बहुत पुरानी बात है, एक जंगल में एक लोमड़ी और एक सारस रहते थे। ये दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे। सारस रोजाना लोमड़ी को तालाब से मछली पकड़ कर खाने के लिए देता था। इस प्रकार दोनों की दोस्ती बहुत गहरी होती चली गई।
सारस बहुत सीधा साधा था, लेकिन लोमड़ी बहुत शैतान और चालाक थी। वह हमेशा दूसरों को परेशान किया करती थी। उसे दूसरों का अपमान करने और मजाक उड़ाने में बहुत मजा आता था।
एक दिन उसने सोचा कि क्यों न एक बार सारस का भी अपमान किया जाए और उसका मजाक उड़ाया जाए। ऐसा सोचकर उसने सारस को दावत पर बुलाया।
उसने जान बूझकर सूप एक प्लेट में परोसा। उसे पता था कि सारस प्लेट में से सूप को नहीं पी सकता। उसे सूप न पीता देख लोमड़ी मन ही मन बहुत खुश हुई और झूठी चिंता दिखाते हुए सारस से पूछने लगी कि क्या बात है मित्र सूप पसंद नहीं आया क्या? सारस बोला नहीं मित्र, यह तो बहुत स्वादिष्ट है।
सारस ने जब देखा कि सूप को प्लेट में परोसा गया है और लोमड़ी जान बूझकर उससे सवाल कर रही है, तो वह सब समझ गया, लेकिन कुछ नहीं बोला। उस दिन सारस को अपमान सहने के साथ ही भूखा भी रहना पड़ा, लेकिन जाते-जाते सारस ने भी उसे अपने यहां दावत पर बुलाया और लोमड़ी दूसरे ही दिन सारस के घर दावत पर पहुंच गई।
सारस ने भी दावत में सूप बनाया था और लोमड़ी के साथ लंबी चोंच वाले अन्य पक्षियों को भी बुलाया था। सारस ने सूप को सुराही में परोसा। सुराही का मुंह इतना छोटा था कि उसमें बस चोंच ही अंदर जा सकती थी।
लोमड़ी पूरा टाइम सुराही और अन्य सभी पक्षियों को सूप पीते देखती रही। इसी बीच सारस ने पूछा कि क्या बात है मित्र सूप अच्छा नहीं लगा क्या, लोमड़ी को अचानक अपने शब्द याद आ गए। सभी बोले कि सूप बहुत स्वादिष्ट है। लोमड़ी काे भी सभी की हां में हां मिलाना पड़ा।
यह सब देख लोमड़ी अपने आप में बहुत अपमानित महसूस कर रही थी, लेकिन कुछ कह नहीं सकी।
कहानी से सीख
हमें कभी भी किसी का अपमान नहीं करना चाहिए, हम जैसा दूसरों के साथ करते हैं, वैसा ही हमारे साथ होता है।
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