एक बार शहंशाह अकबर अपने साथ बीरबल को शिकार पर ले गए। उनके साथ सेना की एक टुकड़ी और कुछ सेवक भी थे। शिकार करके कुछ एक दिनों में अकबर लौटने लगे। तभी रास्ते पर एक गांव को देखकर बादशाह के मन में उसके बारे में जानने की इच्छा जगी।
उन्होंने तुरंत अपने साथ आए बीरबल से पूछा कि क्या तुम इस गांव के बारे में कुछ जानते हो। मुझे इस जगह के बारे में जानना है।
बीरबल ने जवाब दिया, “शहंशाह मुझे भी इस गांव के बारे में कुछ नहीं पता हैं। अपने राज्य के इस गांव की तरफ मैं भी पहली बार ही आया हूं। आप यहां के बारे में जानना चाहते हैं, तो मैं किसी से पूछकर बताता हूं।
तभी बीरबल की नजर एक आदमी पर पड़ी। उन्होंने उसे अपने पास बुलाकर पूछा, “भाई क्या तुम इसी गांव के रहने वाले हो। अगर हां, तो इस गांव के बारे में मुझे सब कुछ बता दो। यहां सब बढ़िया तो चल रहा है न?”
वो आदमी बीरबल के सवालों का जवाब दे ही रहा था कि उसकी नजर बादशाह पर पड़ गई। उसने उन्हें पहचान लिया। फिर बोला कि साहब आप लोगों के राज में यहां कुछ खराब कैसे हो सकता है। यहां सब कुछ बढ़िया है।
तब बादशाह ने उससे पूछा, “तुम्हारा नाम क्या है?”
उस व्यक्ति ने जवाब में कहा, “मेरा नाम गंगा है।”
बादशाह फिर बोले, “पिता का नाम?”
जवाब मिला, जमुना।
इतना सुनकर बादशाह ने पूछा कि फिर तो जरूर तुम्हारी मां का नाम सरस्वती होगा?
उसने कहा, “नहीं हुजूर! मेरी मां का नाम नर्मदा है।
इन सभी बातों को सुनकर बीरबल को हंसी आ गई और उन्होंने मजाकिया अंदाज में कहा, “बादशाह अब यहां से आगे बढ़ना सही नहीं है। यहां सारी नदियां हैं। आपके पास नाव भी नहीं है, तो आगे मत जाइये। आगे बढ़ने के लिए नाव का होना जरूरी है। नहीं तो डूबने का डर बना रहेगा और यहां ज्यादा देर रूके तो सब कुछ बह जाएगा।”
बीरबल की यह बात सुनकर बादशाह को भी जोर से हंसी आ गई।
वो व्यक्ति भी बीरबल का मजाक सुनकर मुस्कुराते हुए वहां से चला गया।
कहानी से सीख :
हर दम व्यक्ति को गंभीर रहने की जरूरत नहीं होती है। हंसी-मजाक करना भी जरूरी है।
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