13 March 2022

स्वामी विवेकानंद की प्रेरक कहानी - डर का सामना - Inspirational Story of Swami Vivekananda - Facing Fear

Swami Vivekananda's inspiring story - facing fear

हर किसी की जिंदगी में ऐसा पल जरूर आता है जब उसे किसी-न-किसी वजह से डर लगने लगता है। इस डर का सामना करने के लिए जानना जरूरी है स्वामी विवेकानंद का एक किस्सा।

एक दिन की बात है स्वामी विवेकानंद मंदिर में दर्शन करने के बाद प्रसाद लेकर बाहर निकले। कुछ देर आगे चलने के बाद स्वामी के घर के रास्ते में उन्हें कुछ बंदरों ने घेर लिया। स्वामी थोड़ा आगे बढ़ते और वो बंदर उन्हें काटने को आते। काफी देर तक स्वामी विवेकानंद ने आगे जाने की कोशिश की, लेकिन वो ऐसा कर न पाए।

आखिर में स्वामी विवेकानंद वहां से वापस मंदिर की ओर लौटने लगे। उनके हाथ से प्रसाद की थैली को छीनने के लिए बंदरों की टोली भी उनके पीछे भागने लगी। स्वामी डर गए और वो भी डर के मारे दौड़ने लगे। दूर से मंदिर के पास बैठा एक बूढ़ा सन्यासी सब कुछ देख रहा था। उसने स्वामी को भागने से रोका और कहा, “बंदरों से डरने की जरूरत नहीं है। तुम इस डर का सामना करो और फिर देखो क्या होता है।”

स्वामी विवेकानंद संन्यासी की बात सुनकर वहां ठहरे और बंदरों की तरफ मुड़ गए। अपनी तरफ तेजी से बंदरों का आता देखकर स्वामी भी उनकी तरफ उतनी ही तेजी से बढ़ने लगे। बंदरों ने जैसे ही स्वामी विवेकानंद को अपनी तरफ आता देखा, तो वो डरकर भागने लग गए। अब बंदर आगे-आगे भाग रहे थे और स्वामी जी बंदरों के पीछे-पीछे। कुछ ही देर में सभी बंदर उनके रास्ते से हट गए।

इस तरह स्वामी विवेकानंद ने अपने डर पर जीत हासिल की। फिर वो लौटकर उसी संन्यासी के पास गए और उनको इतनी बड़ी बात सिखाने के लिए धन्यवाद कहा।

कहानी से सीख –  कोई भी चीज डर का कारण तब तक बनी रहती है, जब तक हम उससे डरते हैं। इसी वजह से डर से डरने की जगह उसका सामना करना चाहिए। ऐसा करने से डर भाग जाता है।

स्वामी विवेकानंद की प्रेरक कहानी - शिक्षा पर विचार - Inspirational Story of Swami Vivekananda - Thoughts on Education

Swami Vivekananda's inspiring story - Thoughts on education

स्वामी विवेकानंद जी का आदर्शों से भरा जीवन हम सभी को प्रेरणा देता है। उनके उच्च विचार न केवल हमारे जीवन में नई ऊर्जा का संचार करते हैं साथ ही हमारा मार्गदर्शन भी करते हैं। वर्तमान स्थिति को देखते हुए हमें उनके शिक्षा संबंधी विचार बहुत याद आते हैं। स्वामी जी मानते थे कि सही शिक्षा के अभाव के कारण ही हमारा देश अभी तक पूर्ण विकसित नहीं हो पाया है।

स्वामीजी चाहते थे कि शिक्षा प्रणाली ऐसी हो जो युवाओं के चरित्र का निर्माण करे, उनको जीवन संघर्ष के लिए तैयार करे। उनका मानना था कि सिर्फ किताबें पढ़ना शिक्षा नहीं है, बल्कि उनसे ज्ञान प्राप्त करना और उस ज्ञान का प्रयोग जीवन में करना वास्तविक शिक्षा है।

स्वामी जी के मत अनुसार वर्तमान शिक्षा प्रणाली से सिर्फ मजदूर तैयार हो रहें हैं, जबकि वे चाहते थे कि शिक्षा ऐसी हो जिससे बच्चे आत्मनिर्भर बने और कमाई के साधन स्वयं तैयार करें।

