एक समय की बात है, एक घने जंगल के अंदर बड़ा-सा तालाब था। उस तालाब में बहुत सारी मछलियां रहती थीं, जिनमें से तीन मछलियां एक-दूसरे की पक्की दोस्ती थीं। इन तीनों का स्वभाव बिलकुल अलग था।
इनमें से दो बहुत समझदार थीं। पहली संकट आने के पहले ही अपना बचाव कर लेती थी। दूसरी संकट आने पर अपनी सुरक्षा कर लेती थी, जबकि तीसरी सब कुछ भाग्य पर छोड़ देती थी। तीसरी मछली कहती कि अगर भाग्य में संकट होगा, तो हम कुछ नहीं कर सकते और भाग्य में नहीं होगा, तो कोई भी हमारा कुछ नहीं कर सकता।
एक दिन रास्ते से गुजर रहे एक मछुआरे ने उस तालाब को देख लिया। उसने देखा कि तालाब मछलियों से भरा पड़ा है। उसने तुरंत अपने बाकी साथियों को इस बारे में बताया। मछुआरे और उसके साथियों ने अगली सुबह यहां आने और उन मछलियों को पकड़ने का फैसला किया, लेकिन मछली ने मछुआरे और उसके साथियों के बीच की बातचीत सुन ली थी। उसने तुरंत तलाब में रहने वाली सभी मछलियों को इकट्ठा किया और सारी बात बता दी। पहली मछली बोली कि हो सकता है कि कल मछुआरे आकर हमें जाल में पकड़ कर ले जाएं। उससे पहले ही हमें यह स्थान छोड़ देना चाहिए।
तभी तीसरे नंबर की मछली बोली कि अगर वो कल नहीं आए तो? यह हमारा घर है, हम कैसे इसे छोड़ कर जा सकते हैं। अगर भाग्य में लिखा होगा, तो हम कहीं भी हों मारे जाएंगे और नहीं लिखा होगा, तो हमें कुछ नहीं होगा। कुछ मछलियों ने तीसरे नंबर की मछली की बात मान ली और वहीं रुक गईं।
अन्य दो मछलियां तीसरी मछली को समझाने में असमर्थ थीं, इसलिए उन्होंने बाकी मछलियों के साथ तालाब छोड़ दिया।
अगले दिन, मछुआरे और उसके साथियों ने अपना जाल डाला। जो मछलियां रह गईं थीं वे सभी पकड़ी गईं।
जो मछलियां भाग गईं थीं उन सभी की जान बच गई और जो तालाब में रुक गईं थी वे सभी मछुआरों के द्वारा पकड़ ली गईं। मछुआरे ने उन्हें एक टोकरे में डाल दिया, जहां सभी तड़प तड़प के मर गईं।
कहानी से सीख : हमें कभी भी भाग्य के भरोसे नहीं रहना चाहिए। संकट आने के पहले ही उसे दूर करने का उपाय सोचकर रखना चाहिए।
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