कि यह उसने अपने हब्शी गुलाम रैहान से चार सिक्कों में खरीदा है। मंत्री ने रैहान को डाँटकर पूछा कि यह सेब क्या उसने महल से चोरी की है? तब गुलाम ने हाथ जोड़कर सच्ची बात बताई कि यह उसने कुछ दिन पहले एक बच्चे से छीनकर लिया था। उस बच्चे ने रोते हुए कहा था कि मेरे पिता ने बीमार माँ के लिए यह सेब लाया है, मैंने यह बिना पूछे खाने के लिए लिया है। हब्शी ने कहा कि बच्चे के बहुत बार माँगने पर भी मैंने सेब नहीं लौटाया। मंत्री को यह सोचकर बहुत ही हैरानी हुई कि वह पूरे शहर भर जिसको ढूँढता रहा था, वह गुनहगार उसके घर में ही मौजूद था। उसने रैहान को खलीफा के सामने ले जाकर खड़ा किया।

खलीफा ने गुस्से में कहा कि सारी घटना इस गुलाम के कारण हुई है, इसलिए इसी को मृत्युदंड देनी चाहिए, ताकि लोगों को सीख मिले। यह सुनकर मंत्री ने खलीफा से कहा कि आपका कहना सही है, लेकिन यह हमारा पुराना गुलाम है। मंत्री ने खलीफा से अनुरोध किया कि मैं आपको एक कहानी सुनाना चाहता हूं, जो मिस्र के बादशाह के दो मंत्रियों नूरुद्दीन अली और बदरुद्दीन हसन की है। अगर यह कहानी आपको अच्छी लगे और आपका मनोरंजन हुआ हो, तो उसके बदले में आप रैहान हब्शी को इतना बड़ा दंड देने का आदेश वापस ले लीजिएगा। खलीफा ने नूरुद्दीन अली और बदरुद्दीन हसन की कहानी सुनाने की अनुमति दे दी।

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