स्वामी जी के शिक्षा पर कुछ मुख्य विचार इस प्रकार हैं:

  1. बच्चों की शिक्षा ऐसी होना चाहिए, जिससे उनका शारीरिक, मानसिक और आत्मिक विकास हो।
  1.  शिक्षा बच्चों की बुद्धि का विकास कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने वाली होना चाहिए।
  1. बालक-बालिकाओं को समान रूप से शिक्षा मिलनी चाहिए।
  1. आचरण और संस्कारों के माध्यम से बालकों को धार्मिक शिक्षा भी दी जानी चाहिए।
  1. देश की आर्थिक प्रगति के लिए तकनीकी ज्ञान भी शिक्षा में शामिल किया जाना चाहिए।

स्वामी जी युवओं में अनंत साहस और शक्ति का संचार करना चाहते थे। उनका मानना था कि बेहतर समाज के निर्माण के लिए युवाओं का सही मार्गदर्शन जरूरी है। इसीलिए उन्होंने शिक्षा को बहुत महत्व दिया। उनका मत था कि हर बालक में कुछ न कुछ संभावनाएं अवश्य होती हैं, जरूरत है तो बस उसे पहचानने की और विकसित करने की। जिससे एक निडर, साहसी और आत्मनिर्भर चरित्रवान युवा का निर्माण हो सके। ऐसे में जब देश का युवा शक्तिशाली और बलवान होगा तो अपने आप ही विकासशील और आत्मनिर्भर देश का निर्माण होगा। इसीलिए स्वामी जी का मानना था कि वास्तविक शिक्षा वो है जो व्यक्ति की क्षमताओं को अभिव्यक्त कर उसे कामयाब बनाती है

कहानी से सीख:

तो इस प्रकार स्वामी जी के शिक्षा सम्बंधी विचार ने हमें बताया कि हमारा असल ज्ञान वो है जो हमें जीवन में सफल और स्वतंत्र बनाए, न कि वो जो हमें गुलामी की ओर ले जाए। ये वास्तविक ज्ञान हम में ही मौजूद होता है। बस उसे पहचान कर विकसित करने की जरूरत है।

स्वामी विवेकानंद की प्रेरक कहानी - मां की महिमा - Inspirational Story of Swami Vivekananda - Glory of the Mother

Swami Vivekananda maa ki mahima Story

मां की महिमा का बखान जितना भी किया जाए वो कम है। मां के प्यार का कर्ज कोई नहीं चुका सकता और मां की जरूरत क्या है, इसे स्वामी विवेकानंद ने बखुबी समझाया है। जानिए इस कहानी में…

एक बार किसी व्यक्ति ने स्वामी विवेकानंद जी से सवाल किया, “दुनिया में मां की महिमा इतनी क्यों है और इसका कारण क्या है? इस सवाल को सुनने के बाद स्वामी जी के चेहरे पर मुस्कान फैल गई। इस सवाल का जवाब देने के लिए उन्होंने उस व्यक्ति के सामने एक शर्त रखी। विवेकानंद जी की शर्त के अनुसार उस व्यक्ति को 5 किलो के पत्थर को एक कपड़े में लपेट कर उसे अपने पेट पर 24 घंटे तक बांधना था और फिर स्वामी जी के पास जाना था। इसके बाद उसे अपने सवाल का जवाब स्वामी विवेकानंद जी से मिलना था।

स्वामी जी के कहे अनुसार उस व्यक्ति ने एक पत्थर को अपने पेट पर बांधा और वहां से चला गया। अब उसे पत्थर बांधे-बांधे ही अपना सारा दिनभर का काम करना था, लेकिन उसके लिए ऐसा करना मुश्किल हो रहा था। पत्थर के बोझ के कारण वह जल्दी थक गया। दिन तो जैसे-तैसे गुजर गया, लेकिन शाम होते-होते उसकी हालत खराब हो गई। जब उससे रहा नहीं गया, तो वह सीधा स्वामी जी के पास गया और बोला, “स्वामी जी मैं इस पत्थर को ज्यादा समय तक बांधकर नहीं रख सकता। सिर्फ एक सवाल का जवाब जानने के लिए मैं इतना कष्ट नहीं सह सकता।”

