02 February 2021

नकली तोते की कहानी | Nakli Tota Ki Kahani

Nakli Tota Ki Kahani

एक बार की बात है, एक घने जंगल में विशाल बरगद का पेड़ था। उस पेड़ पर बहुत सारे तोते रहा करते थे। वे सभी हमेशा इधर-उधर की बात करते रहते थे। उन्हीं में एक मिट्ठू नाम का तोता भी था। वह बहुत कम बोलता था और शांत रहना पसंद करता था। सब उसकी इस आदत का मजाक उड़ाया करते थे, लेकिन वह कभी भी किसी की बात का बुरा नहीं मानता था।

एक दिन दो तोते आपस में बात कर रहे थे। पहला तोता बोला – “मुझे एक बार बहुत अच्छा आम मिला था। मैंने पूरे दिन उसे बड़े चाव से खाया।” इस पर दूसरे तोते ने जवाब दिया – “मुझे भी एक दिन आम का फल मिला था, मैंने भी बड़े चाव से उसे खाया था।” वहीं, मिट्ठू तोता चुपचाप बैठा था। तब तोतों के मुखिया ने उसे देखते हुए कहा – “अरे हम तोतों का तो काम ही होता है बात करना, तुम क्यों चुप रहते हो?” मुखिया ने आगे कहा – “तुम तो मुझे असली तोते लगते ही नहीं। तुम नकली तोते हो।” इस पर सभी तोते उसे नकली तोता-नकली तोता कहकर बुलाने लगे, लेकिन मिट्ठू तोता फिर भी चुप था।

यह सब चलता रहा। फिर एक दिन रात में मुखिया की बीवी का हार चोरी हो गया। मुखिया की बीवी रोती हुई आई और उसने पूरी बात बताई। मुखिया की बीवी ने कहा – “किसी ने मेरा हार चोरी कर लिया है और वो हमारी ही झुंड में से एक है।” यह सुनकर मुखिया ने तुरंत सभा बुलाई। सभी तोते तुरंत सभा के लिए इकट्ठा हो गए। मुखिया ने कहा – “मेरी बीवी का हार चोरी हो गया है और मेरी बीवी ने उस चोर को भागते हुए भी देखा है।”

वह चोर आप लोगों में से ही कोई एक है। यह सुनकर सभी हैरान हो गए। मुखिया ने फिर आगे कहा कि उसने अपने मुंह को कपड़े से ढककर रखा हुआ था, लेकिन उसकी चोंच बाहर दिख रही थी। उसकी चोंच लाल रंग की थी। अब पूरे झुंड की निगाह मिट्ठू तोते और हीरू नाम के एक दूसरे तोते पर थी, क्योंकि झुंड में केवल इन्हीं दोनों की चोंच लाल रंग की थी। यह सुनकर सभी मुखिया से चोर का पता लगाने के लिए बोलने लगे, लेकिन मुखिया ने सोचा कि ये दोनों मेरे अपने हैं। मैं कैसे इनसे पूछ सकता हूं कि तुम चोर हो क्या? इसलिए, मुखिया ने एक कौवे से इसका पता लगाने के लिए मदद ली।
असली चोर का पता लगाने के लिए कौवे को बुलाया गया। कौवे ने लाल चोंच वाले हीरू और मिट्ठू तोते को सामने बुलाया। कौवे ने दोनों तोतों से पूछा कि तुम दोनों चोरी के समय कहां थे? इस पर हीरू तोता जोर-जोर से बोलने लगा – “मैं उस दिन बहुत थक गया था। इसलिए, खाना खाकर मैं उस रात जल्दी सोने के लिए चला गया था।” वहीं मिट्ठू तोते ने बहुत धीमी आवाज में जवाब दिया। उसने कहा – “मैं उस रात सो रहा था।”

इस बात को सुनकर कौवे ने फिर पूछा – “तुम दोनों अपनी बात साबित करने के लिए क्या कर सकते हो?” इस पर हीरू तोता फिर बड़ी तेज आवाज में बोला – “मैं उस रात सो रहा था। मेरे बारे में सब जानते हैं। ये चोरी मिट्ठू ने ही की होगी। इसलिए, वह इतना शांत होकर खड़ा है?” मिट्ठू तोता चुपचाप खड़ा हुआ था। सभा में मौजूद सभी तोते चुपचाप यह सब देख रहे थे। मिट्ठू तोता फिर धीमी आवाज में बोला – “मैंने यह चोरी नहीं की है।”

इस बात को सुनकर कौवा मुस्कुराकर बोला कि चोर का पता लग गया है। मुखिया के साथ-साथ सब लोग हैरानी से कौवे की ओर देखने लगे। कौवे ने बताया कि चोरी हीरू तोते ने की है। इस पर मुखिया ने पूछा – “आप यह कैसे कह सकते हैं?” कौवे ने मुस्कुराकर कहा – “हीरू तोता जोर-जोर से बोलकर अपने झूठ को सच साबित करने में लगा था, जबकि मिट्ठू तोता जानता है कि वह सच बोल रहा है। इसलिए, वो अपनी बात आराम से कह रहा था।” कौवे ने आगे कहा – “वैसे भी हीरू तोता बहुत बोलता है, उसकी बात पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।” इसके बाद हीरू ने अपना जुर्म कबूल कर लिया और सभी से माफी मांगी।

यह सुनकर सभी तोते हीरू तोते को कड़ी सजा देने की बात कहने लगे, लेकिन मिट्ठू तोते ने कहा – “मुखिया जी, हीरू तोते ने अपनी गलती मान ली है। उसने सबके सामने माफी भी मांग ली है। उससे पहली बार यह गलती हुई है, इसलिए उसे माफ किया जा सकता है।” यह बात सुनने के बाद मुखिया ने हीरू तोते को माफ कर दिया।

कहानी से सीख

कभी-कभी ज्यादा बोलकर हम अपनी अहमियत खो देते हैं। इसलिए, जरूरत के समय ही बोलना चाहिए।

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