उस व्यक्ति की बात सुनकर स्वामी जी मुस्कुराते हुए बोले, “तुम 24 घंटे भी पत्थर का भार संभाल नहीं सके और मां अपनी कोख में बच्चे को नौ महीने तक रखती है और सभी तरह के करती है। इसके बाद भी उसे जरा भी थकान महसूस नहीं होती। इस पूरे संसार में मां जैसा और कोई नहीं है, जो इतना शक्तिशाली और सहनशील हो। मां तो शीतलता और सहनशीलता की मूरत है। मां से बढ़कर इस दुनिया में कोई नहीं है।

कहानी से सीख:

स्वामी विवेकानंद जी इस कहानी के माध्यम से लोगों को यह सीख देना चाहते थे कि इस संसार में मां जितना धैर्यवान और सहनशील कोई और नहीं है। मां से बढ़कर इस दुनिया में कुछ नहीं हो सकता।

स्वामी विवेकानंद की प्रेरक कहानी - सत्य का साथ - Inspirational Story of Swami Vivekananda - Truth Ka Saath

Swami Vivekananda maa ki mahima Story

स्वामी विवेकानंद बचपन से ही बुद्धिमान छात्र थे। उनके तेज दिमाग और प्रभावशाली बातों की वजह से सभी उनकी तरफ खींचे चले जाते थे। एक दिन स्कूल में भी स्वामी विवेकानंद अपने दोस्तों से बातें कर रहे थे। बातों-ही-बातों में स्वामी उन सबको एक कहानी सुनाने लगे। उनके दोस्तों को कहानी अच्छी लग रही थी, इसलिए सभी ध्यान से सुन रहे थे। विवेकानंद कहानी सुनाने में और उनके दोस्त उसे सुनने में इतना खो गए कि किसी को पता ही नहीं चला कि कब मास्टर जी क्लास में आ गए।

मास्टर जी ने क्लास में आते ही बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। आगे बैठे बच्चे उन्हें ध्यान से सुन रहे थे कि कुछ ही देर में मास्टर जी के कानों तक विवेकानंद की हल्की आवाज पहुंची। उन्होंने ऊंची आवाज में पूछा कि कक्षा में कौन बातें कर रहा है? वहां मौजूद अन्य छात्रों ने विवेकानंद और उनके दोस्तों की ओर इशारा कर दिया।

यह जानकर टीचर को गुस्सा आया। उन्होंने उन सभी को अपने पास बुलाया और पूछा कि मैं अभी क्या पढ़ा रहा था? कुछ सेकंड तक किसी से कोई जवाब न मिलने पर उन्होंने हर बच्चे की तरफ देखते हुए सवाल पूछा। सबने अपनी नजरें झुका ली। तभी टीचर विवेकानंद के पास पहुंचे और कहा कि क्या तुम्हें पता है, मैं क्या पढ़ा रहा था? उन्होंने मास्टर को सही जवाब दे दिया।

तब टीचर को लगा कि इन सब बच्चों में से सिर्फ विवेकानंद ही ध्यान से पढ़ रहे थे, दूसरे बच्चे नहीं। यह सोचते ही मास्टर ने स्वामी के अलावा अन्य छात्रों को अपने-अपने बेंच पर खड़े होने की सजा दे दी। सभी ने टीचर की बात मान ली और बेंच पर खड़े हो गए। कुछ ही देर में स्वामी विवेकानंद भी अपनी सीट में जाकर बेंच पर खड़े हो गए।

स्वामी को बेंच पर खड़ा देखकर मास्टर ने कहा कि मैंने तुम्हें सजा नहीं दी है तुम बैठ जाओ। नजर झुकाते हुए विवेकानंद ने कहा, “सर, मैंने ही इन सभी छात्रों को बातों में लगा रखा था। गलती मेरी ही है।” सजा न मिलने पर भी स्वामी विवेकानंद द्वारा सच बोलने पर सभी छात्र काफी प्रभावित हुए।

कहानी से सीख:

जीवन में हमेशा सच बोलना चाहिए।

गौतम बुद्ध की प्रेरक कहानी - कबूतर का घोंसला - Inspirational Story of Gautam Buddha - Pigeon's Nest

Gautam Buddha kabutar ka ghosla Story

एक बार गौतम बुद्ध शाम के समय कुटिया के बाहर शिष्यों के साथ बेठे थे। तभी वहां एक कबूतर का जोड़ा उड़ता हुआ आ गया। उन्हें देख कर महात्मा बुद्ध को एक कहानी याद आई और उन्होंने शिष्यों को कहानी सुनना शुरू किया।

एक पेड़ पर एक कबूतर और कबूतरी रहते थे। कुछ समय बाद कबूतरी ने उसी पेड़ की टहनी पर तीन अंडे दिए। एक दिन कबूतर और कबूतरी दोपहर के समय खाना ढूंढते हुए कुछ दूर निकल गये। तभी कहीं से एक लोमड़ी आ गयी। वह भी भोजन की तलाश में पेड़ पर चढ़ी। जहां उसे कबूतर के अंडे मिल गये और वो अंडों को खा गयी।

जब कबूतर का जोड़ा वापस आया तो अंडे न पा कर बहुत परेशान हो गया। दोनों को बहुत बुरा लग रहा था। उनका मन टूट सा गया। तभी कबूतर ने निश्चय किया कि अब वह घोंसला बनाएंगा। ताकि फिर कभी उसके अंडे कोई न खा जाए।

कबूतर ने अपने निर्णय अनुसार तिनके इकट्ठे कर के घोंसला बनाना शुरू किया। पर उसे एहसास हुआ कि उसे तो घोंसला बनाना आता ही नहीं है। तब उसने मदद के लिए जंगल के दूसरे पक्षियों को बुलाया।

सभी पक्षी उसकी मदद के लिए आ गये आर उन्होंने कबूतर के लिए घोंसला बनाना शुरू किया। पक्षियों ने अभी कबूतर को सिखाना शुरू ही किया था कि कबूतर ने बोला कि अब वो घोंसला बना लेगा। उसने सब सीख लिया है।

सभी पक्षी यह सुन कर वापस चले गए। अब कबूतर ने घोंसला बनाना शुरू किया। उसने एक तिनका इधर रखा एक तिनका उधर। उसे समझ आया कि वह अभी भी कुछ नही सीखा है। उसने फिर से पक्षियों को बुलाया। पक्षियों ने आ कर फिर घोंसला बनाना शुरू किया। अभी आधा घोंसला बना ही था कि कबूतर जोर से चिल्लाया, तुम सब छोड़ दो अब मैं समझ गया हूं यह कैसे बनेगा।

इस बार पक्षियों को बहुत गुस्सा आया। सारे पक्षी तिनके वहीं छोड़ कर चले गये। कबूतर ने फिर कोशिश की पर उस से घोंसला नहीं बना।

कबूतर ने तीसरी बार पक्षियों को बुलाया, लेकिन इस बार एक भी पक्षी मदद के लिए नहीं आया और आज तक कबूतर को घोंसला बनाना नहीं आया।

कहानी से सीख:

गौतम बुद्ध जी की इस कहानी ने बताया कि हमें जो काम नहीं आता हो, उसे किसी की मदद से पूरी तरह सीख लेना चाहिए। जो काम नहीं आता हो उसे जबरदस्ती करने का दिखावा नहीं करना चाहिए, क्योंकि मदद करने वाला व्यक्ति एक या दो बार तो आपकी मदद करेगा, लेकिन हर बार नहीं। इसलिए, किसी की मदद का सम्मान करते हुए वह काम पूरी निष्ठा के साथ सीखना चाहिए।

गौतम बुद्ध की प्रेरक कहानी - ज्ञान से हुई मोक्ष की प्राप्ति - Inspirational story of Gautam Buddha - attainment of salvation through knowledge

Gautam Buddha gyan se moksh ki prapti Story

एक दिन गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ कुटिया में बैठे थे। सभी शिष्य आज जानना चाहते थे कि मोक्ष कैसे प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए उन्होंने बुद्ध जी से निवेदन किया कि वो आज मोक्ष पर उपदेश दें।

शिष्यों की बात मान कर बुद्ध जी ने एक कहानी सुनाना शुरू किया।

यह कहानी थी एक जल्लाद और भिक्षुक की।

अपने राज्य का मुख्य जल्लाद, जिसने बहुत से गुनाहगारों को दंड दिया था। अब वह रिटायर हो कर राज्य से बाहर एक कुटिया बना कर अपना जीवन व्यतीत कर रहा था। उसे हमेशा लगता था कि उसने कितने लोगों की हत्या की है, वह कितना पापी है, ऐसे ख्यालों से वह हमेशा घिरा रहता था। वह अपना सारा दिन पश्चाताप में ही गुजारता था।

एक दिन वह रोज की तरह इन्हीं खयालों में खोया हुआ, खाना खाने के लिए थाली परोस रहा था। तभी उसको दरवाजे से किसी की आवाज आई। उसने बाहर जा कर देखा तो एक भिक्षुक खड़ा था। भिक्षुक के चेहरे को देख कर ही जल्लाद समझ गया कि भिक्षुक बहुत ही लम्बी साधना के बाद आज उठा है और भूख से व्यकुल भी है।

जल्लाद के मन में आया की जिंदगी भर तो मैंने बस हत्याएं ही की हैं, आज मौका मिला है कुछ पुण्य कमाने का तो इसे गंवाना नहीं चाहिए।

उसने भिक्षुक को अन्दर बुलाया और अपनी खाने की थाली उसे दे दी। भिक्षुक खाना देख कर बहुत प्रसन्न हुए। भर पेट भोजन कर के भिक्षुक ने जल्लाद से बातचीत शुरू की।

जल्लाद ने भिक्षुक को अपने जीवन की सारी कहानी सुनाई। उसने बताया कि वह कैसा काम करता था, उसने कितने लोगों को फांसी दी और वह सोचता है कि वह कितना बड़ा अपराधी है।

जल्लाद की वेदना सुन कर भिक्षुक बहुत ही शांत स्वर में बोले कि क्या तुमने वो जीव हत्याएं अपनी मर्जी से की थी?

जल्लाद ने कहा, नहीं मैं तो बस मेरे राजा की आज्ञा का पालन कर रहा था। मेरा कोई भाव नही था उन्हें मृत्युदंड या सजा देने का।

तब भिक्षुक ने कहा, तब तुम अपराधी कैसे हुए। तुम तो अपने राजा के आदेशों का पालन कर रहे थे।

जल्लाद को एहसास हुआ कि वह किसी गलत काम के लिए जिम्मेदार नहीं था उसका कोई दोष नहीं है, वह तो सिर्फ अपना दायित्व पूरा कर रहा था। इस प्रकार जल्लाद का मन शांत हुआ फिर भिक्षुक ने जल्लाद को उपदेश दिया और उस से विदा ले ली।

भिक्षुक को विदा कर के जब जल्लाद वापस घर में आया, उसकी मृत्यु हो गयी। जिसके बाद उसको मोक्ष प्राप्त हुआ।

इतना कह कर बुद्ध जी ने कहानी को विराम दिया।

सभी शिष्य बहुत ही आश्चर्य के साथ बुद्ध जी की ओर देख रहे थे। किसी को समझ नहीं आ रहा था कि जिसने इतनी हत्याएं की हो उसे मोक्ष कैसे प्राप्त हो सकता है।

तब एक शिष्य ने यह दुविधा बुद्ध जी के सामने रखी। बुद्ध जी ने तब शिष्यों को समझाया की भिक्षुक के उपदेश से जल्लाद को ज्ञान प्राप्त हो गया था। जल्लाद के जीवन में पहली बार किसी ने उसे ज्ञान का उपदेश दिया था। इसलिए मृत्यु के बाद उसे मोक्ष प्राप्त हुआ।

अपनी बात को विराम देते हुए अंत में बुद्ध जी बोले, बिना ज्ञान के हजार शब्दों का उपदेश भी बेकार है, किन्तु जब शांत मन से उपदेश का एक शब्द भी सुन लिया जाए तो वह ज्ञान दे देता है। और ज्ञान से ही मोक्ष की प्राप्ति संभव है।

कहानी से सीख

इस कहानी ने हमे सिखाया की अपने कर्तव्यों का पालन बिना किसी दुर्भाव के पूरी निष्ठा के साथ करना चाहिए। साथ ही अपना मन हमेशा शांत रखना चाहिए। क्योंकि शांत मन से उपदेश सुनने पर ही वास्तविक ज्ञान प्राप्त हो सकता है। जो मोक्ष की ओर ले जाता है।

गौतम बुद्ध की प्रेरक कहानी - बुद्ध, आम और बच्चे की कहानी - Inspirational Story of Gautam Buddha - Story of Buddha, Mango and Child

Gautam Buddha gyan se moksh ki prapti Story

बात उस समय की है जब महात्मा गौतम बुद्धा एक आम के बगीचे में विश्राम कर रहे थे। तभी वहां खेलते हुए बच्चों की एक टोली आ गयी। सभी बच्चे आम का बगीचा देख कर, आम तोड़ने के लिए वहीं रुक गये।

बच्चों ने आम तोड़ने के लिए आम के पेड़ पर पत्थर मरना शुरू किया। देखते ही देखते जमीन पर आमों का ढेर लग गया।

इतने में एक बच्चे ने थोड़े ऊंचे आम को तोड़ने के लिए एक पत्थर ज्यादा तेज फेंका। वह पत्थर विश्राम कर रहे महात्मा जी को जा कर लगा और उनके माथे से खून आने लगा। सभी बच्चे यह देख कर बहुत डर गए। उन्हें लगा अब तो बुद्धा जी उनको बहुत डाटेंगे।

तभी उनमे से एक बालक डरता हुआ महात्मा जी के पास गया और उनसे हाथ जोड़ते हुए बोला, हे महात्मा! हमसे बहुत बड़ी गलती हो गयी है। हमें क्षमा कर दीजिए। हमारी वजह से आपको यह पत्थर लग गया और आपके माथे से खून आ गया।

इस बात को सुन कर, महात्मा बुद्धा ने बच्चों से कहा, मुझे इस बात का दुख नहीं है की मुझे पत्थर लगा। पर दुख इस बात का है की पेड़ को पत्थर मारने से पेड़ तुम्हे मीठे फल देता है। लेकिन मुझे पत्थर मारने से तुम्हे डर मिला।

इस तरह अपनी बात पूरी कर के महात्मा जी आगे चल दिए। और बच्चे भी आम बटोर कर वापस अपने अपने घर चले गए।

कहानी से सीख :

इस कहानी के माध्यम से महात्मा गौतम बुद्धा हमें बताना चाहते है कि, कोई अगर हमारे साथ बुरा व्यव्हार करता है, तब भी हमे उसके साथ अच्छा व्यव्हार ही करना चाहिए। जिस प्रकार पेड़ को पत्थर मारने पर भी वह बदले में मीठे फल ही देता है उसी प्रकार हमे भी सभी के साथ मधुर व्यव्हार रखना चाहिए।

स्वामी विवेकानंद की प्रेरक कहानी - सच्चा पुरुषार्थ - Inspirational Story of Swami Vivekananda - True Purusharth

Swami Vivekananda Story About True Man In Hindi

समय के साथ ही स्वामी विवेकानंद का ज्ञान और बातें पूरी दुनिया में फैल रही थीं। उनके भाषण और बातों से भारत के लोग ही नहीं, बल्कि विदेशी भी प्रभावित थे। हर कोई उन्हें अपना आदर्श मानने लगा था।

स्वामी विवेकानंद की बातों और विचारों से एक विदेशी महिला इतनी प्रभावित हुई कि मन ही मन में उन्होंने स्वामी से शादी करने की ठान ली। वो हर दिन उनके बारे में ही सोचती रहती थी। उस महिला ने स्वामी से मिलने की भी बहुत कोशिश की, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया।

कुछ समय बाद एक बार वह विदेशी महिला उस प्रोग्राम में पहुंच गई जहां स्वामी विवेकानंद भी मौजूद थे। वो बिना किसी डर के स्वामी के पास पहुंची और बिना किसी डर के कहा, ”मैं आपसे शादी करना चाहती हूं।” महिला की मन की बात को सुनकर स्वामी विवेकानंद ने उनसे सवाल किया कि आखिर आप मुझसे ही शादी क्यों करना चाहती हैं। मुझमें ऐसा क्या आपने देखा है?

स्वामी के सवाल का जवाब देते हुए उस विदेशी महिला ने कहा कि आपसे मैं बहुत प्रभावित हूं। आप बड़े ज्ञानी और गुणवान हैं। मैं चाहती हूं कि मेरा बेटा भी बिल्कुल आपके जैसा ही हो। इसी वजह से मैं आपसे शादी करना चाह रही हूं।

महिला की इस इच्छा को जानकर स्वामी ने महिला से कहा कि ऐसा होना असंभव है, क्योंकि मैं एक संन्यासी हूं। फिर उन्होंने आगे कहा कि भले ही मैं आपसे शादी नहीं कर सकता, लेकिन आपकी इच्छा को पूरा कर सकता हूं। महिला ने स्वामी से पूछा कि वो कैसे होगा। स्वामी विवेकानंद ने कहा कि आप मुझे ही अपना बेटा मान लीजिए और आपको मां मान लेता हूं। ऐसा करने से आपको मेरे जैसा ही बेटा मिल जाएगा।

स्वामी विवेकानंद की बातों को सुनते ही महिला उनके पैरों पर गिर गई। उसने आगे कहा कि आप सचमुच बहुत बुद्धिमान हैं। मुझे आप पर गर्व है।

ऐसा करके स्वामी विवेकानंद ने खुद को अच्छा पुरुष साबित किया और सच्चे पुरुषार्थ का उदाहरण दिया। असली पुरुषार्थ वही होता है जब पुरुष के मन में नारी के लिए मां जैसा सम्मान का भाव होता है।

कहानी से सीख :

हर पुरुष को महिला को सम्मान के भाव से देखना चाहिए। ऐसा माना भी गया है कि जहां महिला का सम्मान होता है, वहां देवता का वास होता है।

गौतम बुद्ध की प्रेरक कहानी - पुष्प के बदले शरण - Inspirational Story of Gautam Buddha - A refuge for a flower

Gautam Buddha And Cobbler Story In Hindi

एक बार की बात है, जब गौतम बुद्ध जी मगध राज्य के एक गांव में ठहरे हुए थे। गांव से थोड़ा बाहर एक मोची अपने परिवार के साथ रहता था। उस मोची के घर के पास एक तालाब था। एक दिन रोज की तरह सुबह मोची तालाब किनारे पानी लेने गया। वहां उसने तालाब में एक बहुत ही अद्भुत पुष्प देखा। वह पुष्प देखने में बहुत ही सुंदर था, और चमत्कारिक भी प्रतीत हो रहा था।

मोची ने तुरंत ही अपनी पत्नी को बुलाया और वह पुष्प उसे दिखाया। मोची की पत्नी आध्यात्मिक और धर्म में आस्था रखने वाली थी। वह पुष्प को देखते ही समझ गयी कि जरूर कल यहां से गौतम बुद्ध जी गुजरे होंगे, उन्हीं के प्रताप से यह पुष्प खिला है।

पुष्प को चमत्कारिक मान कर मोची ने एक योजना बनाई। उसने अपनी योजना के बारे में पत्नी को बताया कि वह इस पुष्प को राजा को देगा और उनसे खूब सारी स्वर्ण मुद्राएं लेगा। उसकी पत्नी ने भी सोचा कि यह पुष्प उनके किसी काम का नहीं है। इसे राजा को ही दे दो, कम से कम कुछ कमाई तो होगी।

पत्नी की सहमति के बाद, मोची राजमहल की ओर निकल गया। राजमहल के रास्ते में उसे एक व्यापारी मिलता है, मोची के हाथ में पुष्प देख कर वह रुक जाता है। वह मोची से पूछता है कि भाई ये पुष्प ले कर कहाँ जा रहे हो?

मोची कहता है कि मैं यह पुष्प ले कर राजा के पास जा रहा हूं। इसे राजा को भेंट कर के मैं राजा से मुंह मांगा इनाम लूंगा।

व्यापारी ने मोची को प्रस्ताव दिया कि तुम ये पुष्प मुझे दे दो बदले में, मैं तुम्हे 100 स्वर्ण मुद्राएं दूंगा। मोची सोच में पड़ गया। उसने सोचा कि जब व्यापारी इस पुष्प के लिए 100 स्वर्ण मुद्राएं दे रहा है, तो राजा तो और ज्यादा देगा। यही सोचते हुए उसने व्यापारी को पुष्प देने से मना कर दिया।

थोड़ा आगे चला ही था कि उसे रास्ते में राजा आते हुए नजर आए जो गौतम बुद्ध के दर्शन के लिए जा रहे थे। राजा भी मोची के हाथ में वो दिव्य पुष्प देख कर अचंभित हो गये। राजा ने मोची को पुष्प के बदले 1000 स्वर्ण मुद्राएं देने के लिए कहा। यह सुनते ही मोची के मन में एक अजीब सी चेतना आई। और वह राजा को पुष्प न देकर दोड़ता हुआ सीधे महात्मा बुद्ध के पास जा पहुंचा।

महात्मा बुद्ध जी मोची को देख कर हैरत में पड़ गये। उन्होंने मोची से पूछा तो मोची ने उन्हें सारी बात बताई। इसके बाद मोची ने वह पुष्प महात्मा गौतम बुद्ध के चरणों में अर्पित किया और उनसे कहा कि पहले तो मेरे मन में पुष्प को देखकर लालच आ गया था। लेकिन अब मैं समझ गया हूं कि जिसकी छाया पड़ने से ही एक पुष्प इतना दिव्य हो गया हो अगर उसकी शरण में, मैं चला जाऊ तो मेरा जीवन भी धन्य हो जायेगा। इसके बाद वह आजीवन महात्मा गौतम बुद्ध का शिष्य बन कर रहा।

कहानी से सीख :

इस कहानी ने हमें सिखाया कि हमारी जिंदगी में हमें बहुत से चीजें अपनी तरफ आकर्षित करती हैं, लेकिन हमें उनके लालच में न फंसकर अपने ज्ञान का प्रयोग करके जीवन में सही राह को चुनना चाहिए।

स्वामी विवेकानंद की प्रेरक कहानी - अपनी भाषा पर गर्व - Inspirational story of Swami Vivekananda - Proud of your language

Swami Vivekananda apni bhasha par garv Story

बात उन दिनों की है जब स्वामी विदेश यात्रा पर गए थे। वहां उनके आदर-सत्कार के लिए कई लोग आए । उनमें से कुछ लोगों ने स्वामी से साथ हाथ मिलाना चाहा और कुछ ने अंग्रेजी में उनसे ‘हेलो’ कहा। स्वामी विवेकानंद ने जवाब में हाथ जोड़ते हुए सबको नमस्कार कहा।

यह देखकर कुछ लोगों ने सोचा कि स्वामी को अंग्रेजी नहीं आती है, इसलिए वो जवाब में नमस्ते कह रहे हैं। ऐसा सोचकर भीड़ में से एक व्यक्ति ने स्वामी विवेकानंद से हिंदी में पूछा कि आप कैसे हैं? हिंदी में सवाल सुनकर स्वामी विवेकानंद मुस्कुराए और उसे इंग्लिश में जवाब दिया, “आई एम फाइन, थैंक यूं।”

स्वामी विवेकानंद का अंग्रेजी में जवाब सुनकर वहां मौजूद सभी लोग हैरान रह गए। लोगों के मन में हुआ कि जब इनसे अंग्रेजी में सवाल किया गया तब हिंदी में जवाब मिला और फिर हिंदी में बात करने पर इंग्लिश में जवाब मिला। आखिर ऐसा क्यों हुआ। तभी एक व्यक्ति ने स्वामी विवेकानंद से यह सवाल पूछ ही लिया।

इसका जवाब देते हुए स्वामी विवेकानंद ने बड़ी ही विनम्रता से कहा कि जब आप लोगों ने अंग्रेजी में बात करके अपनी भाषा को आदर दिया, तब मैंने अपनी भाषा को मां मानकर उनका सम्मान करते हुए हिंदी में जवाब दिया।

स्वामी विवेकानंद की इस बात को सुनकर वहां मौजूद सारे विदेशी हैरान रह गए और तभी से हिंदी भाषा को पूरे विश्व में सम्मान मिलने लगा। इस किस्से से स्वामी विवेकानंद का अपनी भाषा और संस्कृति के प्रति प्यार और आदर झलकता है।

कहानी की सीख – हमेशा अपनी राष्ट्र भाषा को सम्मान देना और उस पर गर्व महसूस करना चाहिए। साथ ही अन्य भाषाओं का भी इतना ज्ञान होना जरूरी है कि हम सामने वाले की बात को समझ सके।